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भक्त भक्ति और ईश्वर से जुड़ा एक उदाहरण हम प्रस्तुत कर रहें हैं अवश्य पढ़ें-" वृन्द्रावन में एक संत रहते थे जिन्हें लोग जज साहब कहकर संबोधित करते थे। लोग जज साहब इसलिए कहते थे क्योंकि वह संत होने से पहले एक लोक अदालत के जज थे।ईश्वर में कोई आस्था थी लेकिन रूप बदलकर गवाह बनकर आने का विश्वास नहीं था। लेकिन ईमानदारी के साथ मुकदमों का फैसला करते थे।एक बार उनकी अदालत में ऐसा मुकदमा पेश हुआ कि उन्होंने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया।एक गांव में एक निहायत सीधा साधा ईश्वर पर विश्वास आस्था रखने वाला भोला भाला ईमानदार व्यक्ति रहता था।उसके गाँव में रघुनाथजी भगवान का एक मंदिर था इसलिए उससे कुछ भी कोई पूछंता वह स्वभाव में कह देता "रघुनाथ जी जानें"।उसने बेटी की शादी के लिये कुछ रूपये एक सेठ से ब्याज पर उधार लिये थे।कुछ दिनों बाद जब वह पैसा वापस लौटाने गया तो सेठ ने अपने रूपये लेकर रसीद बना दी और कहा पढ़ लो।उसने कहा कि" रघुनाथ जी जानें" हम तो कुछ जानते नहीं हैं।यह सुनकर सेठ ने उसे पानी लाने के बहाने टालकर असली रसीद की जगह नकली कागज पर बनाकर दे दी।कुछ दिनों बाद सेठ ने उस पर रूपया न देने का मुकदमा ठोंक दिया। दोनों उन्हीं जज साहब के सामने पेश हुए तो जज ने भोला से पूँछा कि तुमने सेठ को रूपये दिये हैं तो उसने कहा हाँ।तब जज साहब ने पूँछा कोई प्रमाण है तो उसने वहीं रसीद जज साहब को थमा दी तो जज साहब ने इसमें तो कुछ नहीं लिखा है।इसके अलावा जिस समय तुमने सेठ को रूपये वापस किये थे उसी समय और कोई था? भोला ने सरल भाव में कहा कि साहब उस समय हमारे और सेठ के अलावा वहाँ परीक्षा "रघुनाथ जी" थे।जज ने समझा "रघुनाथ" कोई उसके गाँव का कोई व्यक्ति है इसलिए उन्होंने उन्हें सम्मन भेज दिया। चपरासी गया और गाँव में कोई नहीं मिला तो पिड्ड छुड़ाने के लिये रघुनाथजी के मंदिर के पुजारी को ही थमा आया।पुजारी जी हक्का बक्का रह गये और भोला से पूँछा कि तुमने क्यों सम्मन भेजवा तो उसने भी सरलभाव में कह दिया कि क्या गलत किया वहाँ हमारे सेठ के बीच में "रघुनाथजी" के अलावा और कौन था? पुजारी जी पूजा के समय सम्मन लेकर भगवान से बोले कि अब तक आपके चरणों में चढ़ावा तो बहुत आये हैं लेकिन सम्मन पहली बार आया है अब तो भक्त की लाज आप ही के हाथ है प्रभू ! । पेशी पर पुनः दोनों लोग पहुँचे जज ने पूँछा कि रघुनाथ आये तो भोला ने सरलभाव में कह दिया "रघुनाथ जी जानें" हम तो अकेले आये हैं वह भी यहीं कहीं होंगे।आवाज लगाते ही एक वृद्ध हाथ में डंडी गले में माला पहने सामने आकर खड़ा हो गया।जज ने पूँछा कि तुमने रूपये देते देखा है? उसने कहा हाँ और वह उसकी रसीद सेठ की तिजोरी की बही नंबर पाँच में इस समय भी लगी रखी है।जज ने जांच करवाई तो असली रसीद उसी में लगी मिली।