मुंबई: हिंदी फिल्मों के महान अभिनेता दिलीप कुमार आज 93 वर्ष के हो गए और वह चेन्नई में आए बाढ़ पीड़ितों के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए अपना जन्मदिन शांतिपूर्ण तरीके से मनाएंगे.
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कुमार की पत्नी सायरा बानो ने बताया, ‘‘ हम इस वर्ष केवल परिवार के साथ शांतिपूर्वक जन्मदिन बनाएंगे. वह चेन्नई में हुई त्रासदी से दु:खी हैं. यह एक बड़ी त्रासदी है और हमें नहीं लगता कि इस समय कोई भी खुशी मनाना सही होगा. ’’
सायरा वैसे भी दिलीप कुमार का जन्मदिन धूमधाम से मनाने के पक्ष में नहीं है क्योंकि उन्हें लगता है कि जब भी उनका जन्मदिन मनाया जाता है तो वह बीमार पड़ जाते हैं.
सायरा ने कहा, ‘‘ मुझे लगता है कि हम जब भी उनका जन्मदिन मनाते हैं, वह बीमार पड़ जाते हैं.मुझे लगता है कि उन्हें किसी की बुरी नजर लग जाती है क्योंकि जन्मदिन मनाते ही उनका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है.’’
11 दिसंबर 1922 को पेशावर (अब पाकिस्तान) में जन्में युसूफ खान उर्फ दिलीप कुमार अपनी माता-पिता की 13 संतानों में तीसरी संतान थे. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पुणे और देवलाली से हासिल की. इसके बाद वह अपने पिता गुलाम सरवर खान की फल के व्यापार में हाथ बंटाने लगे. कुछ दिनों के बाद फल के व्यापार में मन नही लगने के कारण दिलीप कुमार ने यह काम छोड़ दिया और पुणे में कैंटीन चलाने लगे.
वर्ष 1943 में उनकी मुलाकात बांबे टॉकीज की व्यवस्थापिका देविका रानी से हुयी जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचान मुंबई आने का न्यौता दिया. पहले तो दिलीप कुमार ने इस बात को हल्के में लिया लेकिन बाद में कैंटीन व्यापार में भी मन उचट जाने से उन्होंने देविका रानी से मिलने का निश्चय किया. देविका रानी ने युसूफ खान को सुझाव दिया कि यदि वह अपना फिल्मी नाम बदल दे तो वह उन्हें अपनी नई फिल्म ‘ज्वार भाटा’ में बतौर अभिनेता काम दे सकती है. देविका रानी ने युसूफ खान को वासुदेव, जहांगीर और दिलीप कुमार में से एक नाम को चुनने को कहा. वर्ष 1944 में प्रदर्शित फिल्म ‘ज्वार भाटा’से बतौर अभिनेता दिलीप कुमार ने अपने सिने करियर की शुरूआत की.
वर्ष 1960 में दिलीप कुमार के सिने करियर की एक और अहम फिल्म ‘मुगले आजम’ प्रदर्शित हुई. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर के. आसिफ के निर्देशन में सलीम-अनारकली की प्रेमकथा पर बनी इस फिल्म में दिलीप कुमार ने शहजादे सलीम की भूमिका को रूपहले पर्दे पर जीवंत कर दिया. वर्ष 1961 में प्रदर्शित फिल्म ‘गंगा जमुना’ के जरिये दिलीप कुमार ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया.
वर्ष 1967 में प्रदर्शित फिल्म ‘राम और श्याम’ दिलीप कुमार के सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई. दो जुडवां भाइयों की कहानी पर आधारित इस फिल्म में दोहरी भूमिकाओं को दिलीप कुमार ने बेहद सधे अंदाज में निभाकर दर्शकों का दिल जीत लिया था.
वर्ष 1976 में प्रदर्शित फिल्म ‘बैराग’ की असफलता के बाद दिलीप कुमार ने लगभग पांच वर्षो तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया. वर्ष 1980 में फिल्म निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार के कहने पर दिलीप कुमार ने फिल्म ‘क्रांति’ में बतौर चरित्र अभिनेता अपने सिने करियर की दूसरी पारी शुरू की. फिल्म में अपने दमदार चरित्र से दिलीप कुमार ने एक बार फिर से दर्शकों का मनमोह कर फिल्म को सुपरहिट बना दिया.
दिलीप कुमार ने अपने छह दशक के अभिनय करियर में अलग अलग तरह की फिल्मों में अपने अभिनय का जादू बिखेरा. उन्होंने रोमांटिक फिल्म ‘‘अंदाज’’ (19490, रोमांच से भरभूर फिल्म आन (1952), नाटकीय फिल्म ‘‘देवदास’’ (1955), हास्य फिल्म ‘‘आजाद’’ (1955), ऐतिहासिक फिल्म ‘‘मुगल-ए-आजम’’ (1960) और सामाजिक विषय पर आधारित फिल्म ‘‘गंगा जमुना’’ (1961) में अपने अभिनय के अलग अलग रंग बिखेरे.
‘बॉलीवुड के ट्रेजडी किंग’ के नाम से प्रसिद्ध दिलीप कुमार ने अपनी दूसरी पारी में ‘‘क्रांति ’’ (1981), ‘‘शक्ति’’ (1982), ‘‘कर्मा’’ (1986) और ‘‘सौदागर’’ (1991) जैसी कई फिल्मों में काम किया। उनकी अंतिम फिल्म ‘‘किला’’ (1998) है.
भारत सरकार ने भारतीय सिनेमा में उनके अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें 1991 में पद्मभूषण, 1994 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार और इस वर्ष पद्म भूषण से नवाजा.
पाकिस्तान सरकार ने भी उन्हें 1997 में अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान ए इम्तियाज से सम्मानित किया.
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