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एबीपी न्यूज के खास कार्यक्रम घोषणापत्र में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने तीखे सवाले के हुए जवाब दिये. जीतनराम मांझी ने कहा कि हम यदि कुछ नहीं करते तो इतिहास हमें माफ नहीं करता. हमने परिस्थिति चाहे जो भी हो हमने अपने लोगों के लिए काम किया. उनकी मदद की कोशिश की.
सवाल: क्या आपमें और रामविलास पासवान में बड़ा नेता बनने की होड़ है?
उत्तर: 1977 से रामविलास पासवान जी नेता हैं मंत्री हैं. हम 1980 में हम राजनीति में आये. हम मानते हैं कि वह हमसे बड़े नेता हैं. अब यदि काम की बात करें तो हमने भी बहुत काम किये हैं. लेंथ ऑफ सर्विस की बात करें तो रामविलास पासवान बड़े नेता हैं. नीतीश कुमार के दुश्चक्र था कि दलित को तोड़कर राज करें. हम मियां मूंह मिट्ठु बनें तो ये ठीक नहीं है. मोदी जी के बाद मुजफ्फरपुर और भागलपुर में सबसे ज्यादा मेरे भाषण पर तालियां बजीं.
सवाल: एनडीए की सरकार बनी तो क्या मुख्यमंत्री बनेंगे?
उत्तर : हमने बीजेपी से कह दिया था कि दल बीजेपी बड़ी है तो मुख्यमंत्री उनका होगा. हम हर दम कहते रहे हैं. नीतीश और लालू जी को धूल चटाना मेरा मकसद है. यही मेरी पॉलिसी है.
सवाल: क्या एनडीए को चेहरा के सात चुनाव में आना चाहिए?
उत्तर: ये कोई नई बात नहीं है. कई राज्यों में हो चुका है. एक होता है कि नेता प्रोजेक्ट करके चुनाव होता है. दूसरा बाद में पार्टी और विधायक बनके चुनते हैं. एनडीए में कई नेता हैं जो मुख्यमंत्री के लायक हैं. सुशील कुमार मोदी हैं.. नंद किशोर यादव हैं.
सवाल: नीतीश कुमार ने आपको क्यों हटाया?
उत्तर: हम मुख्यमंत्री के रूप में नीति आयोग की बैठक में गए. पीएम मोदी से मिले कोई डील की बात नहीं हुई. हम निर्णय ताबड़तोड़ ले रहे थे इसलिए नीतीश कुर्सी की वजह से डर गए.
मांझी जी आपके लिए विकास का विजन क्या है? इस पर मांझी ने कहा कि हम शैक्षणिक और सामाजिक विकास पर ध्यान देते हैं.
सवाल: पासवान पर आरोप, आपकी पार्टी में भी तो वंशवाद है?
उत्तर: आपके बेटे और चिराग पासवान में क्या अंतर है? मेरे बेटे में सांगठनिक क्षमता है इसलिए टिकट दिया. इसके पहले वह अच्छा नौकरी कर रहा था. समाज हित के लिए वह आया है. समाज में मेहनत कर रहा है. आईएस का बेटा आईएस, आईपीएस का बेटा आईपीएस होता है. सब लोग जिस धंधे में रहते हैं उसमें बेटा परिवार को लाते हैं.
आरक्षण होना चाहिए. कब तक होना चाहिए. शैक्षणिक और सामाजिक समानता नहीं हो जाती हैं.
उत्तर: सबका अपना -अपना सम्मान होता है. हमारे अनकंडीशनल समर्थन था. कुछ लोग कह रहे थे कि मांझी अभी ट्रायल में हैं तब हमनें बोला.
हम चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे. उम्र राजनेताओं का 70 से 75 से अधिक नहीं होनी चाहिए.
सवाल: सीएम नहीं बनेंगे तो फिर चुनाव बाद भूमिका क्या होगी?
उत्तर: हम मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे हमने पहले ही घोषणा कर दिया है. हमने नई पार्टी बनाई है कि हम अपने लोगों के लिए किसी की भी सरकार पर दबाव बनाये जाएंगे.
