नई दिल्ली : देश में कानून की नाक के नीचे चलने वाले देह-व्यापार के धंधे का एक अहम हिस्सा हैं विदेश से आई लड़कियां. इनमें सबसे ज्यादा तादाद है उज्बेकिस्तान और उसके आसपास के देशों से आने वाली लड़कियों की. ये लड़कियों क्यों आती हैं और कैसे बन जाती हैं जिस्म फरोशी के धंधे का हिस्सा इसका खुलासा हुआ है उन दो उजबेक लड़कियों में से एक की चिट्ठी से जिनकी हत्या की खबर इसी महीने आई थी.
as per Dainik bhaskar :
इसी महीने उजबेकिस्तान की रहने वाली शखानोजा शुकुरोवा उर्फ शहनाज और उसकी दोस्त नाज की बेरहम हत्या की खबर ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. वजह ये थी कि मारी गई युवतियां देश में चल रहे एक बड़े सेक्स रैकेट का हिस्सा थीं.
लेकिन आज आपका चैनल एबीपी न्यूज आपको बताने जा रहा है कि शखानोजा और नाज जैसी ये लड़कियां. किलोमीटर दूर एक दूसरे देश में चलने वाले जिस्मफरोशी के धंधे का शिकार कैसे बन जाती हैं.
28 साल की शखानोजा के घर की तलाशी में मिली है एक चिट्ठी जिसमें ठीक एक साल पहले शखानोजा ने भारत में उजबेकिस्तान के दूतावास से खुद को जिस्मफरोशी के गंदे धंधे से बचाने की गुहार लगाई थी.
शखोनोजा ने चिट्ठी में लिखा, सबसे पहले मेरे बारे में कुछ शब्द – मेरा जन्म 21 जनवरी 1987 को हुआ था और मैं अपने परिवार की अकेली बेटी थी. हम ऐसे हालात में रहते थे जहां ना तो बिजली थी और ना ही गैस. मुझे एक अदद नौकरी की जरूरत थी. तब मेरी मुलाकात वोदनिक में मुयस्सर नाम की लड़की से हुई और उसने बताया कि भारत में उसकी दोस्त की आँटी रहती हैं और उनके पास बच्चों की देखरेख और घरेलू नौकर का काम भी है.
शखानोजा का परिवार इसी गरीबी और मजबूरी के चलते शखानोजा को भारत भेजने का फैसला किया था. शखानोजा की चिट्ठी में बयां हुई मजबूरी दरअसल शखानोजा जैसी ढेरों उजबेक लड़कियों के लिए एक ऐसी हकीकत है जिसकी वजह से वो जिस्मफरोशी के दलदल में फंस जाती हैं. कैसे ये बताने से पहले जरा हालात को समझने की कोशिश कीजिए.
साल 1991 तक सोवियत संघ का एक राज्य हुआ करता था ये उजबेकिस्तान लेकिन 24 साल पहले सोवियत संघ बिखर गया और उजबेकिस्तान जैसे 13 राज्य आजाद देशों में बदल गए. ये आजादी खुशियों भरी नहीं रही. अब उजबेकिस्तान के पास दुनिया भर के कपास का पांचवा हिस्सा मौजूद है लेकिन महंगाई और गरीबी ने उसके नागरिकों को देश छोड़ने पर मजबूर कर रखा है.
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उजबेकिस्तान की मुश्किल जिंदगी की एक बानगी ये है कि कपास के खेतों में काम करने के लिए स्कूल, कॉलेज और सरकारी दफ्तरों के कर्मचारियों को 2 महीने के लिए खेतों में भेज दिया जाता है. हर रोज बिना रुके 10 घंटे की मेहनत ना करने पर तनख्वाह काटने और स्कूल से निकालने जाने जैसे कड़े फैसले करती है सरकार. यही वजह है कि बेहतर और आरामदेह जिंदगी की तलाश में भारत का रुख करते हैं लोग.
अपने ही दलाल के हाथों मारी गई शखानोजा जैसी लड़कियों के लिए भी यही रास्ता बचता है लेकिन ये रास्ता उन गुनहगारों के कब्जे में है जो जिस्मफरोशी के धंधे से मोटा मुनाफा कमा रहे हैं.
उजबेकिस्तान के दूतावास को लिखी शखानोवा की चिट्ठी के मुताबिक उसे भारत लाने के लिए नेपाल का रास्ता इस्तेमाल किया गया और उसका पासपोर्ट भी छीन लिया गया.
शखानोजा के मुताबिक, "मैं 9 अगस्त को ताशकेंट से इस्तांबूल और इस्तांबूल से काठमांडू आई. नेपाल में मैं पांच दिनों तक रही. जहां मुझे मंजीत और गुरिंदर नाम के दो शख्स मिले. गुरिंदर का असली नाम गगन था. मंजीत की पत्नी दिल्या ने बताया कि मुयस्सर के आदेश के मुताबिक मुझे अपना पासपोर्ट उसे देना है और मैंने अपना पासपोर्ट दिल्या को दे दिया."
