आखिर ब्राह्मण नेता मायावती से दूर क्यों जा रहे हैं ?

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नई दिल्ली: बीएसपी के कद्दावर नेता रहे ब्रजेश पाठक ने बीएसपी छोड़ने के बाद दावा किया है कि अभी कुछ और ब्राह्मण नेता उनकी ही तरह बीजेपी में शामिल होंगे। हमने उनके दावे की पड़ताल की तो जमीनी हकीकत भी कुछ ऐसी ही नजर आयी। संकेत मिले कि मायावती के जातीय समीकरण से ब्राह्मण छिटक रहे हैं और वो बीजेपी का दामन थाम रहे हैं।
ब्रजेश मिश्रा के दावे की पड़ताल से पहले आपको बता दें कि लोकनीति और सीएसडीएस ने जो सर्वे किया है, उसके मुताबिक यूपी में अभी चुनाव हुए तो बीजेपी को 55 प्रतिशत सवर्णों के वोट मिलेंगे जबकि सत्ताधारी समाजवादी पार्टी को 15 फीसदी सवर्ण वोट मिलने का अनुमान है। तीसरे नंबर पर है बीएसपी जिसे 9 फीसदी सवर्ण वोट मिलने का अनुमान है जबकि कांग्रेस के खाते में महज 5 प्रतिशत सवर्ण वोट जाता दिख रहा है। अन्य को 17 प्रतिशत सवर्ण वोट मिलने का अनुमान है।
सर्वे में सवर्ण जाति के मतदाताओं का जो रूझान सामने आया है, उसकी सबसे बड़ी बात ये है कि बीजेपी उनके लिए पसंदीदा पार्टी बनकर उभरी है, वहीं ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि 2007 से बीएसपी के साथ रहे ब्राह्मण वोट हाथी की सवारी करने के बजाय कमल के साथ जाना ज्यादा श्रेयस्कर मान रहे हैं। 
ब्राह्मण और बीएसपी के इस नये रिश्ते की बड़ी वजह बना है स्वाति सिंह और मायावती का विवाद। सूत्रों के मुताबिक गालीकांड के बाद मायावती ने दो सप्ताह में ब्राह्मण जाति के अपने 30 उम्मीदवारों के टिकट काट दिए और काटे गये ज्यादातर टिकट मुस्लिम उम्मीदवारों को दे दिए।
मायावती के इस रूख के बाद बीएसपी के ब्राह्मण नेताओं के सामने सबसे बड़ा सवाल था कि वो किस तरह जाएं ? समाजवादी पार्टी का अपना जातीय समीकरण है जिसमें ब्राह्मण कभी भी अहम भूमिका में नहीं रहे हैं।
कांग्रेस के साथ समस्या ये है कि वो अभी रेस में दिख नहीं रही है। ऐसे में बीजेपी बीएसपी के ब्राह्मण नेताओं की पहली पसंद बनती दिख रही है। वैसे भी लोकसभा चुनाव में ब्राह्मण मतदाताओं के बीजेपी के साथ ही जाने की खबर थी।
गौरतलब है कि ब्राह्मण मतदाताओं को साथ लेकर मायावती ने 2007 के चुनाव में एक नया समीकऱण तैयार किया था दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण राज्य में दलितों की संख्या करीब 21 फीसदी हैं जबकि मुस्लिम 20 फीसदी और ब्राह्मण करीब 12 फीसदी हैं।
यूपी के 12 फीसदी ब्राह्मणों के चेहरे के तौर पर इस समय बीएसपी में केवल सतीश चंद्र मिश्रा बचे हैं लेकिन वो भी पिछले कुछ समय से ज्यादा नजर नहीं आ रहे हैं।
जाहिर है 2007 में मायावती ने जो अपना जातीय समीकरण तैयार किया था, वो अबतक के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। देखना दिलचस्प होगा कि मायावती डैमेज कंट्रोल की कोशिश करती है या फिर यूपी चुनाव में दलित-मुस्लिम समीकऱण के साथ किस्मत आजमाती हैं ?





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