जज ने भोला को बरी कर दिया लेकिन उनका दिमाग चकराने लगा तो एक दिन भोला को बुलवाकर पूँछा कि यह "रघुनाथजी" रहते कहाँ हैं तो उसने कहाँ हमारे गाँव में ।जज साहब ने पूँछा कि तुम कहाँ रहते हो उसने जहाँ रघुनाथ जी रहते हैं।जज उसके गाँव गये तो वह उन्हें मंदिर पर ले गया और बताया कि इसमें जो बैठें हैं वही "रघुनाथ जी" हैं।यह दृश्य देख जज साहब पागलों की तरह घर आकर रोने लगे और कहने लगे कि जिसके दर्शन के लिये बड़े बड़े तरसते हैं वह मेरे सामने मेरी अदालत में गवाह बनकर पेश हुये और वह खड़े और मैं बैठा रहा।इसके बाद वह नौकरी छोड़कर वृन्द्रावन चले गये लेकिन वह कभी बैठते नहीं थे और न ही कभी मंदिरों में अंदर ही जाते थे ।जज साहब कहते थे कि अब खड़े रहने की बारी उनकी है और उन्हें अपना मुँह कैसे दिखाऊं? मैं मुँह दिखाने लायक भी नहीं हूँ मैंने ऐसा गुनाह किया है।ईश्वर भक्त के लिये सदा निराकार से साकार होकर उसके मनोरथ को पूरा करता है। सुप्रभात/ वंदेमातरम्/ गुडमार्निग/ शुभकामनाएँ।।ऊँ भूर्भवः स्वः------/ ऊँ नमः शिवाय।।।
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साथियों,
मनुष्य जीवन में भक्त भक्ति और ईश्वर की महिमा अपरम्पार अथाह है। ईश्वर हमेशा भक्त और भक्ति के अधीन रहता है और उसके लिये वह कुछ भी करने और कोई भी रूप धारण करने के लिये कभी संकोच नहीं करता है।
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मनुष्य जीवन में भक्त भक्ति और ईश्वर की महिमा अपरम्पार अथाह है। ईश्वर हमेशा भक्त और भक्ति के अधीन रहता है और उसके लिये वह कुछ भी करने और कोई भी रूप धारण करने के लिये कभी संकोच नहीं करता है।
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भक्त भक्ति और ईश्वर से जुड़ा एक उदाहरण हम प्रस्तुत कर रहें हैं अवश्य पढ़ें-" वृन्द्रावन में एक संत रहते थे जिन्हें लोग जज साहब कहकर संबोधित करते थे। लोग जज साहब इसलिए कहते थे क्योंकि वह संत होने से पहले एक लोक अदालत के जज थे।ईश्वर में कोई आस्था थी लेकिन रूप बदलकर गवाह बनकर आने का विश्वास नहीं था। लेकिन ईमानदारी के साथ मुकदमों का फैसला करते थे।एक बार उनकी अदालत में ऐसा मुकदमा पेश हुआ कि उन्होंने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया।एक गांव में एक निहायत सीधा साधा ईश्वर पर विश्वास आस्था रखने वाला भोला भाला ईमानदार व्यक्ति रहता था।उसके गाँव में रघुनाथजी भगवान का एक मंदिर था इसलिए उससे कुछ भी कोई पूछंता वह स्वभाव में कह देता "रघुनाथ जी जानें"।उसने बेटी की शादी के लिये कुछ रूपये एक सेठ से ब्याज पर उधार लिये थे।कुछ दिनों बाद जब वह पैसा वापस लौटाने गया तो सेठ ने अपने रूपये लेकर रसीद बना दी और कहा पढ़ लो।उसने कहा कि" रघुनाथ जी जानें" हम तो कुछ जानते नहीं हैं।