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क्राइम न्यूज़: मानवीय इतिहास में सीरियल किलिंग की घटनाएं काफी पुरानी हैं. 'सीरियल किलर' ठग बहराम से लेकर निठारी के 'नर पिशाच' सुरेंद्र कोली तक अनेकों नाम हमारे सामने हैं. सीरियल किलिंग की घटनाओं पर एक सीरीज पेश कर रहा है. इस कड़ी में आज पढिए इतिहास के सबसे कुख्यात सीरियल किलर ठग बहराम के बारे में.
सीरियल किलर के रूप में ठग बहराम पूरी दुनिया में कुख्यात है. उसका जन्म 1765 में हुआ था. 50 वर्षों के समय में ठग उसने रुमाल के जरिए गला घोंटकर 900 से अधिक लोगों की हत्या की थी. उसको 75 वर्ष की उम्र में पकड़ लिया गया. 1840 में उसको फांसी की सजा दी गई.
पीले रुमाल से 900 लोगों का कत्ल
बताते हैं कि बहराम एक बार जिस रास्ते से गुजरता था, वहां लाशों की ढेर लग जाती थी. वह पीले रुमाल से लोगों की हत्या करता था. दिल्ली से लेकर ग्वालियर और जबलपुर तक उसका इस कदर खौफ हो गया था कि व्यापारियों ने रास्ता चलना बंद कर दिया था.
सीरियल किलर के रूप में ठग बहराम पूरी दुनिया में कुख्यात है. उसका जन्म 1765 में हुआ था. 50 वर्षों के समय में ठग उसने रुमाल के जरिए गला घोंटकर 900 से अधिक लोगों की हत्या की थी. उसको 75 वर्ष की उम्र में पकड़ लिया गया. 1840 में उसको फांसी की सजा दी गई.
पीले रुमाल से 900 लोगों का कत्ल
बताते हैं कि बहराम एक बार जिस रास्ते से गुजरता था, वहां लाशों की ढेर लग जाती थी. वह पीले रुमाल से लोगों की हत्या करता था. दिल्ली से लेकर ग्वालियर और जबलपुर तक उसका इस कदर खौफ हो गया था कि व्यापारियों ने रास्ता चलना बंद कर दिया था.
तत्कालीन सरकार में ठगों और डकैतों पर काम करने वाले जेम्स पैटोन ने लिखा है कि बहराम ठग ने वाकई में 931 लोगों को मौत के घाट उतारा था. उसने उनके सामने ही इन हत्याओं के बारें में स्वीकार भी किया है.
उस समय के ठग आज के ठगों से अलग थे. वर्तमान में धोखाधड़ी करने वालों को ठग कहा जाता है, लेकिन उस समय ठग बहुत ही खूंखार प्रवृत्ति के होते थे. उनका एक गिरोह होता था, जो काफिलों में वेष बदलकर साथ लग जाता था. मौका देख कर लोगों की हत्या करके लूट लेता था.
गायब हो जाता था पूरा काफिला
व्यापारियों, पर्यटकों, सैनिकों और तीर्थयात्रियों का पूरा काफिला रहस्यमय तरीके से गायब हो जाता था. सबसे हैरानी की बात तो ये थी कि पुलिस को इन लगातार गायब हो रहे लोगों की लाश तक नहीं मिलती थी. 1809 मे अंग्रेज अफसर कैप्टन विलियम स्लीमैन को गायब हो रहे लोगों के रहस्य का पता लगाने की जिम्मेदारी सौपी गई.
कैप्टन स्लीमैन की जांच में इस बात का खुलासा हुआ कि बहराम ठग का गिरोह इस काम को अंजाम देता है. इस गिरोह में करीब 200 सदस्य थे. इसके बाद ठगों के खिलाफ मुहिम छेड़ दी गई. इसके लिए बाकयदा एक विभाग बनाया गया, जिसका मुख्यालय जबलपुर में था. स्लीमैन ने दिल्ली से लेकर जबलपुर तक के हाईवे के किनारे के जंगल साफ करा दिए. गुप्तचरों का एक बडा जाल बिछाया.
खास भाषा में बात करते थे ठग
गुप्तचरों की मदद से ठगों की भाषा को समझने की कोशिश की गई. ठग खास भाषा में बातचीत करते थे. इसे 'रामोसी' कहते थे. रामोसी एक सांकेतिक भाषा थी. इसे ठग अपने शिकार को खत्म करते वक्त इस्तेमाल करते थे.
