संसद मे हंगामे का मोदी सरकार ने दिया तोहफा

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राजनीति दल पार्टी खाते मे जितना चाहे जमा करा सकते है पुराना नोट

८नवम्बर को प्रधानमंत्री ने देश मे आर्थिक आपातकाल घोषित किया जिसकी बजह से हर आम लोग बैंक की लाइन मे नजर आए जो अभी भी देखी जा सकती है । नोट बंदी के समय ही संसद का शीतकालीन सत्र सुरू हो गया जिसमे राजनीतिक दलो ने कोई काम नही करने दिया जिससे पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया । और आप लोगो के करोड़ो रुपये स्वाहा हो गये । १५ दिसम्बर को संसद सत्र समाप्त होते ही वित्त सचिव अशोक लवासा ने ऐलान किया की राजनीतिक दल जितना चाहे पुराना ५००-१००० का नोट पार्टी के खाते मे जमा कर सकते है । जिसकी पूँछताछ कोई भी एजेन्सी नही कर सकती क्योकि यह अधिकार उन्हे 13A से मिला हुआ है । और वैसे भी १७ दिसम्बर से मोदी सरकार ने काले को सफेद बनाने की स्कीम चालू कर दी है जो ३१ मार्च तक लागू रहेगी इस अवधि मे कोई भी व्यक्ति अपना कालाधन सफेद कर सकता है । जिसको पूर्णरूप से गोपनीय रखा जायेगा । और जाँच भी नही होगी । सवाल यह उठता है कि क्या नोटबंदी केवल आम जनता के लिये थी क्या कालाधन लाइन मे लगे आम लोगो के पास था ? और क्या संसद का न चलने देना हंगामा कर देश की जनता को मूर्ख बनाना था । क्या माननीय अपना कालाधन सफेद करने के लिये सरकार पर दबाब बना रहे थे ? और क्या रहुल गाँधी का गरीबो किसानो के प्रति हमदर्दी एक नाटक था ?? राहुल गाँधी का प्रधानमंत्री से मिलकर किसानो के कर्ज माफ कराना दिखावा था या अन्दर खाने सेटिंग ? जिसका तोहफा प्रधानमंत्री ने सभी दलो को दिया । राजस्व सचिव ने अपने बयान मे कहा की आप के खाते मे जमा धन सफेद नही माना जाएगा उसकी जाँच जरूर होगी लेकिन माननीयो की नही? आप के लिये कैशलेश लेकिन माननियो के लिये नही ? आप बैंक मे जमा धन को लिमिट मे ही निकाल सकते है लेकिन माननीयो पर लागू नही ? यानी जितने भी कानून है वह केवल आम जनता के लिये इन पर कोई कानून लागू नही होता क्योकि वह माननीय है । कानून बनाना और कानून तोड़ना इनका जन्म सिद्ध अधिकार है । आप का अधिकार केवल वोट देना है । अब जितना भी कालाधन है वह आसानी से सफेद हो जाएगा ।-- Sponsored Links:-
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