यह सुनकर सेठ ने उसे पानी लाने के बहाने टालकर असली रसीद की जगह नकली कागज पर बनाकर दे दी।कुछ दिनों बाद सेठ ने उस पर रूपया न देने का मुकदमा ठोंक दिया। दोनों उन्हीं जज साहब के सामने पेश हुए तो जज ने भोला से पूँछा कि तुमने सेठ को रूपये दिये हैं तो उसने कहा हाँ।तब जज साहब ने पूँछा कोई प्रमाण है तो उसने वहीं रसीद जज साहब को थमा दी तो जज साहब ने इसमें तो कुछ नहीं लिखा है।इसके अलावा जिस समय तुमने सेठ को रूपये वापस किये थे उसी समय और कोई था? भोला ने सरल भाव में कहा कि साहब उस समय हमारे और सेठ के अलावा वहाँ परीक्षा "रघुनाथ जी" थे।जज ने समझा "रघुनाथ" कोई उसके गाँव का कोई व्यक्ति है इसलिए उन्होंने उन्हें सम्मन भेज दिया। चपरासी गया और गाँव में कोई नहीं मिला तो पिड्ड छुड़ाने के लिये रघुनाथजी के मंदिर के पुजारी को ही थमा आया।पुजारी जी हक्का बक्का रह गये और भोला से पूँछा कि तुमने क्यों सम्मन भेजवा तो उसने भी सरलभाव में कह दिया कि क्या गलत किया वहाँ हमारे सेठ के बीच में "रघुनाथजी" के अलावा और कौन था? पुजारी जी पूजा के समय सम्मन लेकर भगवान से बोले कि अब तक आपके चरणों में चढ़ावा तो बहुत आये हैं लेकिन सम्मन पहली बार आया है अब तो भक्त की लाज आप ही के हाथ है प्रभू ! । पेशी पर पुनः दोनों लोग पहुँचे जज ने पूँछा कि रघुनाथ आये तो भोला ने सरलभाव में कह दिया "रघुनाथ जी जानें" हम तो अकेले आये हैं वह भी यहीं कहीं होंगे।आवाज लगाते ही एक वृद्ध हाथ में डंडी गले में माला पहने सामने आकर खड़ा हो गया।जज ने पूँछा कि तुमने रूपये देते देखा है? उसने कहा हाँ और वह उसकी रसीद सेठ की तिजोरी की बही नंबर पाँच में इस समय भी लगी रखी है।जज ने जांच करवाई तो असली रसीद उसी में लगी मिली।जज ने भोला को बरी कर दिया लेकिन उनका दिमाग चकराने लगा तो एक दिन भोला को बुलवाकर पूँछा कि यह "रघुनाथजी" रहते कहाँ हैं तो उसने कहाँ हमारे गाँव में ।जज साहब ने पूँछा कि तुम कहाँ रहते हो उसने जहाँ रघुनाथ जी रहते हैं।जज उसके गाँव गये तो वह उन्हें मंदिर पर ले गया और बताया कि इसमें जो बैठें हैं वही "रघुनाथ जी" हैं।यह दृश्य देख जज साहब पागलों की तरह घर आकर रोने लगे और कहने लगे कि जिसके दर्शन के लिये बड़े बड़े तरसते हैं वह मेरे सामने मेरी अदालत में गवाह बनकर पेश हुये और वह खड़े और मैं बैठा रहा।इसके बाद वह नौकरी छोड़कर वृन्द्रावन चले गये लेकिन वह कभी बैठते नहीं थे और न ही कभी मंदिरों में अंदर ही जाते थे ।जज साहब कहते थे कि अब खड़े रहने की बारी उनकी है और उन्हें अपना मुँह कैसे दिखाऊं? मैं मुँह दिखाने लायक भी नहीं हूँ मैंने ऐसा गुनाह किया है।ईश्वर भक्त के लिये सदा निराकार से साकार होकर उसके मनोरथ को पूरा करता है। सुप्रभात/ वंदेमातरम्/ गुडमार्निग/ शुभकामनाएँ।।ऊँ भूर्भवः स्वः------/ ऊँ नमः शिवाय।।।
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