संतान को बुरे विचारों से कैसे रखे दूर जाने ....

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-सभी गृहस्थ संतान से सुख चाहते हैं, लेकिन कभी-कभी संतान ही दुख का कारण बन जाती है। श्रीराम किष्किंधा कांड में लक्ष्मणजी से कहते हैं कि यदि संतान दुराचारी हो जाए तो उस कुल के श्रेष्ठ आचरण नष्ट हो जाते हैं।
तुलसीदासजी लिखते हैं-
कबहुं प्रबल बह मारुत जहं तहं मेघ बिलाहि।
जिमि कपूत के उपजें कुल सद्धर्म नसाहिं।।

इन चौपाइयों का अर्थ यह है कि कभी-कभी वायु बड़े जोर से चलने लगती है, जिससे बादल इधर-उधर गायब हो जाते हैं। जैसे किसी कुल में कुपुत्र के आने से पूरे कुल की अच्छी बातें यानी श्रेष्ठ आचरण ही नष्ट हो जाते हैं।
संतान अयोग्य हो तो जीवन का सबसे बड़ा दुख यही होता है, लेकिन श्रीराम यह भी इशारा कर देते हैं कि संतान को योग्य बनाना भी हमारे हाथ में ही है।

श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि-
कबहुं दिवस महं निबिड़ तम कबहुंक प्रगट पतंग।
बिनसइ उपजइ ग्यान जिमि पाइ कुसंग।।

इन चौपाइयों का अर्थ यह है कि जैसे बादल ढंक जाए, सूर्य छिप जाए तो समझ लीजिए कुसंग हो गया, अंधकार छा गया। बादल छंट जाए, प्रकाश आ जाए तो यह सत्संग का ही परिणाम है।
हमें संतान को अच्छी संगत सबसे पहले घर में ही देनी चाहिए। अगर बच्चे को घर में होश संभालते ही यह बात समझ में आ जाए तो जब वह घर से बाहर निकलेगी, उसे इस बात का ध्यान रहेगा कि किन लोगों के साथ रहना चाहिए और किन लोगों से दूर रहना चाहिए।
जैसे हम खाने और पानी के मामले में बच्चों को बचपन से ही स्वाद समझा देते हैं, वैसे ही हमें अच्छी संगत का महत्व भी समझा देना चाहिए। फिर बाहर निकलने पर वे अच्छे मित्र, अच्छे साथी ही ढूंढ़ेंगे। घर से अच्छी बातें बाहर ले जाएंगे तथा बाहर से अच्छी बातें लेकर घर आएंगे, तब संतान से भी सुख मिलेगा।


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