as per Amar ujala :
लेखिका ईरा त्रिवेदी का सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेने से कोलम्बिया बिज़नेस स्कूल से एम.बी.ए, और फिर योगा ट्रेनर बनने का सफर काफी दिलचस्प रहा है। लेकिन उनपर भी 29 की उम्र में बाकी भारतीय महिलाओं की ही तरह शादी करने का दबाव रहता है।
तीन नोवेल्स लिखने के बाद अपने व्यक्तिगत तजुर्बों को आधार बनाकर उन्होंने 'शादी के लड्डू' और भारत में आई नयी प्रेम क्रांति के बारे में रिसर्च की। आधुनिक भारतीय समाज में प्यार और रिश्तों के बारे में ये ईरा की पहली नॉन फिक्शन पुस्तक है। लव मैटर्स ने ईरा के साथ साक्षात्कार किया। प्रस्तुत है उसकी एक झलकी...
प्र: आपके अनुसार 'भारतीय प्रेम क्रांति' क्या है?
उ: मेरे ख्याल में इसके कई घटक हैं। एक विवाह क्रांति है और एक सेक्स क्रांति। लैंगिकता अब खुलकर सामने आ गयी है और लोग इसके बारे में खुलकर बात कर रहे हैं, फिल्मों में...किताबों में...हर जगह। वहीँ दूसरी तरह विवाह एक बदलाव से गुज़र रहा है। अरेंज्ड मैरिज अब लव मैरिज में परिवर्तित होने लगी हैं जातिवादी रवैये में कमी आई है और प्रेम विवाहों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
जब 12 साल पहले मेरी बहन की शादी हुई थी तो अपनी जाति में शादी करना लगभग ज़रूरी था। आज बारह साल बाद मुझे अपनी जाति से बहार शादी करने की इजाज़त है। जब मैं 18 की थी तो मेरे दिमाग में भी जाति के अंदर शादी करने वाली बात ने घर कर रखा था लेकिन आज मुझे ये बिलकुल महत्वपूर्ण नहीं लगता।
भारत में शादी करना ही सबकुछ है?
प्र: इस किताब की प्रेरणा कहाँ से मिली?
उ: एक युवा लेखक होने के कारण कई प्रकाशन कंपनियां मुझे प्यार और रिश्तों के बारे में किताब लिखने की अपेक्षा रखते थे। मैंने लिखा और पाया कि लोगों कि इस विषय में सचमुच काफी दिलचस्पी थी। बहुत से लोगों ने मेरे लेख बहुत रूचि से पढ़े।
मैं खुद शादी के दबाव के दौर से गुज़र रही थी और इसलिए मेरे पास खुद इस बारे में साझा करने के लिए काफी कुछ था और एक सच ये भी है कि भारत में शादी और सेक्स के विषय को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता।
उ: मुझे लगता है एक चीज़ है जो भारत में सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और क्षेत्रीय दायरों से परे हर महिला को कहीं न कहीं झेलनी पड़ती है, और वो है शादी करने का दबाव। और माता-पिता का शादी कर अपनी बेटी को 'सेटल' कर देने कि ख्वाहिश।
शादी कर देने का ये जूनून इस हद तक है कि एक उम्र के बाद यदि किसी महिला कि शादी न हुई हो तो ये अजीब मन जाता है। मैं अब तक किसी ऐसे माता पिता ने नहीं मिली जो कहते हों, "हमें अपनी बेटी कि शादी नहीं करनी।"
उ: एक युवा लेखक होने के कारण कई प्रकाशन कंपनियां मुझे प्यार और रिश्तों के बारे में किताब लिखने की अपेक्षा रखते थे। मैंने लिखा और पाया कि लोगों कि इस विषय में सचमुच काफी दिलचस्पी थी। बहुत से लोगों ने मेरे लेख बहुत रूचि से पढ़े।
मैं खुद शादी के दबाव के दौर से गुज़र रही थी और इसलिए मेरे पास खुद इस बारे में साझा करने के लिए काफी कुछ था और एक सच ये भी है कि भारत में शादी और सेक्स के विषय को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता।
प्र: क्या भारत में शादी करना ही सबकुछ है?
