as per एबीपी :
बढ़ते वायु प्रदूषण से निपटने के लिए राष्ट्रीय राजधानी व आसपास के इलाकों में एयर प्यूरीफायर एक नया औजार बनकर उभरा है. चिकित्सकों के मुताबिक, शहरों में एयर प्यूरीफायर लोगों के लिए ज्यादा विश्वसनीय है, क्योंकि घरों के बाहर के प्रदूषक की तुलना में घर में पैदा हुए प्रदूषक के मनुष्य के फेफड़ों तक पहुंचने की संभावना एक हजार गुना अधिक होती है.
वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट में रेस्पाइरेटरी एलर्जी एंड अप्लाइड इम्यूनोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. राज कुमार ने कहा, “वर्तमान में केवल एयर प्यूरीफायर समाधान है. भारत में अगरबत्ती जलाने की परंपरा बहुत पहले से चली आ रही है और फिर तंबाकू का धुआं, दरी व फर्निचर से निकली धूल पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) की मात्रा को लगभग 15 गुना बढ़ा देती है.”
उन्होंने कहा कि दिवाली जैसे त्योहारों व शीत ऋतु के दौरान हालात और बद्तर हो जाते हैं, जब धुंध में चिंताजनक तौर पर वृद्धि होती है.
रिपोर्टो के मुताबिक, एयर प्यूरीफायर बनाने वाली कंपनियों ने बिक्री में बेहद बढ़ोतरी दर्ज की है.
फिलिप्स ने इस साल बिक्री में 20-30 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की है. जबकि भारत के बाजार में साल 1996 में पहली बार उतरने वाली कंपनी यूरेका फोर्ब्स ने कहा कि वह कुछ साल पहले प्रतिवर्ष 10-20 हजार मशीनों की बिक्री की तुलना में वर्तमान में एक महीने में सात से दस हजार मशीनों की बिक्री कर रही है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है, साथ ही प्रति वर्ष 16 लाख से अधिक लोग घर में पैदा हुए प्रदूषकों की वजह से असमय काल के गाल में समा जाते हैं.
भारत में ब्लू एयर के प्रमुख विजय कानन ने कहा, “शहरों में एयर प्यूरीफायर की मांग में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. दिवाली के बाद बाजार में इसकी मांग में तेजी से वृद्धि हुई है. मुझे उम्मीद है कि प्रौद्योगिकी न सिर्फ दमा व श्वसन संबंधी अन्य रोगों से ग्रस्त रोगियों की मदद करेगी, बल्कि शहरों में श्वसन संबंधी रोगों से भी निजात दिलाएगी.”
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