as per एबीपी :
New Delhi News: प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने नौकरशाह और मैगसेसे पुरस्कार विजेता संजीव चतुर्वेदी की तरफ से दान में दिए गए 30000 डॉलर को लेने से मना कर दिया है. इसकी वजह यह बताई गई है कि शर्तो के साथ दिए गए दान को स्वीकार नहीं किया जाता. भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने पीएमओ के दावे को गलत बताया है. उन्होंने कहा कि उन्होंने कोई शर्त नहीं लगाई है और वह मामले को अदालत में उठा सकते हैं.
चतुर्वेदी को भेजे पत्र में पीएमओ ने यह संकेत दिया है कि उसे नौकरशाह की तरफ से कोई रकम नहीं मिली है. पत्र में कहा गया है, “प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में (पीएमएनआरएफ) चेक/डिमांड ड्राफ्ट के जरिए दान दिया जा सकता है..यह अवगत कराना है कि पीएमएनआरएफ सशर्त दान को स्वीकार नहीं करता.”
चतुर्वेदी को भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने में ‘अनुकरणीय साहस’ दिखाने के लिए मैगसेसे पुरस्कार 2015 से सम्मानित किया गया है. उन्होंने अखिल भारतीय आयुविज्ञान संस्थान (एम्स-दिल्ली) को कैंसर मरीजों के इलाज के लिए पुरस्कार राशि देनी चाही, लेकिन एम्स ने इसकी मुखालफत की. इसके बाद उन्होंने पुरस्कार राशि को पीएमएनआरएफ में देने का फैसला किया.
चतुर्वेदी इस वक्त एम्स के उप सचिव हैं. उन्हें 2014 में एम्स के मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) के पद से हटा दिया गया था, हालांकि उनका कार्यकाल 2016 तक के लिए था. पीएमओ को लिखे पत्र में चतुर्वेदी ने कहा था कि स्वास्थ्य मंत्रालय के इनकार के बाद वह अपनी मैगसेसे पुरस्कार राशि को पीएमएनआरएफ में देने का फैसला कर रहे हैं.
एम्स को धन देने के चतुर्वेदी के आग्रह को पहले रोके रखा गया और बाद में ठुकरा दिया गया. अपने पत्र के जवाब में पीएमओ की तरफ से मिले पत्र पर चतुर्वेदी ने फिर पत्र भेजा है. इसमें उन्होंने लिखा है कि उनकी तरफ से दान में किसी तरह की शर्त नहीं लगाई गई है. उन्होंने अधिकारियों से आग्रह किया है कि वे उनका पत्र फिर से पढ़ लें.
उन्होंने लिखा है, “मैं दोहरा रहा हूं कि दान के साथ किसी भी तरह की पूर्व शर्त नहीं है. मेरे परिवार की स्वतंत्रता सेनानी की पृष्ठभूमि है, मेरा सेवा करियर खुद सबसे बड़ा सबूत है, इसके बावजूद ठोस तथ्यों की अनदेखी कर काल्पनिक नतीजे निकाल लेना दुर्भाग्यपूर्ण है.” पत्र में दस्तावेज और चेक की जांच करने के मामले में पीएमओ अधिकारियों की नीयत पर सवाल उठाया गया है. उन्होंने कहा है कि पांच दिसंबर को उन्होंने चेक जमा करा दिया था.
माना जाता है कि चतुर्वेदी भ्रष्टाचार के खिलाफ काफी सख्त हैं. इस मामले में उनके कदमों से उन्हें सरकारों की नाराजगी झेलनी पड़ी है और उनके तबादले होते रहते हैं.
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