दिल्ली : ऐसा मालूम पड़ता है कि अरविंद केजरीवाल ने इतिहास से सीख नहीं ली है. अगर केजरीवाल ने सीख ली होती तो जनलोकपाल को एक बार फिर वो अपना राजनीतिक हथियार बनाने की कोशिश में नहीं लग जाते. राम मंदिर आंदोलन का उदाहरण केजरीवाल के सामने है. बीजेपी ने राम मंदिर आंदोलन का जमकर राजनीतिक फायदा उठाया पर पार्टी का लालच जब और बढ़ा तो उसे हार का सामना करना पड़ा. केजरीवाल भी बीजेपी के राम मंदिर की तरह कथित जनलोकपाल को और भुनाना चाहते हैं.
as per ABP :
आपको याद होगा दिल्ली में केजरीवाल ने जानबूझ कर अपनी पहली सरकार जनलोकपाल के नाम पर 'शहीद' की थी. केजरीवाल ने बाद में स्वीकार किया था कि अपनी सरकार गिरा कर उन्होंने बड़ी ग़लती की थी. केजरीवाल ने इसके लिए माफी भी मांगी थी. लगता है केजरीवाल के पास उनकी इस ग़लती की याद दिलाने वाला कोई नहीं है. केजरीवाल एक बार फिर जनलोकपाल के नाम पर 2019 लोकसभा चुनाव की तैयारी करना चाहते हैं.
केजरीवाल और उनकी टीम ने मनमोहन सरकार से लंबे टकराव के बाद आम जनता की भागीदारी से जनलोकपाल का ड्राफ्ट तैयार किया था. जनलोकपाल कैसा होगा इसके लिए दुनिया के सामने लंबी सार्वजनिक बहस हुई. विडंबना देखिये, आज केजरीवाल जब अपने कैबिनेट से जनलोकपाल बिल को पास कराते हैं तो उनके जनलोकपाल के मसौदे यानी ड्राफ्ट में क्या है उसे पता तक नहीं लगने देते हैं.
केजरीवाल के एक बागी विधायक हैं पंकज पुष्कर. पंकज अपनी ही सरकार के कामकाज से खुश नहीं हैं और केजरीवाल के खिलाफ वो लगातार सवाल उठाते रहे हैं. पंकज दिल्ली विधानसभा बिजनेस एडवाइजरी कमेटी के सदस्य होने की हैसियत से जनलोकपाल विधेयक की एक प्रति हासिल करने में कामयाब हो गए. पंकज को मिले जनलोकपाल ड्राफ्ट से जो खुलासा हुआ है वो काफी दिलचस्प है.
ड्राफ्ट से पता चलता है कि केजरीवाल ने जनलोकपाल के बहाने मोदी सरकार से टकराने की पूरी व्यवस्था की है. इसके लिए केजरीवाल ने किया ये है कि उन्होंने केन्द्र सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों को जानबूझकर प्रस्तावित जनलोकपाल विधेयक के दायरे में रखा है. अब किसी राज्य सरकार का लोकायुक्त कैसे केंद्र सरकार के किसी अधिकारी के खिलाफ जांच कर सकता है? जाहिर है ये गैर कानूनी भी है और केंद्र सरकार इसकी अनुमती भी राज्य सरकार को नहीं दे सकती है.
आपको ये भी पता होगा कि दिल्ली सरकार के किसी भी पारित विधेयक को को जब तक केंद्र से मंजूरी नहीं मिलती है वो कानून नहीं बन सकता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल नहीं है. जाहिर है केजरीवाल विधानसभा में विधेयक पारित कराने के बाद मंजूरी के लिए उसे मोदी सरकार के पास भेजेंगे. क्या मोदी सरकार अपने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की इजाजत केजरीवाल सरकार को देगी? इसका परिणाम क्या होगा? इसका महज आप अंदाजा लगा सकते हैं.
फिर क्या होगा? अगर आप केजरीवाल को थोड़ा भी जानते हैं तो आपके लिए ये अंदाजा लगाना भी कोई मुश्किल काम नहीं है. जी हां दिल्ली की सड़कों पर फिर उसी पुरानी कहानी को दोहराने की कोशिश होगी. मुख्यमंत्री रहते हुए केजरीवाल कभी रजाई में तो कभी नंगे पांव धरना प्रदर्शन करेंगे. देश दुनिया से आएंगे 'आंदोलनकारी' मीडिया का बाजार फिर सजेगा, और फिर खूब होगा मनोरंजन.
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