जब रेगिस्तान में बदलाव आ सकता है तो हमारे देश में क्यों नहीं???

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 भारत के प्रधानमंत्री के समक्ष भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चुनौती पर अमेरिका निवेशक और पुस्तकों “रिच डेड पुअर डेड” सीरीज के लेखक रॉबर्ट कियोसाकी ने अपने बेंगलुरू में वक्तव्य में कहा कि नरेंद्र मोदी एक तेज तर्रार प्रधानमंत्री हैं, लेकिन उन पर भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का विलक्षण काम है और उनकी नई पहल से कई लोग परेशान भी हो सकते हैं। उन्होंने मीडिया को भी बताया कि यह बहुत कठिन काम है, कि मैं उनकी जगह कभी नहीं होना चाहूंगा।
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 “यूनाइटेड अरब अमीरात” (UAE) कहने के लिए ८ छोटे-छोटे देशो का संगठन है, जो सभी इस्लामी देशों को जोड़कर बनाया गया जिसकी राजधानी सबसे बड़ा व अमीर देश अबूधावी हैं।  यू.ए.इ. की जनसँख्या घंत्वानुसार २०% मूल-निवासीयों ने ८०% बाहरी देशों के नागरिकों को पर्यटन से हो रहे लाभानुसार काम दिया जा रहा हैं और कहा जाए तो कृतिम सोंदर्य वहाँ का पर्यटन स्थल बना हुआ हैं, जबकी हमारे पास विश्व की सबसे महत्वपूर्ण एतिहासिक धरोहरें मौजूद हैं।
  मेरी आँखों से देखें हों सकता है आपको भी हर्ष के साथ अचरज की बात लगे :-  दुनिया में जहाँ इस्लामी देशों की कट्टरता व दुवीधापूर्ण बातें कहते मीडिया नहीं थकता और अखबारों की सुर्खी भी उसकी चर्चा के बिना अधूरी रहती हैं, लेकिन हम भी कम अंधविश्वासी नहीं हैं। वो जो दिखाए सच और सफ़ेद कागज़ काला हों जाए वह सो आने सच। जनाब हकीक़त तो कुछ और ही है जो लोग बताना और दिखाना ही नहीं चाहते और इस पर भी लोग अटपटी या क्रोधित हो कर पूरी तहकीकात किये बिना ही शालीनता खो देते हैं। इस्लामी देश में रहकर अपना धंदा व रोज़गार कर रहे गैर-मुस्लिम भारतीयों का कहना कि हम यहाँ सुरक्षित व बिना भय-आंतक के स्वतंत्र रहकर अपनी मेहनत की कमाई रोटी-रोजी से खुश हैं। बस ”भारत में शांती और विकास हों जाए तो हमारा देश भी पर्यटन के छेत्र में और आगे बढ़कर नागरिकों को सवतः रोज़गार उपलब्ध करा सकता है।  “उनका कहना कि इस्लामी देश में हमें पूजा की कोई मनाही नहीं है और सरकार ने ही हमें हमारे मंदिर-चर्च और गुरुद्वारे बनवाकर दिए हैं।  हम अपने-अपने त्यौहार भी स्वतंत्र रहकर ही पूर्ण हर्षौल्लास के साथ मनाते हैं, कहीं कोई बंधन नहीं और न ही हमें कोई हिन्दू-इसाई या सिख कहता बस हमें हमारे नाम और काम से जाना जाता हैं।
गर्व की बात :-  यू.ए.इ. में भारत के समस्त प्रान्तों के नागरिक वहां अपना स्वंय का व्यावसाय चलाते हैं या नौकरी करते हैं जिसमें अधिकांश दक्षिण भारतीय, गुजराती, राजस्थानी, महाराष्ट्र के मुख्यता  व अन्य प्रान्तों के भी भारतीय नागरिकों की संख्या भी कम नहीं। भारत देश के नागरिक कब अपना देश समझेंगे और कब आत्मनिर्भर होंगे? अनुदान आरक्षण और गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों के लिए योजनाएं,  मानो देश सिर्फ इसलिए स्वतंत्र हुआ था। क्या यह सही है? बहाल लोकतंत्र दिया हुआ पुरस्कार हो गया है???




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