महेंद्र सिंह धोनी- टिकट कलेक्टर कैसे बना कैप्टन कूल! ...

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न्यूज़: खड़कपुर की सड़कें एक ऐसे सफर की दास्तान है जिसमें जाने-पहचाने रास्तें है तो कुछ अनजाने और अनचाहे मोड़ भी शामिल रहे हैं. इस कहानी का हिस्सा मिट्टी का मैदान भी है और चारदीवारी में सुरक्षित सुविधाओं से लैस ये स्टेडियम भी.
एक छोटे से शहर में एक छोटे से लड़के की हैरान कर देने वाली कामयाबी की ये कहानी करीब 14 साल पहले सिर्फ तीन सौ रुपये से शुरु हुई थी जब इसी मैदान पर वो लड़का अपने हुनर को दांव पर लगाता था लेकिन आज ऐसे चमचमाते मैदानों में उस पर करोड़ों रुपये बरसते हैं.
भारतीय क्रिकेट को अपनी बेमिसाल कप्तानी से ऊंचा मुकाम दिलाने वाले कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की ये कहानी जितनी सीधी और सपाट है उतनी ही पेचीदा और उलझी हुई भी है क्योंकि धोनी की इस दास्तान में जहां किस्मत का अहम रोल है तो वहीं उनकी मेहनत और हुनरमंदी का बडा खेल भी शामिल है.
ये रास्ते, ये मैदान और खड़गपुर शहर के ये ठिकाने गवाह है कि कैसे महेंद्र सिंह धोनी ने अभावों से जूझते हुए अपने क्रिकेट करियर को आगे बढ़ाया था. इन्ही बेतरतीब मैदानों पर कभी धोनी ने देश के लिए क्रिकेट खेलने का सपना संजोया था लेकिन किस्मत ने उन्हें उस मुकाम पर भी पहुंचाया जहां सचिन तेड़ुलकर भी उनकी कप्तानी में क्रिकेट खेले. वो सचिन जिन्हें महेंद्र सिंह धोनी मानते रहे हैं क्रिकेट का भगवान. 
क्रिकेट के मैदान पर अपने फैसलों से अक्सर चौकनें वाले कप्तान धोनी का करियर जितना चमकदार रहा है उतना ही चौकानें वाला टेस्ट क्रिकेट से उनका संन्यास भी रहा है. व्यक्ति विशेष में आज हम आपको बताएंगे धोनी के वो मैदान जहां उन्होनें सतरंगी सपने बुने थे. साथ ही आपको धोनी के उस संसार में भी ले चलेंगे जहां आज भी आती है उनके रिश्तों की महक. और पड़ताल इस बात की भी करेंगे कि आखिर क्यों टेस्ट क्रिकेट से संन्यास को लेकर कैप्टन कूल हो गए इतने बेसब्र.
व्यक्ति विशेष –  धोनी
टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने दो साल पहले ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान कहा था कि वो 2013 तक टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहना चाहते थे. इस बयान ने धोनी की टेस्ट कप्तानी को लेकर ही सवालिया निशान लगा दिया था और इस तरह पहली बार टेस्ट क्रिकेट को लेकर उनका डर भी दुनिया के सामने उजागर हुआ था. धोनी के इस बयान ने उस वक्त सबको चौंका दिया था और अब टेस्ट से उनके संन्यास ने भी सबको हैरान कर दिया है. 
पूर्व क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी धोनी के इस फैसले पर कहते हैं कि तीसरे टेस्ट मैच में बावजूद कि टीम ने टेस्ट बचाया है वो रफेल हुए है. औऱ उन्होंने जो ये डिसीजन लिया है इसका कारण बहुत पेचीदा है. हमें अभी तो इस सवाल का जवाब मिलने वाला नहीं है लेकिन ये बात छुपी नहीं रहेगी.
धोनी के इस फैसले पर पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद ने कहा कि जाना ही था तो पहले चले जाते या फिर टेस्ट सीरीज खत्म होने के बाद जाते मंझधार में जाने का क्या मतलब है
मेलबर्न टेस्ट खत्म होने के बाद महेंद्र सिंह धोनी के हाव भाव से ये अंदाजा लगाना नामुमकिन था कि वो चंद मिनटों बाद ही टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह देंगे. लेकिन ये भी सच है कि करीब तीन सालों से टेस्ट में कप्तानी को लेकर धोनी पर दबाव बना हुआ था. क्योकि भारत के सबसे सफल कप्तान धोनी टेस्ट की कप्तानी में ज्यादा कामयाब नहीं हो सके है.