10 साल बाद आया हाथ
कैप्टन स्लीमैन करीब 10 साल बाद बहराम ठग को गिरफ्तार कर पाए. उसने बताया कि उसके गिरोह के सदस्य व्यापारियों का भेष बनाकर जंगलों में घूमते रहते थे. व्यापारियों के भेष में इन ठगों का पीछा बाकी गिरोह करता रहता था. रात के अंधेरे में जंगल के पास काफिले को शिकार बना लिया जाता था. धर्मशाला और बाबड़ी आदि के पास भी गिरोह सक्रिय रहता था.
ऐसे करते थे शिकार
काफिले के लोग जब सो जाते थे, तब ठग गीदड़ के रोने की आवाज में हमले का संकेत देते थे. इसके बाद गिरोह के साथ बहराम ठग वहां पहुंचा जाता. अपने पीले रुमाल में सिक्का बांधकर काफिले के लोगों का गला घोंटता जाता था. लोगों की लाश को कुओं आदि में दफन कर दिया जाता था. बहराम की गिरफ्तारी के बाद उसके गिरोह के बाकी सदस्य भी गिरफ्तार कर लिए गए.
उस समय के ठग आज के ठगों से अलग थे. वर्तमान में धोखाधड़ी करने वालों को ठग कहा जाता है, लेकिन उस समय ठग बहुत ही खूंखार प्रवृत्ति के होते थे. उनका एक गिरोह होता था, जो काफिलों में वेष बदलकर साथ लग जाता था. मौका देख कर लोगों की हत्या करके लूट लेता था.
गायब हो जाता था पूरा काफिला
व्यापारियों, पर्यटकों, सैनिकों और तीर्थयात्रियों का पूरा काफिला रहस्यमय तरीके से गायब हो जाता था. सबसे हैरानी की बात तो ये थी कि पुलिस को इन लगातार गायब हो रहे लोगों की लाश तक नहीं मिलती थी. 1809 मे अंग्रेज अफसर कैप्टन विलियम स्लीमैन को गायब हो रहे लोगों के रहस्य का पता लगाने की जिम्मेदारी सौपी गई.
कैप्टन स्लीमैन की जांच में इस बात का खुलासा हुआ कि बहराम ठग का गिरोह इस काम को अंजाम देता है. इस गिरोह में करीब 200 सदस्य थे. इसके बाद ठगों के खिलाफ मुहिम छेड़ दी गई. इसके लिए बाकयदा एक विभाग बनाया गया, जिसका मुख्यालय जबलपुर में था. स्लीमैन ने दिल्ली से लेकर जबलपुर तक के हाईवे के किनारे के जंगल साफ करा दिए. गुप्तचरों का एक बडा जाल बिछाया.
खास भाषा में बात करते थे ठग
गुप्तचरों की मदद से ठगों की भाषा को समझने की कोशिश की गई. ठग खास भाषा में बातचीत करते थे. इसे 'रामोसी' कहते थे. रामोसी एक सांकेतिक भाषा थी. इसे ठग अपने शिकार को खत्म करते वक्त इस्तेमाल करते थे.
10 साल बाद आया हाथ
कैप्टन स्लीमैन करीब 10 साल बाद बहराम ठग को गिरफ्तार कर पाए. उसने बताया कि उसके गिरोह के सदस्य व्यापारियों का भेष बनाकर जंगलों में घूमते रहते थे. व्यापारियों के भेष में इन ठगों का पीछा बाकी गिरोह करता रहता था. रात के अंधेरे में जंगल के पास काफिले को शिकार बना लिया जाता था. धर्मशाला और बाबड़ी आदि के पास भी गिरोह सक्रिय रहता था.
ऐसे करते थे शिकार
काफिले के लोग जब सो जाते थे, तब ठग गीदड़ के रोने की आवाज में हमले का संकेत देते थे. इसके बाद गिरोह के साथ बहराम ठग वहां पहुंचा जाता. अपने पीले रुमाल में सिक्का बांधकर काफिले के लोगों का गला घोंटता जाता था. लोगों की लाश को कुओं आदि में दफन कर दिया जाता था. बहराम की गिरफ्तारी के बाद उसके गिरोह के बाकी सदस्य भी गिरफ्तार कर लिए गए.
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