उ: मुझे लगता है एक चीज़ है जो भारत में सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और क्षेत्रीय दायरों से परे हर महिला को कहीं न कहीं झेलनी पड़ती है, और वो है शादी करने का दबाव। और माता-पिता का शादी कर अपनी बेटी को 'सेटल' कर देने कि ख्वाहिश।
शादी कर देने का ये जूनून इस हद तक है कि एक उम्र के बाद यदि किसी महिला कि शादी न हुई हो तो ये अजीब मन जाता है। मैं अब तक किसी ऐसे माता पिता ने नहीं मिली जो कहते हों, "हमें अपनी बेटी कि शादी नहीं करनी।"
भारत में सेक्स और शादी को अलग नहीं किया जा सकता'
भारत में शादी करना ही सबकुछ है?
प्र: इस किताब की प्रेरणा कहाँ से मिली?
उ: एक युवा लेखक होने के कारण कई प्रकाशन कंपनियां मुझे प्यार और रिश्तों के बारे में किताब लिखने की अपेक्षा रखते थे। मैंने लिखा और पाया कि लोगों कि इस विषय में सचमुच काफी दिलचस्पी थी। बहुत से लोगों ने मेरे लेख बहुत रूचि से पढ़े।
मैं खुद शादी के दबाव के दौर से गुज़र रही थी और इसलिए मेरे पास खुद इस बारे में साझा करने के लिए काफी कुछ था और एक सच ये भी है कि भारत में शादी और सेक्स के विषय को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता।
उ: मुझे लगता है एक चीज़ है जो भारत में सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और क्षेत्रीय दायरों से परे हर महिला को कहीं न कहीं झेलनी पड़ती है, और वो है शादी करने का दबाव। और माता-पिता का शादी कर अपनी बेटी को 'सेटल' कर देने कि ख्वाहिश।
शादी कर देने का ये जूनून इस हद तक है कि एक उम्र के बाद यदि किसी महिला कि शादी न हुई हो तो ये अजीब मन जाता है। मैं अब तक किसी ऐसे माता पिता ने नहीं मिली जो कहते हों, "हमें अपनी बेटी कि शादी नहीं करनी।"
उ: एक युवा लेखक होने के कारण कई प्रकाशन कंपनियां मुझे प्यार और रिश्तों के बारे में किताब लिखने की अपेक्षा रखते थे। मैंने लिखा और पाया कि लोगों कि इस विषय में सचमुच काफी दिलचस्पी थी। बहुत से लोगों ने मेरे लेख बहुत रूचि से पढ़े।
मैं खुद शादी के दबाव के दौर से गुज़र रही थी और इसलिए मेरे पास खुद इस बारे में साझा करने के लिए काफी कुछ था और एक सच ये भी है कि भारत में शादी और सेक्स के विषय को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता।
प्र: क्या भारत में शादी करना ही सबकुछ है?
उ: मुझे लगता है एक चीज़ है जो भारत में सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और क्षेत्रीय दायरों से परे हर महिला को कहीं न कहीं झेलनी पड़ती है, और वो है शादी करने का दबाव। और माता-पिता का शादी कर अपनी बेटी को 'सेटल' कर देने कि ख्वाहिश।
शादी कर देने का ये जूनून इस हद तक है कि एक उम्र के बाद यदि किसी महिला कि शादी न हुई हो तो ये अजीब मन जाता है। मैं अब तक किसी ऐसे माता पिता ने नहीं मिली जो कहते हों, "हमें अपनी बेटी कि शादी नहीं करनी।"
सेक्स शिक्षा
प्र: क्या आपको लगता है कि स्वस्थ मंत्री, जो सेक्स शिक्षा का समर्थन नहीं करते, उन्हें आपकी किताब से कुछ सीख लेनी चाहिए?