नौ साल में धोनी ने 90 टेस्ट मैच खेले हैं जिनमें से 60 मैचों में उन्होनें कप्तानी की थी उनकी कप्तानी में भारत ने 27 मैच जीते, 18 हारे और 15 मैच ड्रॉ रहे. टेस्ट कप्तान के तौर पर विदेशी जमीन पर धोनी का रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है विदेशी जमीन पर धोनी ने 30 टेस्ट में कप्तानी की जिसमें से सिर्फ 6 जीते और 15 हार गए. लेकिन उनकी कप्तानी में ही भारतीय टीम सितंबर 2009 से लेकर जून 2011 तक पहली बार टेस्ट में नंबर वन भी रही है.
धोनी के क्रिकेटिंग सोच पर सवाल उठाते हुए बिशन सिंह बेदी आगे कहते हैं कि टी ट्वेटी बहुत फ्लूक टूर्नामेंट है इवन वनडे क्रिकेट भी काफी फलूक है लेकिन खास बात ये है कि जब पांच दिन के मैच में जब आप ऊपर से नीचे आते है और नीचे से फिर आपको ऊपर जाना है. उस लड़ाई में उस चेज में आप कितना सक्सेसफुल होते हो. वो देखने वाली बात है और वहां पर धोनी की जो क्रिकेटिंग सोच थी उसके सामने बहुत बड़ा प्रशन चिन्ह है.
मेलबोर्न टेस्ट ड्रॉ होने के ठीक आधे घंटे बाद ही महेंद्र सिंह धोनी ने सनसनीखेज अंदाज में टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया था और इस तरह चुपके से एक बार फिर सबको चौंका गए धोनी. लेकिन इसके साथ ही धोनी के संन्यास की वजहों को लेकर अफवाहें भी गर्म हो चुकी है. जहां धोनी ने कहा कि तीनों फॉर्मेट में खेलना उनके लिए मुश्किल हो रहा था. वही दूसरी तरफ ये भी कहा गया कि धोनी के ढलते परफार्मेंस, आईपीएल फिक्सिंग विवाद, विराट कोहली के बढते कद, टीम के डायरेक्टर रवि शास्त्री की टीम मामलों में बढती दखलअंदाजी और टेस्ट में टीम की लगातार हार जैसी वजहों ने धोनी को टेस्ट क्रिकेट से संन्यास के लिए मजबूर कर दिया था. 
खेल पत्रकार गौतम भट्टाचार्य के अनुसार धोनी ने शुरु में ही बोला कि मैंने बुहत सारे क्रिकेटर को देखा हूं जो बुहत बड़े क्रिकेटर है पर जिंदगी में एक टाइम आता है कि लोग ये वेट करते हैं कि इसे टीम में लेंगे की नहीं. मैं कभी उस ह्यूमीलिएशन में नहीं जाउंगा. मैं वो चांस ही नहीं दूंगा. वो बोलते थे तब जब वो जूनियर क्रिकेटर था. तब वो ये बोलता था और आज मैं वही बात याद कर रहा हूं. कि उसी वक्त बोला कि मैं खुद चला जाउंगा. मैं पकडकर नहीं खेलूंगा. और उन्होने वही करके दिखाया शायद दस साल बाद.
वनडे में हिट, लेकिन टेस्ट में फ्लॉप.
पिछले 3 साल से महेंद्र सिंह धोनी पर टेस्ट मैचों में फ्लॉप कप्तानी करने का ठप्पा लगता रहा है. आखिर क्या है धोनी की ऐसी कप्तानी का राज. साल 2005 में पहली बार टीम इंडिया का हिस्सा बने धोनी पिछले 6 साल से टेस्ट,  वनडे और ट्वेंटी – 20 तीनों फॉर्मेट में भारत की कप्तानी कर रहे थे. धोनी ने अपनी कप्तानी में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट की हर ट्रॉफी जीती है 2007 में ट्वेंटी-20 वर्ल्ड कप, 2011 में वनडे का विश्व खिताब और एशिया कप समेत आईपीएल और चैम्पियंस लीग में भी धोनी ने अपनी कप्तानी का करिश्मा दिखाया है. उन्होंने वो सब हासिल किया जो एक कप्तान अपने करियर में करना चाहता है. 