शखानोजा के साथ भी यही हुआ वो यहां नौकरी करने आई थी लेकिन उसे आखिरकार एक कॉलगर्ल बना दिया गया. 15 नवंबर साल 2014 को लिखी गई शखानोजा की चिट्ठी में दर्ज है ये दास्तान.
शखानोजा ने लिखा, " मैं दिल्ला के घर पर खाना बनाने का काम करने लगी थी लेकिन 20 अगस्त को गगन आया और बोला कि अब मुझे काम पर जाना है. हम दिल्ली से 6 घंटे की दूरी पर मौजूद चंडीगढ़ गए. वहां मौजूद लड़की ने मुझे सजने संवर कर बैठने को कहा. दिल्या की एक लड़की जमीरा वहां जिस्मफरोशी के धंधे में थी. मैं कुछ समझ नहीं पाई और मुझे धंधे पर भेज दिया गया."
लेकिन भारत में विदेशी कालगर्ल के धंधे से जुड़े एक दलाल ने एबीपी न्यूज को कैमरे पर जोर जबरदस्ती से इंकार किया. उसके मुताबिक लड़कियों को बातचीत के जरिए मनाया जाता है.
लेकिन शखानोजा की चिट्ठी एक दूसरी ही हकीकत बयां करती है.
शखानोजा ने लिखा, "मुझे मेरे मुश्किल दिनों में भी काम करने को कहा गया. मुझे एंजेला, निजीना, दुन्या, दिलनोजा और गोरोफ और गगन मारते-पीटते थे. मेरे कंधे, बांह और पीठ के निशान चंद दिनों पहले ही मिटे हैं."
उजबेकिस्तान की गरीबी भरी जिंदगी से निकल भागने का सपना चूरचूर हो गया. शखानोजा जैसी लड़कियां भारत में हर रात 10-10 ग्राहकों के पास भेजी जाती हैं. एबीपी न्यूज के खुफिया कैमरे पर दर्ज एक और उजबेक कॉलगर्ल का ये बयान बताया है कि कैसे दलालों के जाल में फंस कर उसकी जिंदगी बरबाद हो गई.
दलाल भी विदेशी लड़कियो के लिए मुंहमांगी कीमत वसूलते हैं. विदेश से आई यानी शखानोजा जैसी उजबेक लड़कियों के लिए उन्हें कीमत भी ज्यादा मिलती है.
शखानोजा भी अपनी हत्या से पहले ऐसे दलालों के नेटवर्क में फंस चुकी थी.
शखानोजा ने लिखा, "मुयस्सर के भारत आने के बाद मुझे गोरोफ नाम के दलाल के पास भेज दिया गया. मैंने उसके पास 11 दिन काम किया और मेरे काम के लिए उसे हर रोज 15 हजार रुपये मिलते थे. इसके बाद मैंने रोहन नाम के दलाल के लिए काम किया. तब मुझे एक दिन में 6 से 7 ग्राहकों के साथ सोना होता था."
भारत में जिस्मफरोशी के इस धंधे में उजबेक जिन्हें दलाल रशयन कहते हैं कि मांग काफी ज्यादा है और ऐसे में हर लड़की महीने में 1 से डेढ़ लाख रुपये तक कमा सकती है. एबीपी न्यूज के कैमरे पर खुद इस धंधे से जुड़े एक दलाल ने किया इस कमाई का खुलासा.
जिस्मफरोशी के इस धंधे में भले ही शखानोजा, नाज और साल 2011 में पुलिस की गिरफ्त में आई उजबेक लड़कियों की अपनी अस्मत दांव पर होती है लेकिन कमाई के नाम पर इन्हें दरअसल कुछ हासिल नहीं होता. सौदा इनका होता है और कमाई दलालों की.
उजबेकिस्तान के दूतावास को लिखी चिट्ठी में शखानोजा ने भी ये बताया था कि कैसे उसे दलालों ने पैसे के लेनदेन में उलझा दिया और वो हमेशा के लिए कर्जदार हो गई.
शखानोजा ने लिखा, " मेरे काम के बदले उन्होंने मेरे दलाल से 10 दिन का एडवांस ले लिया था. यही नहीं उन्होंने बताया कि मुझे अपने भाई के ऑपरेशन के लिए अपने घर पैसे भेजने पड़ेंगे. इसके बाद उन्होंने मुझे 500 डॉलर यानी करीब 30 हजार रुपये दे दिए. मैं सोचती रही कि एक दिन मैं उनका कर्ज चुकाकर आजाद हो जाऊंगी लेकिन मैं अब भी कर्ज में डूबी हूं. मैं घर जाना चाहती हूं लेकिन मुझे बताया जाता है कि बिना कर्ज चुकाए मैं नहीं जा सकती."
शखानोजा की ये चिट्ठी इस धंधे का राज तो जरूर खोल रही है लेकिन खुद शखानोजा अपने जीते जी देहव्यापार की इस गंदी दुनिया से बाहर नहीं निकल पाई. ऐसी मजबूर लड़कियों के लिए आजादी सिर्फ एक सपना बनकर रह गया है.
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