उ: मैं इस बात से सहमत हूँ कि हमारे देश में सेक्स शिक्षा का आभाव है। ज़रा सोचिये कि कितने युवा लोग सेक्स करना शुरू कर देते हैं जबकि उन्हें इस से जुडी ज्यादा जानकारी नहीं होती। और कहीं न कहीं यह अनचाहे गर्भ और सेक्स संक्रमित रोगों को बढ़ावा देता है। आंकड़े में इसी तरफ इशारा करते हैं।
गायनेकोलॉजिस्ट इस बात कि पुष्टि करते हैं कि देश में बहुत दे गैरकानूनी गर्भपात होते हैं। गर्भपात क्लिनिक भी आपको ये बता देंगे कि उनके पास काफी संख्या में युवा वयस्क आते हैं जो जानकारी के अभाव में अनचाहे गर्भ का सामना कर रहे होते हैं।
प्र: आपकी अपनी सेक्स शिक्षा के बारे में आपका क्या तजुर्बा है?
उ: मेरा तजुर्बा भी कुछ ख़ास अच्छा नहीं! मुझे याद है कि बायोलॉजी कि क्लास में टीचर ने इस बारे में बताया था, बिना 'सेक्स' और 'जननांग' शब्द का इस्तेमाल किये। तो आप ही समझ लीजिये कि इस सेक्स शिक्षा से क्या शिक्षा मिली होगी।
कई बार मैं सोचती हूँ कि भारत में लड़कियों को मासिक धर्म के बारे में भी पता कैसे चल पता होगा? मैंने अमेरिका में सेक्स हेल्थ पर कुछ क्लासेज में हिस्सा लिया था और उससे मुझे वाकई काफी जानकारी मिली। उन्होंने हमें एक फिल्म दिखाई और सभी ने उसके बारे में खुलकर चर्चा कि और अपने सवालों के जवाब भी पाये।
लेकिन 12 साल कि उम्र में भारत में कोई सेक्स शिक्षा नहीं है। हालाँकि मैंने अपनी किताब में इसका ज़िक्र नहीं किया लेकिन मैं इस बारे में सोचती ज़रूर हूँ।
उ: मैं इस बात से सहमत हूँ कि हमारे देश में सेक्स शिक्षा का आभाव है। ज़रा सोचिये कि कितने युवा लोग सेक्स करना शुरू कर देते हैं जबकि उन्हें इस से जुडी ज्यादा जानकारी नहीं होती। और कहीं न कहीं यह अनचाहे गर्भ और सेक्स संक्रमित रोगों को बढ़ावा देता है। आंकड़े में इसी तरफ इशारा करते हैं।
गायनेकोलॉजिस्ट इस बात कि पुष्टि करते हैं कि देश में बहुत दे गैरकानूनी गर्भपात होते हैं। गर्भपात क्लिनिक भी आपको ये बता देंगे कि उनके पास काफी संख्या में युवा वयस्क आते हैं जो जानकारी के अभाव में अनचाहे गर्भ का सामना कर रहे होते हैं।
प्र: आपकी अपनी सेक्स शिक्षा के बारे में आपका क्या तजुर्बा है?
उ: मेरा तजुर्बा भी कुछ ख़ास अच्छा नहीं! मुझे याद है कि बायोलॉजी कि क्लास में टीचर ने इस बारे में बताया था, बिना 'सेक्स' और 'जननांग' शब्द का इस्तेमाल किये। तो आप ही समझ लीजिये कि इस सेक्स शिक्षा से क्या शिक्षा मिली होगी।
कई बार मैं सोचती हूँ कि भारत में लड़कियों को मासिक धर्म के बारे में भी पता कैसे चल पता होगा? मैंने अमेरिका में सेक्स हेल्थ पर कुछ क्लासेज में हिस्सा लिया था और उससे मुझे वाकई काफी जानकारी मिली। उन्होंने हमें एक फिल्म दिखाई और सभी ने उसके बारे में खुलकर चर्चा कि और अपने सवालों के जवाब भी पाये।
लेकिन 12 साल कि उम्र में भारत में कोई सेक्स शिक्षा नहीं है। हालाँकि मैंने अपनी किताब में इसका ज़िक्र नहीं किया लेकिन मैं इस बारे में सोचती ज़रूर हूँ।
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