धोनी के इस सफलता पर पूर्व क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी कहते हैं – 
वन डे क्रिकेट में तो उनका सानी कोई नहीं था. एज ए लीडर, एज ए क्रिकेटर, एज ए विकेटकीपर ऑलसो. लेकिन टेस्ट क्रिकेट में काफी प्रशनचिन्ह लगे है उनकी कप्तानी के खिलाफ भी और उनके डिफेंसिव टेक्टिस, टीम सलेक्शन और जब टीम गेम ड्रिफ्ट कर रही है अलग हट रही है टीम अपने कंट्रोल से तो अलग हटने देने का भी जो प्रभाव था उनका. वो भी उनके खिलाफ जा रहा था. लेकिन आई थिंक धोनी ने जो अपनी छाप छोडी है भारतीय क्रिकेट पर वो बहुत खूबसूरत छाप है.
फैसला बाद टेस्ट मैच में धोनी का शतक.
बल्लेबाजी और कप्तानी में एक से बढ कर एक चौंका देने वाले कारनामें करने वाले धोनी को शायद ही कभी क्रिकेट के मैदान पर विचलित देखा गया है. बेहद मुश्किल हालात में भी वो शायद ही कभी तनाव में दिखाई दिए है. सरप्राइज देने में माहिर माही ने टेस्ट कैप उतारने से पहले वर्ल्ड कप के दौरान अपने फैसलों से भी सबको हैरान कर दिया था. 2007 टी-20 वर्ल्ड कप फाइनल मुकाबले में धोनी ने जोगिंदर शर्मा जैसे नए गेंदबाज से आखिरी ओवर कराने का बड़ा रिस्क उठाया था लेकिन धोनी की यही वो खासियतें भी हैं जिन्होनें उन्हें कैप्टन कूल के तौर पर मशहूर कर दिया.
इस पर क्रिकेट एक्सपर्ट विवेक कहते हैं कि गैंबल लेना उनकी फितरत में है. और उनहोने हमेशा से ही गैंबल लिया है चाहे वो आंध्र प्रदेश हैदराबाद हो अपनी कप्तानी के साथ हो या अपने मैच सिचुएशन के सामने हो. हमेशा उन्होने गैंबल लिया है जब आपको लगता है कि धोनी प्रेशर पर है. उनको सिर्फ डिफेश करना चाहिए धोनी जाकर काउंटर अटैक कर देते हैं. ये एक गैंबल वो हमेशा से लेते आ रहे हैं और यही उनकी सबसे बडी खासियत है.)
इस पर खेल पत्रकार गौतम भट्टाचार्य कहते हैं कि जब वो वनडे में कप्तान बने तो अपने पहले सीरीज में दो बड़े खिलाड़ी सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ को निकाल दिया गया था. ये बिल्कुल आसान चीज नहीं था. ….औऱ उनका लॉजिक था कि ये दोनों स्लो फीलडर थे. उन्होने सोचा कि अगर आप लास्ट डिलीवरी ओवर में सिंग्ल्स दे दो गिलक्रिस्ट या हेडन को तो नेट एफेक्ट हो जाएगा नेक्स्ट डिलीवरी में अगर ये छह मार दे तो एक मिस फील्ड के लिए आप सेवन कास्ट करेंगे. तो ऐसा अगर तीनों मिस फील्ड हो जाए तो आप 21 रन कास्ट करेगा. और उन्होने देखा कि ऑस्ट्रेलिया से जो मार्जिन से हार रहे थे काफी कम था. दस बारह सोलह अठारह तो उन्होने एनालाइज किया और ये दोनों को निकाल दिया. और दिखाया कि उनका जो लॉजिक था वो बहुत शानदार लॉजिक था. उनकी टीम का फील्डिंग इंप्रूव हुआ रनिंग बिटविन द विकेट इंप्रूव हुआ. टीम मे एनर्जी वापस आया. उनका बुहत सारा कांट्रीब्यूशन है इंडियन क्रिकेट में
टीम इंडिया के गेम चेंजर माने जाने वाले कप्तान धोनी का सफर कामयाबियों से भरा पड़ा है और इन चमकती कामयाबियों के लिए जहां धोनी ने टीम में जबरदस्त बदलाव और प्रयोग किए हैं वही वो अपनी कप्तानी को माहौल और खेल के हिसाब से ढालते भी रहे हैं. और यही वजह है कि टीम इंडिया के गेम चेंजर धोनी जहां अपने फैसलों से सबको चौकातें रहे वही अपने अंदर भी तेजी से बदलाव करते चले गए हैं. कैसे एक कप्तान और क्रिकेटर के तौर पर धोनी ने खुद को संवारा और आगे बढ़ाया है. जानिए कैप्टन कूल धोनी की ये अनसुनी कहानी खुद उन्ही के दोस्तों की जुबानी. 
