नई दिल्ली: क्या दुनिया एक बार फिर विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़ी है ? क्या सीरिया की जमीन से तीसरे विश्वयुद्ध का शंखनाद सुनाई दे रहा है ? दुनिया भर के देशों और सुरक्षा विशेषज्ञों को ये सवाल सता रहा है.
as per ABP :
आईएस के गढ़ सीरिया को लेकर तुर्की और रूस के बीच लगातार तनाव बढ़ रहा है और इसी के बाद आशंका जताई जा रही है कि अगर रूस और तुर्की ने संयम नहीं बरता तो दुनिया एक बार फिर जंग के मैदान में बदल सकती है.
पहला विश्वयुद्द
1914 से 1918
करीब 2 करोड़ लोगों की मौत
दूसरा विश्वयुद्द
1939 – 1945
करीब 8 करोड़ लोग मारे गए
और अब इस्लामिक स्टेट पर हमला करने जा रहे है रूसी विमान का मलबा सवाल पूछ रहा है कि क्या ये मलबा तीसरे विश्वयुद्द की तबाही की मुनादी तो नहीं बन जाएगा?
ये सवाल इसलिए क्योंकि रूस का विमान किसी हादसे का शिकार नहीं हुआ. ये तुर्की के उस गुस्से का शिकार बना है जो पिछले साल भर से सुलग रहा था. तुर्की का दावा है कि रूस के इस विमान को उसने इसलिए मार गिराया क्यों कि ये उसकी सीमा में दाखिल हो गया था और 100 से ज्यादा चेतावनियां देने के बावजूद वो उसकी सीमा से बाहर नहीं गया
दूसरी तरफ रूस का दावा है कि उसका सुखोई SU-24 विमान सीरिया में IS के आतंकियों पर हमला करने जा रहा था. लेकिन तुर्की ने सीरिया की सरहद के 4 किलोमीटर भीतर आकर रूस के विमान को निशाना बनाया. इल्जाम ये है कि तुर्की ने आईएस की मदद के लिए रूस के विमान को मार गिराया और एक पायलट की जान भी ले ली.
तुर्की ने बाकायदा ताल ठोककर रूस का विमान गिराने की जिम्मेदारी ली और रूस तिलमिला गया. लेकिन अगर आप ये सोच रहे हैं कि ये महज दो देशों की आपसी दुश्मनी का मामला है तो आप गलत हैं. इस तनाव ने दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध के मुहाने पर ला खड़ा किया है. आशंकाएं जोर पकड़ रही हैं और हालात गवाही दे रहे हैं. संकट तब और गंभीर हो जाता है जब दुनिया के शक्तिशाली देश रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने तुर्की पर निशाना साधते हुए इसे पीठ में छूरा घोंपना बताया.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का ये बयान बताता है कि रूस गुस्से में है. तुर्की का हमला भी बताता है कि तुर्की गुस्से में है. लेकिन इससे तीसरे विश्वययुद्ध का खतरा क्यों पैदा हो गया है.
इसके लिए आपको सीरिया के हालात जानने जरूरी होंगे. सीरिया का नक्शा अब बदल चुका है. इस इलाके में शिया शासक बशर अल असद की सरकार है. लेकिन बाकी एक तिहाई हिस्से पर आतंकवादी संगठन आईएस यानी इस्लामिक स्टेट ने कब्जा कर लिया है जो सुन्नी लड़ाकों का संगठन माना जाता है.
आईएस के आतंकवादियों असद की सरकार का तख्ता पलट करने में जुटे हैं और यही उसका पड़ोसी मुल्क तुर्की भी चाहता है. ऐसे में सीरिया में शिया और सुन्नियों के बीच गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा हो गए हैं हैं. कुल मिलाकर 8 लाख लोग मारे जा चुके हैं और 16 लाख से ज्यादा आबादी सीरिया छोड़कर भाग चुकी है. सीरिया में असद की ये सरकार ही तुर्की और रूस के बीच पिछले कई बरसों से तनाव की वजह बनी रही है.
सीरिया के तानाशाह बशर अल असद को हटाने की मुहिम में जुटे तुर्की को ये जरा भी रास नहीं आ रहा था कि रूस असद की मदद के लिए अपनी सेनाएं भेजे. लेकिन रूस ने असद की मदद के लिए सेनाएं भेजीं और आईएस के खिलाफ मोर्चा खोला. यही नहीं सैन्य ताकत के प्रदर्शन के लिए रूस ने कई बार उन नाटो देशों की हवाई सीमाओं का उल्लंघन भी किया जो तुर्की का साथ देते हैं.
तुर्की ने ये हमला जिस ताकत के बूते किया है उसका नाम है नैटो यानी North Atlantic Treaty Organisation. 4 अप्रैल 1949 को उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों ने अपनी सुरक्षा के लिए नैटो का गठन किया था. इसका मकसद था कि नैटो में शामिल किसी भी देश के खिलाफ अगर कोई दुश्मन देश युद्ध छेड़ता है तो उसे पूरे संगठन के खिलाफ माना जाएगा.
संगठन में शामिल सारे देश मिलकर उसका मुकाबला करेंगे, जाहिर था ये तब के सोवियत संघ के खिलाफ गोलबंदी थी. मौजूदा समय में नैटो में 28 सदस्य हैं जिसमें अमेरिका समेत तुर्की भी शामिल है. इसमें ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली जैसे शक्तिशाली देश भी शामिल हैं.
अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि सीरिया के शिया-सु्न्नी झगड़े को लेकर तुर्की और रूस के बीच रिश्तों में बढ़ती खटास अगर युद्ध में तब्दील होती है तो दुनिया दो खेमों में बंटकर जंग के मैदान में कूद सकती है. संकेत लगातार मिल रहे हैं. तुर्की में रूस का विमान गिराए जाने के बाद मंगलवार को ही नैटो की आपात बैठक बुलाई गई और नैटो ने रूस को कड़ा संदेश दे दिया है.
तुर्की के राजदूत ने हमें घटना के बारे में जानकारी दी है. हमने तुर्की के प्रधानमंत्री अहमत दावुतोग्लु से भी चर्चा की है. तुर्की ने नैटो के सदस्य देशों को रूस के विमान को मार गिराए जाने के बारे में बताया है. रूस जो नैटो की सीमा का उल्लंघन कर रहा है उस पर हम पहले भी अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं. हम पहले भी साफ कर चुके हैं कि हम तुर्की की संप्रभुता के साथ खड़े हैं और उसकी सीमा की सुरक्षा के लिए हम प्रतिबद्ध हैं. हम नैटो के दक्षिण-पूर्वी सीमा पर हो रही हचचल पर पूरी नजर रखे हुए हैं.
नैटो की इस चेतावनी के अहम मायने हैं. जंग की सूरत में नैटो ने एक मोर्चे की शक्ल तो साफ कर दी है. लेकिन रूस भी अकेला नहीं रहेगा. उसका साथ कौन देगा ये बताने से पहले सीरिया की एक और सूरत भी समझ लीजिए.
हालात तब और डरावने होते नजर आते हैं जब खूंखार आतंकी संगठन IS पहले से ही इराक और सीरिया में इंसानों का खून बहा रहा है और पेरिस पर भयानक हमला करके उसने जता दिया है कि इस्लाम के नाम पर वो बाकी दुनिया को भी अपने आतंक का निशाना बनाने की तैयारी कर चुका है.
सीरिया की जमीन से ही पनपे आईएस ने पेरिस में 129 बेगुनाहों को मार कर दुनिया को मुस्लिम और गैरमुस्लिम खेमों में भी बांट दिया है. अगर रूस और तुर्की लड़ाई में उलझे तो इस खेमेबंदी का असर भी दिखाई देगा
हालात बिगड़ रहे हैं और तनाव बढ़ रहा है लेकिन अब आप सोच रहे होंगे कि इस जंग में किस खेमे में कौन सा देश शामिल होगा तो वो भी समझ लीजिए. सिर्फ सीरिया की बात करें तो लड़ाई बशर अल असद की शिया सरकार और हथियारबंद सुन्नी विरोधियों के बीच है लेकिन अगर ये जंग विश्वयुद्ध की दिशा में बढ़ी तो बात सिर्फ शिया-सुन्नी संघर्ष की नहीं रहेगी.
पेरिस हमले के बाद साफ दिखाई दे रही इस्लाम बनाम ईसाई और दूसरे धर्मों की खाई दुनिया को दो जंगी खेमों में बांट सकती है. इस मोर्चाबंदी में कूटनीतिक रिश्तों और आर्थिक हितों भूमिका तो होगी ही.
ऐसे में तीसरे विश्व युद्ध के वक्त दुनिया की तस्वीर कुछ ऐसी होगी. नीले रंग में दिख रहे देश एक तरफ होंगे. यानी तुर्की, अमेरिका और नैटो से जुड़े 28 देश जिसमें पूरा यूरोप शामल है वो जंग का इस्लाम विरोधी ध्रुव बनाएंगे. दुनिया भर की सैन्य गतिविधियों पर नजर रखने वाली वेबसाइट ग्लोबलफायरपावर के मुताबिक इस मोर्चे में 80 से ज्यादा देश शामिल हो जाएंगे.
लाल रंग में दिख रहे देश दूसरी तरफ होंगे यानी रूस, उसका सहयोगी ईरान, चीन होंगे. इसी दूसरे मोर्चे पर जॉर्डन और अफगानिस्तान भी रूस का ही साथ देंगे. ग्लोबल फायर पावर के मुताबिक इस मोर्चे में भी 70 से ज्यादा देश शामिल होंगे.
लेकिन दुनिया के नक्शे पर पीले रंग के जो हिस्से नजर आ रहे हैं वो इस जंग में शामिल होने से बचने की कोशिश करेंगे जिसमें भारत भी शामिल है. स्विटजरलैंड और स्वीडन समेत जंग से बाहर रहने की कोशिश करने वाले देशों की संख्या कुल 11 होगी.
अब तक तो यही कयास लगाया जा रहा है लेकिन जंग शुरू होने के बाद इस नक्शे में बदलाव भी हो सकते हैं. पहले दो विश्वयुद्ध के दौर में भारत ब्रिटिश हुकूमत के इशारे पर विश्वयुद्ध में शामिल हुआ था. लेकिन इस बार सूरत उलझी हुई है. रूस उसका पुराना दोस्त है और अमेरिका आतंक के खिलाफ जंग में उसका सबसे ताकतवर साथी. ऐसे में भारत के लिए कोई फैसला लेना आसान तो नहीं साबित होगा.
दूसरी तरफ ये भी कहा जा रहा है कि अमेरिका के लिए ये जंग भारत से भी कहीं ज्यादा मुश्किल सवाल बन सकती है. अमेरिका एक तरफ रूस के साथ मिलकर सीरिया में आईएस के खिलाफ जंग लड़ रहा है तो दूसरी तरफ यूक्रेन में रूस समर्थक बागियों के खिलाफ. ऐसे में अगर जंग रूस और तुर्की के आपसी झगड़े से शुरू होती है तो ये देखने वाली बात होगी कि अमेरिका का रुख क्या रहता है.
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