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दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने करवाई थी शिवलिंग की स्थापना
प्रचलित किंवदंतियों, मान्यताओं तथा कानपुर के इतिहास को देखने से पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने करवाया था। कहा जाता है कि शुक्राचार्य की बेटी देवयानी का विवाह जाजमऊ के राजा आदित्य के साथ हुआ था। एक बार वह अपनी बेटी से मिलने जा रहे थे। खेरपति मंदिर के नजदीक ही वह कुछ देर विश्राम के लिए रूक गए। इस दौरान उनकी आंख लग गई और उन्हें स्वप्न ने भगवान शेषनाग ने दर्शन देते हुए उस स्थान पर शिव मंदिर बनाने की आज्ञा दी। शेषनाग ने कहा कि दैत्य गुरु यहां पर शिवलिंग की स्थापना करवाएं, जिसमें वे (शेषनाग) स्वयं वास करेंगे।
स्वप्न से जागने पर शुक्राचार्य ने शेषनाग की आज्ञानुसार वहां विधिवत शिवलिंग की स्थापना करवा मंदिर बनवाया था। आज भी इस प्राचीन मंदिर में सावन के महीने में शिवलिंग का भव्य श्रृंगार किया जाता है और उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।
किसी ने नहीं देखा नाग-नागिन के जो़ड़े को
पुजारी शिवराम शुक्ला बताते हैं कि उनके पूर्वजों ने इस बारे में उन्हें जानकारी दी थी। वह स्वयं भी इस बात के साक्षी है कि प्रतिदिन नाग-नागिन यहां पर भगवान शिव की पूजा अर्चना करने आते हैं लेकिन उनके दर्शन आज तक किसी को नहीं हुए। सुबह सवेरे मंदिर का कपाट खोले जाने पर शेषनाग के शीष पर दो ताजा फूल चढ़े हुए मिलते हैं तथा भगवान शिव पर भी पूजा सामग्री अर्पित की हुई मिलती है।
1857 में क्रांतिकारियों की मदद भी की थी भगवान शिव ने
मंदिर के पुजारी ने बताया कि यहां पर नानाराव पेशवा हर सोमवार पूजा करने आया करते थे। एक बार उनका पीछा करते हुए अंग्रेज सेना ने उन्हें घेर लिया। तब वो किसी तरह बचते-बचाते यहीं खेरेपति शिव मंदिर में आए और यहां शरण ली। उन्हें पकड़ने के लिए ज्योहीं अंग्रेज सेना ने मंदिर में कदम रखा, अचानक ही चारों तरफ से सैंकड़ों सांप निकल आए, जिन्हें देखकर अंग्रेज सेना भाग खड़ी हुई। तब से इस मंदिर के चमत्कारी होने की मान्यता और भी अधिक बढ़ गई।
नागपंचमी पर लगता है विषैले सांपों का मेला
खेरेपति शिव मंदिर में हर वर्ष नागपंचमी के दिन सांपों का मेला लगता है। इस मेले में देश-विदेश के सपेरे अपने सांपों को लाते हैं। मेले की सबसे खास बात यह है कि सांप के विषदंत नहीं तोड़े जाते है। बताया जाता है कि इस मन्दिर के निर्माण के बाद आज तक मन्दिर के आसपास किसी भी व्यक्ति की अक्समात सांप के काटने से नहीं हुई है। इसलिए खेरेपति मन्दिर को आसपास वाले क्षेत्र को विषमुक्त कहा जाता है। यहां बड़े से बड़ा विषैला सर्प भी किसी व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है।
शिवलिंग पर चढ़ाते हैं सांपों को
स्थानीय मान्यता है कि श्रावण मास पर खेरेपति धाम जाकर सांप खरीदकर शिव की लिंग पर चढ़ा दें, घर से सांप अपने आप ही चले जाएंगे। सबसे बड़ी बात इन सांपों के विषदंत नहीं तोड़े जाते लेकिन फिर भी ये किसी को नहीं काटते।
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यूं तो हर धार्मिक जगह का अपना महत्व और उससे जुड़ी कहानियां होती हैं। फिर
भी कुछ धार्मिक स्थल इस प्रकार के होते हैं जो अपनी मान्यताओं तथा
परम्पराओं के चलते बिल्कुल अनूठे माने जाते हैं। कानपुर का ऐतिहासिक