धोनी के दोस्त सत्यप्रकाश कृष्णा-
उसका नेचर ही ऐसा है. वो किसी की बात सुनने से पहले ही डिसीजन ले लेता है और मुझे नहीं लगता कि इंडियन क्रिकेट में ऐसा पहले किसी ने किया होगा जैसा उसने कल किया है. एक तरफ से खुशी भी है और एक तरफ से तकलीफ भी हो रहा है कि उसको अभी बाहर नहीं होना चाहिए था. साल में 8-10 टेस्ट होता है वो उठ के खेल सकता है लेकिन जब बात उठने लगा तो उससे पहले ही डिसीजन ले लिया वो बहुत बड़ी बात है.
खड़गपुर के क्रिकेट स्टेडियम में करीब चार साल तक महेंद्र सिंह धोनी के साथ क्रिकेट खेलने वाले रणजी खिलाड़ी रॉबिन कुमार बताते हैं कि बल्लेबाजी धोनी के क्रिकेट का शुरु से ही सबसे मजबूत पक्ष रहा है. रॉबिन के मुताबिक धोनी की बैटिंग की टाइमिंग और उनका टेंपरामेंट शुरुवाती दिनों से ही लाजवाब रहा है और यही वो खूबियां भी हैं जिन्होंने धोनी को एक बेहतरीन क्रिकेटर और कामयाब कप्तान बनाया है. 
 वो कहते हैं अभी तो बहुत नॉर्मल हो गया बहुत सिनसेयर हो गया पहले वो ऐसा नहीं था. पहले वो टोटली डिफरेंट था. जब भी स्पिन आता था तो हमारा दूसरा बैट्समेन रेडी हो जाता था बैटिंग करने के लिए कि अब तो वो आउट हो जाएगा ये मान कर लेकिन इतना चेंजेंस उसने लाया है ये तो इंपॉसिबल बात है किसी अदर पर्सन के लिए वो डेडिकेशन वो कहां से लाता है वो चार साल खेला हमारे साथ. मैं ओपनर था वो भी ओपनिंग करता था. एक दिन मुझे याद है हम इंटर रेल खेलने गए थे नागपुर, ये हाजीपुर रेलवे के अगेनस्ट में 52 बॉल में 162 रन मार दिया था नागपुर रेलवे में. वही कह रहा हूं कि उस टाइम वो इतना मारता था लेकिन स्पिन आता था आउट हो जाता था. लेकिन आज इतना चेंजेंस उसकी बैटिंग में है लोग ग्रेट फिनिशर बोलने लग गए हैं. नीचे जाकर कब खत्म करके आएगा पता नहीं चलता लेकिन पहले वो ऐसा नहीं था. बहुत चेंजेस आए है उसके अंदर
पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में धोनी के दोस्त आज भी उन्हें एक ऐसे पहलवान क्रिकेटर के तौर पर याद करते हैं जिसका बल्ला गेंद को सीधे स्टेडियम के पार पहुंचा दिया करता था. ट्वेटी-ट्वेटी और वनडे जैसे फॉर्मेट में फौरन फैसले लेने का सबक भी धोनी ने खड़गपुर के इन्हीं मैदानों पर सीखा था और सबसे खास बात ये कि एक कप्तान के तौर पर फ्रंट से लीड करने का जज्बा भी धोनी में यहीं पर खेलते हुए पैदा हुआ था.  खड़गपुर के ग्रीन अकादमी क्लब के सचिव प्रदीप सरकार को आज भी वो दिन याद हैं जब धोनी महज तीन सौ रुपये फीस लेकर रेलवे के इसी ग्राउंड पर क्रिकेट मैच खेला करते थे.
