67 घंटे का ऑपरेशन 56 इंच का सीना ?...............latest news update

56 इंच का सीना, 67 घंटे का ऑपरेशन?
as per एबीपी :
अगर खुफिया तंत्र चुस्त हो और सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद हो तो आतंकी क्या परिंदे भी पर नहीं मार सकते हैं. ये हम नही कह रहें हैं बल्कि इसी तरह का भाव प्रधानमंत्री के भाषण से देखने को मिला था. गुवाहटी में डीजीपी कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए नरेन्द्र मोदी ने 2014 में कहा था कि कारगर खुफिया नेटवर्क वाले देश को सरकार चलाने के लिए किसी हथियार और गोला-बारूद की जरूरत नहीं है लेकिन पठानकोट में आतंकी हमले में खुफिया नेटवर्क तो फेल हुआ ही साथ ही सुरक्षा की भी पोल खुल गई और तो बची खुची सरकार की साख पर भी बट्टा लगा.

प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री ऑपरेशन खत्म हुआ नही कि पीठ थपथपाने लगे. आतंकी वहीं छिपे रहे लेकिन ऑपरेशन खत्म होने की जानकारी दी गई. शायद यह पहली बार हुआ है कि आतंकियों पर पूरी तरफ सफलता पाए बिना डंके की चोट पर देशवासियों को भरोसा देने का काम हुआ है लेकिन चंद घटों में शुरू हुई फायरिंग से सरकार की पोल खुल गई. चार आतंकवादी मारे गये थे जबकि पठानकोट के एयरबेस के इर्द-गिर्द दो आतंकी छिपे हुए थे. आखिरकार कहां चूक हुई और क्यों चूक हुई.

कहां से ऑपरेशन खत्म होने की जानकारी मिली और किसने अधूरी जानकारी देने की कोशिश की. आतंकी हमले में 6 आतंकी मारे गये जबकि 7 जवान शहीद हो चुके है और ऑपरेशन जारी है. सबसे बड़ा सवाल ये है 6 आतंकी को ढ़ेर करने में 67 घंटे क्यों लगे. एनएसजी की टीम, डीएससी की टीम, पुलिस इत्यादि लगाये गये थे लेकिन जो परिणाम सामने आये हैं उससे हमारी सुरक्षा व्यवस्था की पोल खुलती है. हमारी सुरक्षा व्यवस्था से लेकर खुफिया व्यवस्था, हमारी तैयारी से लेकर हमारी बहादुरी पर सवाल खड़े हो रहे हैं. मिली जानकारी के मुताबिक खुफिया एजेंसी को आतंकी गतिविधियों के बारे में जानकारी थी तब क्यों नहीं इतने बड़े आतंकी हमले को रोका गया या काबू किया गया. जब पठानकोट में एसपी का अपहरण हुआ इसके बाद ही वहां पर एनएसजी को तैनात कर दिया गया. अगर ऐसा नहीं होता तो शायद बड़ा नुकसान हो सकता है. गनीमत रही कि एयरबेस पर रक्षा साजो सामान का नुकसान नहीं हुआ.

पठानकोट एयरबेस रक्षात्मक नजरिए से महत्वपूर्ण है. इस एयरबेस में मिग 21, लडाकू विमानों के अलावा एमआई 25 और एमआई 35 हमलावर हेलीकॉप्टरों का भी ठिकाना है. मिसाइल के अलावा यहां पर और महत्वपूर्ण हथियार भी हैं फिर इसकी सुरक्षा करीब 50 से 100 डीएससी के भरोसे कैसे छोड़ दिया गया. करीब 50 स्कवायर किलोमीटर एयरबेस जिसमें करीब तीन चौथाई जंगल है वहां पर सिर्फ एक कंपनी एनएसजी कमांडो लगाया गया. पठानकोट में आर्मी रहते हुए आर्मी की सेवा क्यों नहीं ली गई. दरअसल एयरफोर्स का लड़ने का तर्जुबा हवाई लड़ाई में होती है जबकि आर्मी ग्राऊंड पर लड़ने के लिए बेहतर माना जाता है . कहा जा रहा है कि सुरक्षा एजेंसियों में समन्वय की कमी थी और दिलो-दिमाग से जंग नहीं लड़ा गया. माना जा रहा है कि इतने बड़े एयरबेस की सुरक्षा के लिए कम से कम 500 सुरक्षाकर्मी होनी चाहिए थी और तकनीकी सुविधा से चुस्त-दुरुस्त होना चाहिए था. आतंकी एयरबेस में घुस गये और घुसकर छिपे रहे. खुफिया अलर्ट के बावजूद पुख्ता कार्रवाई नहीं हुआ. दुश्मन आतंकियों ने 7 बहादुर सैनिकों को मौत के घाट उतार दिए.

यही नहीं एयरबेस के एक तरफ सुरक्षा तो बढ़ाई गई तो दूसरे हिस्से में सुरक्षा नहीं बढ़ाई गई. सबसे बड़ी चूक तो ये थी शनिवार को सरकार ने चार आतंकियों को मारे जाने की खबर दी और ऑपरेशन को रोक दिया. एनएसजी और एसपीजी को उम्दा क्वालिटी का सुरक्षा बल माना जाता है . दूसरे देश में आईईडी और ग्रेनेड को डिफ्यूज करने के लिए रोबोट का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन पठानकोट में रोबोट का इस्तेमाल नहीं किया गया है. जब मालूम था कि आतंकी आत्मघाती जैसा हमला किया तो आतंकी के शरीर से आईईडी हटाने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना चाहिए था. अगर ऐसा होता तो एनएसजी के लेफ्टिनेंट कर्नल निरंजन कुमार की जान बच सकती थी. निरंजन कुमार ने जान जोखिम में डालकर बहादुरी का अदम परिचय दिया. नरेन्द्र मोदी सरकार को मालूम था कि नवाज शऱीफ से बात करने का मतलब खतरे से खाली नहीं है.
पाकिस्तान के काबू में न तो आर्मी है न ही आतंकवादी है तो ऐसे में पाकिस्तान से बातचीत करने के बाद भारत को ज्यादा सतर्क, अपनी सुरक्षा और बढ़ानी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ये पुराना इतिहास रहा है कि जब भी पाकिस्तान से भारत हाथ बढ़ाने की कोशिश की को पाकिस्तान ने अच्छा शिला कभी नहीं दिया है. यही नहीं ये हमला हमारी सीमा की सुरक्षा पर भी सवाल उठाता है. आतंकी कैसे अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था की फायदा उठाते हुए घुसपैठ करने में कामयाब हुए. जबकि अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर पर सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद होनी चाहिए थी. 

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