क्या मांझी के पास चुनाव बाद सियासी विकल्प खुला है. इस पर मांझी ने कहा कि हम गरीबों के लिए जो काम कर रहे थे. उसको नीतीश कुमार ने बंद कर दिया. फिर हमने सोचा कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है. इसलिए हम बीजेपी से गठबंधन करके नीतीश को कमजोर करेंगे.. अपना बदला लेंगे. हम ये साफ कहते हैं कि 1990 में लालू यादव ने गरीबों को मुंह दिया वह आवाज बनें.
गया जिले के महकार गांव में जीतन राम मांझी का मकान दूर से देखने पर ही नजर आ जाता है लेकिन पहले इस घऱ की तस्वीर ऐसी नहीं थी. जीतन राम मांझी को आज भी अपने पिता की कहीं वो बातें याद है कि किस तरह मुश्किलों से जूझते हुए उन्होंने जमीन मालिक से मिली जगह पर अपनी पहली कुटिया बनाई थी.
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी बताते हैं कि महकार जहां पर मेरे मकान है वो उस वक्त फूस से सीज से कांटा से भरा हुआ था. उस जमीन को हमारे पिता जी जहां काम करते थे उन्होंने दिया कि लो तुम इसी में अपना बनाओ. तो हमारे पिताजी सब चीज को साफ सुथरा कर करके. किसी ना किसी रुप में दो कोठरी बना कर के. हम लोग रहने लगे. कोठरी बनी हुई थी मिट्टी की और फूस की. वो हमको याद है. और फूस मिट्टी से ही घेराबंदी कर दिया गया था. और घर में किवाड़-विवाड़ नहीं था. बाद में जब हम लोग आगे बढ़े तो हमने देखा कि पिताजी वो कही से किवाड़ी आगे लगाए. और घर हमारा वो किवाड़ी नहीं वो टाटी लगती थी. वो लाइफ हमारा वहां से शुरु हुआ.
लेकिन वक्त का पहिया घूमता रहा और जीतन राम मांझी जब 11 बरस के हो गए तो उनके पिता रामजीत राम मांझी को उनकी पढ़ाई लिखाई का ख्याल आया. इस बारे में जब रामजीत मांझी ने अपने जमीन मालिक से बात की तो उन्हें बदले में दुत्कार ही मिली थी .
बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी बताते हैं कि सब कोई एकदम गुस्सा में आ गए कि पढा कर क्या आप अपने बेटा का कलेक्टर बनाओगे. पढाने की क्या जरुरत है. लेकिन पिताजी के दिमाग में भी ये बात बैठी थी कि हम बेटा को पढाए. तो उन्होने कहा कि ऐसी स्थिती है तो हम गांव छोड़ देंगे. और चले जाएंगे हम बाहर. और बेटा को हम पढाएंगे. ये बात उनको सेट बेक लिया कि एक विश्वासी मजदूर हमारा चला जाएगा तो ठीक नहीं होगा. तो उन्होने एक कॉम्प्रोमाइज का फॉर्मूला निकाला कि हमारे बच्चे को पढाने के लिए मास्टर आता है. जीतन काम धाम करके पांच छह बजे के बाद उन्ही लोगों के साथ बैठ जाएगा. बैठ जाएगा तो पढेगा. हमको उस समय कुछ दिमाग में बात नहीं थी कि पढना है कि क्या करना है हम कुछ नहीं जानते थे.
जीतन राम मांझी बिना स्कूल गए ही एक के बाद एक क्लास पास करते चले गए . लेकिन महकार गांव से निकलकर इस मुकाम तक पहुंचने में उन्हें कड़े इम्तिहान भी देने पड़े .
राजनीति की दुनिया में आने के बाद मांझी का विवादों से भी नाता जुड़ा . कभी अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहे तो कभी नाते रिश्तेदारों की वजह से . फिलहाल विवादों को पीछे छोड़ एनडीए की सरकार बनाने में जुटे हैं.
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