वो कहते हैं इसी ग्राउंड में बीएमआर ग्राउंड है रेलवे ग्राउंड में हमारा ग्रीम अकेदमी का डे नाइट टेनिस टूर्नामेंट होता था. वहीं टूर्नामेंट में धोनी हर साल पार्टीसिपेट करता था. लास्ट जो 2004 के पहले 2003 में टूर्नामेंट हुआ था हमारा वो मैच में धोनी खेला था और धोनी का टीम को खुद चैंपियन भी धोनी कराया था. तो ऐसा भी एक सिचुएशन था कि धोनी विकेटकीपिंक कर रहा था टाटा के साथ गेम था लास्ट ओवर में आठ रन बाकी था तो सब सोच रहा था कौन बॉल करेगा तो धोनी इतना कॉन्फिडेंट था कि विकेटकीपिंग छोड़कर अपने हाथ से बॉल लेकर वो आठ रन बचाकर अपनी टीम को चैंपियन किया. और टूर्नामेंट में मैन ऑफ द मैच भी धोनी को ही मिला था.
हैलीकॉप्टर शॉट –
खड़गपुर के ट्रैफिक ग्राउंड पर आजकल बड़े-बडे ट्रक खड़े होते हैं लेकिन एक वक्त ये टेनिस बॉल क्रिकेट टूर्नामेंट का सबसे चर्चित मैदान हुआ करता था. खास बात ये है कि अंतर्राष्ट्रीय मैचों में पहली या आखिरी गेंद पर छक्का जड़ने का हुनर भी धोनी ने इसी मैदान पर सीखा था. दरअसल इस ग्राउंड का ऑफ साइड बेहद छोटा करीब 22 गज का था. इसीलिए इस ग्राउंड पर नियम था कि ऑफ साइड पर बल्लेबाज को छक्का या चौका मारने पर भी सिर्फ दो ही रन मिलेगें. यानी छक्का औऱ चौका सिर्फ लेग साइड पर मारा जा सकता था. यही वजह थी कि इस मैदान पर गेंदबाज रन बचाने के लिए गेंद को ऑफ स्टंप पर ही ज्यादा डालते थे. ऐसे हालात में धोनी ने इस ग्राउंड पर छक्का और चौका लगाने के लिए हैलीकॉप्टर शॉट इजाद किया जिसने आगे चल कर उनके क्रिकेट करियर में धूम मचा दी.
प्रदीप सरकार कहते हैं
लास्ट 2003 में खेले गए डे नाइट में फाइनल में मैन ऑफ द मैच भी धोनी हुआ था. उसी टाइम फाइनल में एक बंगाल का प्लेयर भी आया था. वहीं यहा पे कपिल देव भी आए. यहां कई बड़े प्लेयर आए हैं तो धोनी जब लास्ट खेला था तो बंगाल का प्लेयर शिवसागर सिंह आया था ये छोटा स्टोरी है तो स्टेज में शिवसागर सिंह बैठा था और धोनी खेल रहा था. मैं धोनी का जानता था तो मैं बोला चलो धोनी शिवसागर से मिल लो तो वो इतना कॉन्फिडेंट था कि बोला रुकिया कोकन दा वो आएगा नीचे आकर वो हमसे मिलेगा हां वो बात सही हुआ शिवसागर उसको देखा तो स्टेज से उतर कर धोनी से हाथ मिलाया तो आज वो धोनी इतना गया हम लोगों के लिए गर्व है.
धोनी के इस व्यवहार पर बिशन सिंह बेदी कहते हैं कि सेल्फ कान्फीडेंस भी जो था बुहत उम्दा सेल्फ कान्फीडेंश था. अगर आप सोचे छोटे से शहर रांची से आया बच्चा. और जब करियर शुरु किया था तो रेलवे में टिकट कलेक्टर था और कितनी जल्दी इसने अपने आप को संभाला और दृढ़ इरादे के साथ सिर्फ अपने आप को नहीं संभाला, जिस टीम में खेला है उस टीम को इकट्टा रखा है. और ये दाद देनी पडेगी. 
