बिहार में बाहरियों की एंट्री पर ब्रेक !

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पटना: तो क्या बिहार में अब बाहरी लोगों का पढना लिखना और नौकरी करना मुश्किल हो जाएगा। बिहार सरकार ने नौकरी और शिक्षा में स्थानीय लोगों के लिए सीटें रिजर्व करने का मुद्दा उठाकर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है।
आरजेडी प्रमुख लालू यादव की मांग पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो हामी भरी ही है। बीजेपी भी इस मुद्दे पर हां में हां मिला रही है। बिहार में बीजेपी स्थानीय लोगों के आरक्षण के पक्ष में है लेकिन यही बीजेपी झारखंड में इस नीति का विरोध करती है।
अब अगर बिहार में इस फैसले पर मुहर लगी तो यहां जितने भी शैक्षणिक संस्थान हैं उसमें 80 फीसदी सीटें बिहार के छात्रों के लिए रिजर्व हो जाएंगी। राज्य सरकार की नौकरियों में भी 80 फीसदी नौकरी बिहार के ही लोगों को मिलेगी।
बिहार में कुल 4 लाख सरकारी कर्मचारी काम करते हैं। झारखंड और पूर्वी यूपी के लोग यहां सरकारी और निजी क्षेत्रों में काम करते हैं। हालांकि इनकी संख्या ज्यादा नहीं है, लेकिन जो भी है उन पर इस स्थानीय आरक्षण के लागू होने से असर तो पड़ेगा ही।
वैसे भी बिहार में जितने बाहरी लोग नौकरी या पढ़ाई नहीं करते उससे कई गुणा ज्यादा दिल्ली, मुंबई, पंजाब, गुजरात में पढ़ाई और नौकरी करते हैं। वो इसलिए क्योंकि बिहार में अच्छी नौकरी नहीं है, बिहार में अच्छे शिक्षण संस्थान नहीं हैं, हजारों छात्र हर साल डीयू और दूसरी यूनिवर्सिटियों में दाखिला लेते हैं। बिहार में बड़ी कंपनियों का निवेश नहीं है।
स्थानीय के सवाल पर ही मुंबई, असम में बिहारियों पर हमले होते रहते हैं। हाल ही में डीयू में भी स्थानीय छात्रों के नामांकन का मुद्दा उठ चुका है जिसका ज्यादा असर बिहार के छात्रों पर ही पड़ने वाला है। ऐसे में नीतीश सरकार का ये फैसला तो बिहार से बाहर रहने वाले बिहारियों पर और ज्यादा असर डाल सकता है।

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