खेरेपति शिव मंदिर भी बिल्कुल ऐसा ही है। कहा जाता है कि इस मंदिर की
रखवाली इच्छाधारी नाग और नागिन का एक जोड़ा करता है। मंदिर के पुजारी
शिवराल शुक्ला के अनुसार हर वर्ष नागपंचमी के दिन ये इच्छाधारी नाग और
नागिन मंदिर में सुबह सूर्योदय के समय शिवलिंग की पूजा करने आते हैं।
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दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने करवाई थी शिवलिंग की स्थापना
प्रचलित किंवदंतियों, मान्यताओं तथा कानपुर के इतिहास को देखने से पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने करवाया था। कहा जाता है कि शुक्राचार्य की बेटी देवयानी का विवाह जाजमऊ के राजा आदित्य के साथ हुआ था। एक बार वह अपनी बेटी से मिलने जा रहे थे। खेरपति मंदिर के नजदीक ही वह कुछ देर विश्राम के लिए रूक गए। इस दौरान उनकी आंख लग गई और उन्हें स्वप्न ने भगवान शेषनाग ने दर्शन देते हुए उस स्थान पर शिव मंदिर बनाने की आज्ञा दी। शेषनाग ने कहा कि दैत्य गुरु यहां पर शिवलिंग की स्थापना करवाएं, जिसमें वे (शेषनाग) स्वयं वास करेंगे।
स्वप्न से जागने पर शुक्राचार्य ने शेषनाग की आज्ञानुसार वहां विधिवत शिवलिंग की स्थापना करवा मंदिर बनवाया था। आज भी इस प्राचीन मंदिर में सावन के महीने में शिवलिंग का भव्य श्रृंगार किया जाता है और उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।
किसी ने नहीं देखा नाग-नागिन के जो़ड़े को
पुजारी शिवराम शुक्ला बताते हैं कि उनके पूर्वजों ने इस बारे में उन्हें जानकारी दी थी। वह स्वयं भी इस बात के साक्षी है कि प्रतिदिन नाग-नागिन यहां पर भगवान शिव की पूजा अर्चना करने आते हैं लेकिन उनके दर्शन आज तक किसी को नहीं हुए। सुबह सवेरे मंदिर का कपाट खोले जाने पर शेषनाग के शीष पर दो ताजा फूल चढ़े हुए मिलते हैं तथा भगवान शिव पर भी पूजा सामग्री अर्पित की हुई मिलती है।
1857 में क्रांतिकारियों की मदद भी की थी भगवान शिव ने
मंदिर के पुजारी ने बताया कि यहां पर नानाराव पेशवा हर सोमवार पूजा करने आया करते थे। एक बार उनका पीछा करते हुए अंग्रेज सेना ने उन्हें घेर लिया। तब वो किसी तरह बचते-बचाते यहीं खेरेपति शिव मंदिर में आए और यहां शरण ली। उन्हें पकड़ने के लिए ज्योहीं अंग्रेज सेना ने मंदिर में कदम रखा, अचानक ही चारों तरफ से सैंकड़ों सांप निकल आए, जिन्हें देखकर अंग्रेज सेना भाग खड़ी हुई। तब से इस मंदिर के चमत्कारी होने की मान्यता और भी अधिक बढ़ गई।
नागपंचमी पर लगता है विषैले सांपों का मेला
खेरेपति शिव मंदिर में हर वर्ष नागपंचमी के दिन सांपों का मेला लगता है। इस मेले में देश-विदेश के सपेरे अपने सांपों को लाते हैं। मेले की सबसे खास बात यह है कि सांप के विषदंत नहीं तोड़े जाते है। बताया जाता है कि इस मन्दिर के निर्माण के बाद आज तक मन्दिर के आसपास किसी भी व्यक्ति की अक्समात सांप के काटने से नहीं हुई है। इसलिए खेरेपति मन्दिर को आसपास वाले क्षेत्र को विषमुक्त कहा जाता है। यहां बड़े से बड़ा विषैला सर्प भी किसी व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है।
शिवलिंग पर चढ़ाते हैं सांपों को
स्थानीय मान्यता है कि श्रावण मास पर खेरेपति धाम जाकर सांप खरीदकर शिव की लिंग पर चढ़ा दें, घर से सांप अपने आप ही चले जाएंगे। सबसे बड़ी बात इन सांपों के विषदंत नहीं तोड़े जाते लेकिन फिर भी ये किसी को नहीं काटते।
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