सचिन, सौरव और द्रविड के साथ फील्ड पर कप्तान के तौर पर धोनी.
खड़गपुर शहर के छोटे से मैदान से लेकर क्रिकेट के ऊंचे आसमान तक महेंद्र सिंह धोनी ने बेहद कम वक्त में कामयाबी की लंबी छलांग लगाई है. उनकी कप्तानी में जहां सचिन तेंडुलकर, सौरभ गांगुली और राहुल द्रविड़ जैसे टीम इंडिया के पूर्व कप्तानों ने खेला है वहीं उन्होंने देश को दो फार्मेट में विश्व कप का खिताब भी दिलाया है और महेंद्र सिंह धोनी की ऐसी चमत्कारी कामयाबी के पीछे छिपी है तीन डी के फॉर्मेले की एक कहानी. वो कहानी भी सुनिए खुद धोनी के कोच की जुबानी. 
धोनी के कोच सुब्रता बनर्जी कहते हैं – उसका जो सबसे बड़ा स्ट्रेंथ है वो तीन चीज में बड़ा ध्यान देता है. औऱ ये हर एंगल में जरूरी होता है. Diciplin dedication and determination i think so. 3 D उनके अंदर 100 परसेंट है.  इसलिए उसके लिए डेस्टिनेशन में प्रॉब्लम नहीं आएगा ऑटोमेटेकली वहां पर पहुंचेगा. Diciplin..dedication and determination ये तीनों उसके अंदर पूरा है . और हम अब बोल रहे हैं आपको कि यही विकेट में फास्ट विकेट में जो अभी खेल नहीं पा रहा है वहीं धोनी को आप लोग पहचान नहीं पाएगें वर्ल्डकप में ये मेरा विश्वास है और आप लोग देख लीजिएगा ये होना ही है.
धोनी के दोस्त सत्यप्रकाश कृष्ण कहते हैं- बहुत बड़े बड़े महारथी लोग हैं जो इंडिया टीम को सेलेक्ट करते हैं या माही को जिसने सेलेक्ट किया है  कैप्टनशिप के लिए सोच समझ कर ही किया होगा . मतलब ये है कि सचिन तेंडुलकर धोनी के अंडर खेल रहे हैं ये मैं बोल रहा था कि बड़ा बात नहीं है लेकिन सचिन तेंडुलकर को कैसे हैंडेल करता होगा ये बहुत बड़ा बात है सिर्फ सचिन ही नहीं सौरव गांगुली..राहुल दविड़…लक्ष्मण..सहवाग..युवराज..जहीर जो कि एक टाइम था जब धोनी उनके आस पास ही नहीं था तो इन बड़े बड़े खिलाड़ियों को धोनी कैसे हैंडेल करता होगा ये बहुत बड़ा बात है ..ग्रेटनेस है उसका.
धोनी कैसे बने कैप्टन कूल-
अपने लिये नये रास्ते बनाने वाले.. एक सौ बीस करोड़ की आबादी की उम्मीदों को अपने साथ ढोने वाले और कोई नहीं बल्कि महेन्द्र सिंह धोनी ही हैं. और इस खड़गपुर स्टेशन पर खड़े होकर उन्ही की बात की जा रही है. जी हां महेन्द्र सिंह धोनी का एक पड़ाव ये प्लैटफार्म भी था ये शहर भी था. टीम इंडिया के कप्तान धोनी को पहली सरकारी नौकरी यहीं मिली थी. मार्च 2001 में महेन्द्र सिंह धोनी ने बतौर टिकट कलेक्टर इसी खड़गपुर स्टेशन पर काम शुरु किया था.
बाइस साल के धोनी जब रेलवे की नौकरी करने खड़गपुर आए तो क्रिकेट के मैदान के उनके साथी रांची में ही छूट गए थे. लेकिन धोनी की फितरत और स्टेशन पर टिकट कलेक्टरी की नौकरी में कोई मेल ना बन सका. कहां सीधी पटरी पर भागने वाली ट्रेन और कहां रपटिली उछाल मारती गेंद को काबू करने वाले धोनी. यही वजह थी की खड़गपुर में धोनी ने क्रिकेट की अपनी एक नई दुनिया बसा ली थी. साउथ ईस्टर्न रेलवे के कोच सुब्रता बनर्जी बताते है कि क्रिकेट को लेकर धोनी की दीवानगी ने उन्हें भी चौंका कर रख दिया था. 
