दूसरों के घर रौशन करने वालों के घर में आज खुद अँधेरा

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 हमीरपुर में आधुनिकता के दौर ने कुम्हारों के धंधे पर जहां ग्रहण लगा दिया है। वहीं चाइनीज इलेक्ट्रॉनिक दीयों और झालरों की जगमगाहट ने लोगों को मिट्टी के दीयों से कोसों दूर कर दिया है। दूसरों का घर रौशन करने वाले कुम्हारों के घरों में आज खुद अंधेरा नजर आ रहा है।

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कुम्हार मिट्टी के दिये बना दिवाली में बेंच अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। लेकिन चाइनीज दीयों के बाजार में आने से इनका धन्धा चौपट हो गया और यह कुम्हार बेरोजगारी की कगार पर आ खड़े हुए। इलेक्ट्रॉनिक दीयों की बाजार चकाचौंध ने लोगों के दिलों से मिट्टी के दीयों की अहमियत को खत्म कर दिया है।

आधुनिकता की इस चकाचौंध ने लोगों के मन में मिट्टी के दीयों की जगह चाइनीज दीयों और झालरों ने ले लिया है। सोशल मीडिया में भले ही चाइनीज सामानों की खरीददारी को लेकर विरोध जताया जा रहा है और तमाम समाजसेवी, राजनीतिक दल एवं अन्य संगठनों के लोग चाइनीज उत्पादों के बहिष्कार की बात कर रहे है। लेकिन सच्चाई कुछ इससे विपरीत है। दिवाली को लेकर चाइनीज सामानों से दुकानें भरी पड़ी है।

लोग मिट्टी के दीयों की अपेक्षा इलेक्ट्रॉनिक चाइनीज दीयों और झालरों को ज्यादा पसंद कर रहे है। जहां इलेक्ट्रॉनिक चाइनीज दीयों की बिक्री कर रहे दुकानदारों के यहां ग्राहकों की खासी भीड़ जमा है,

वहीं महीनों से मेहनत कर मिट्टी के दिये बनाकर बेंचने वाले कुम्हार ग्राहकों के इन्तजार में टकटकी लगाए बैठे है कि उनके दिए कब बिके और वो अपने परिवार के दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर सके। वही लोगों में इलेक्ट्रॉनिक चाइनीज दीयों की पसंद ने मिट्टी के दीयों की अहमियत को खत्म दिया है।

जिससे मिट्टी के दिए बनाने वाले आज बेरोजगारी के कगार पर खड़े है और अब इनका धंधा समाप्ति के कगार पर पहुंच चुका है।




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