धोनी के कोच सुब्रता बनर्जी कहते हैं कि इंटर रेलवे में पहले दो मैच में धोनी से रन नहीं बना. धोनी के बल्ले से एक में 8 और एक में 13 रन बनाए इस पर उन्होंने धोनी को बोला ये क्या कर रहे हो तुम. तुम इंडिया के लिए खेलने का सपना देखते हो और वनडे ही उसका सपना था. तो उसी समय में मैं बोला कि तुम क्या कर रहे हो. तुम्हारा सब पर्फॉमेंस कोई न कोई देख रहा है. इस पर धोनी ने कहा- टीम का कुछ नहीं होने वाला टीम अच्छी नहीं है. मैंने कहा तुम अपना परफॉर्मेंस करो. इसके बाद धोनी ने कोच से कहा कि ठीक है नेक्स्ट डे देख लीजिएगा आप. दूसरे दिन हाजीपुर रेलवे के साथ मैच में धोनी ने जबरदस्त बल्लेबाजी करते हुए 62 बॉल में 130 के आसपास रन बनाए. हम लोग मैच जीत गए. वेरी नेक्स्ट मैच में 119 हम लोग मैच जीत गए. थर्ड मैच में 93 मतलब तीनो धमाकेदार इनिंग्स के बाद कोच समझ गए कि ये तो कोई समान्य प्लेयर नहीं है.
यहीं गोल-कुली का एक कमरे का मकान है जहां धोनी रहा करते थे. एक कुंआ है जहां वो खुले में नहाया करते थे. यहां क्रिकेटर दोस्तों की मंडली ही उनका परिवार था और क्रिकेट उनका जीवन.
रणजी क्रिकेट खेल चुके सत्यप्रकाश कृष्णा बताते हैं कि महेंद्र सिंह धोनी जब साल 2000 में नौकरी करने खड़गपुर आए थे उन दिनों रेलवे क्वार्टर में धोनी उन्ही के साथ रहा करते थे. कृष्णा बताते हैं कि रेलवे क्वार्टर के उनके कमरे में उन दिनों सिर्फ एक ब्लैक एंड व्हाइट टीवी हुआ करता था जिस पर क्रिकेट मैच देखने को लेकर धोनी का अक्सर अपने रुम मेट के साथ झगड़ा होता था.  
वो बताते हैं कि एक चैनल पर दिखा रहा था मुकद्दर का सिकंदर और एक में दिखा रहा था मैच जिसमें सचिन का 100 था तो दीपक और धोनी में थोड़ा बहसा-बहसी हुआ. एक ने कहा फिल्म देखेंगे तो दूसरे ने कहा मैच.इस बात पर दोनों में लड़ाई भी हुई. अल्टी मेटली हम यहा पहुंचे कि मैच देखें. तो जब-जब सचिन का कवर स्ट्रेट ड्राइव दिखाता था तब तब धोनी कहता था दीपक से पैर छू पैर छू भगवान है. कैसे वो चौका मार रहा है तो धोनी सचिन का इतना बड़ा फैन था. कहने का मतलब ये है कि जिस सचिन को पूरा दुनियां भगवान बोलता है और धोनी खुद भी उसको भगवान बोल रहा है वो सचिन तेंडुलकर उसकी कैप्टनशिप में खेला ये बहुत बड़ी बात है.
जब बल्ले को थामा धोनी ने-
2001 से 2003 तक धोनी में रहे लेकिन उनसे जुड़ी बेशुमार बातें कही सुनी जाती हैं. ये है खड़गपुर का रेलवे मैदान. धोनी को सफलता मिलने से सालों पहले एक बात यहां हमेशा के लिये कायम हो गयी थी. वो ये कि माही जैसा अनुशासित खिलाड़ी इस मैदान पर पहले कभी नहीं आया. यकीन न हो तो साउथ इस्टर्न रेलवे के कोच सुब्रत कुमार बनर्जी से की सुनिए.
वो कहते हैं महेन्द्र सिंह धोनी के जिस अनुशासन के चर्चे आज भी खड़गपुर में होते हैं उसकी नींव झारखंड के शहर रांची में पड़ी थी जहां 7 जुलाई 1981 को महेन्द्र सिंह धोनी का जन्म हुआ था. रांची का जवाहर विद्यालय मंदिर स्कूल जहां महेंद्र सिंह धोनी ने स्कूल की पढ़ाई की है और इसी स्कूल में सबसे पहले धोनी ने क्रिकेट का बल्ला भी थामा था.
स्कूल के कोच केशव रंजन बनर्जी बताते हैं – स्कूल के दिनों में हर हाल में जीतने का सबक सीखने वाले धोनी आज भी अपना वो सबक भूले नहीं हैं हांलाकि क्रिकेट का बल्ला थामने से पहले वो फुटबॉल और बैडमिंटन ज्यादा खेलते थे. लेकिन साल 1992 में जब धोनी छटवीं क्लास में पढ़ रहे थे उन दिनों उनके स्कूल को एक विकेट कीपर की जरुरत थी लिहाजा उन्हें विकेट के पीछे खड़ा होने का मौका मिला. ये मौका धोनी के लिए महज एक संयोग भर था जो बाद में हिंदोस्तान के लिए एक सुखद सुयोग बन गया.
जब स्कूल के बाकी के साथी पढ़ाई से समय बचने पर खेलते थे तब महेन्द्र सिंह धोनी उर्फ माही क्रिकेट से समय मिलने पर पढ़ाई कर लिया करते थे लेकिन रिजल्ट कभी इतने बुरे नहीं आये कि ज्यादा फिक्र किया जाये. लिहाजां क्रिकेट के साथ पढ़ाई भी चलती रही .
धोनी के दोस्त और पड़ौसी क़मर अहमद कहते हैं रांची के मैदानों में महेंद्र सिंह धोनी से जुड़ी तमाम बातें आज भी गुलजार हैं. रांची में धोनी के साथ खेलने वाले उनके दोस्त हो या फिर धोनी को क्रिकेटर बनाने वाले उनके कोच हों, सभी इस बात पर सहमत है कि वो आज के जमाने के एकलव्य हैं. रांची में क्रिकेट की बेहतर सुविधाएं तो मौजूद नहीं थी लेकिन यहां मैदान पर सबसे ज्यादा मेहनत करने वाला अगर कोई शख्स था तो वो युवा धोनी ही थे.
ये महेंद्र सिंह धोनी के अपनेपन का ही कमाल है कि रांची का बच्चा- बच्चा आज उन्हें अपना मानता है. धोनी के लंबे संघर्ष और उनकी कामयाबियों में वो खुद को हिस्सा मानता है. क्योंकि रांची में ही पहली बार मची थी धोनी नाम की धूम. स्कूल में क्रिकेट का कमाल दिखाने के बाद धोनी जिला स्तरीय कंमाडो क्रिकेट क्लब से खेलने लगे थे. इसके बाद उन्होनें सेन्ट्रल कोल फील्ड लिमिटेड की टीम से भी क्रिकेट खेला और हर जगह अपने खेल से लोगों का दिल जीतते चले गए. इस वक्त तक धोनी को करीब से जानने वालों को भी ये अहसास हो चला था कि वो काफी आगे जाएंगे लेकिन इतना आगे जायेंगे कि टीम इंडिया के कप्तान भी बनेगें ये बातें 1998 में अकल्पनीय थी.
पंद्रह साल पहले जब महेंद्र सिंह धोनी ने पहली बार रणजी मैच खेला था तब उनकी उम्र 18 साल थी. धोनी बिहार रणजी टीम की तरफ से खेलते थे. इसी दौरान रेलवे में बतौर टिकट कलेक्टर धोनी की नौकरी भी लग गई थी और उनकी पहली पोस्टिंग पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में हुई थी. महेंद्र सिंह धोनी ने खड़गपुर के मैदानों को 2001 से लेकर 2003 के आखिर तक अपने खेल से गुलजार किए रखा. खड़गपुर के इन्हीं मैदानों से निकल कर वो साल 2005 में पहली बार टीम इंडिया का हिस्सा बने और फिर बने टीम इंडिया के कैप्टन कूल. जिसके बाद से आज तक जारी है दुनिया भर में धोनी की धूम.  


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