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प्रदोष काल मुहूर्त
26 अक्टूबर 2011 में प्रदोष काल में स्थिर लग्न (वृ्षभ राशि) रात्रि 18:46 से 20:41 बजे तक रहेगा। इसलिये रात 18:46 से 20:41 तक का प्रदोष काल विशेष रूप से श्री गणेश, श्री महालक्ष्मी पूजन, कुबेर पूजन, व्यापारिक खातों का पूजन, दीपदान, अपने सेवकों को वस्तुएं दान करने के लिये शुभ रहेगा। प्रदोष काल मंदिर मे दीप दान, रंगोली और पूजा की पूर्ण तयारी कर लेनी चाहिए। इसी समय मे मिठाई वितरण कार्य भी संपन्न कर लेना चाहिए। द्वार प़र स्वस्तिक और शुभ लाभ का सिन्दूर से निर्माण भी इसी समय करना चाहिए।
पूजा की सामग्री
1. लक्ष्मी व श्री गणेश की मूर्तियां (बैठी हुई मुद्रा में)
2. केशर, रोली, चावल, पान, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बताशे, सिंदूर, शहद, सिक्के, लौंग
3. सूखे, मेवे, मिठाई, दही, गंगाजल, धूप, अगरबत्ती, 11 दीपक
4. रूई तथा कलावा नारियल और तांबे का कलश चाहिए।
पूजा की तैयारी
चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियाँ इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहें। लक्ष्मीजी,गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठे। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।
लक्ष्मीजी की ओर श्री का चिह्न बनाएँ। गणेशजी की ओर त्रिशूल, चावल का ढेर लगाएँ। सबसे नीचे चावल की नौ ढेरियाँ बनाएँ। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। तीन थालियों में निम्न सामान रखें.
ग्यारह दीपक(पहली थाली में)
खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप सिन्दूर कुंकुम, सुपारी, पान (दूसरी थाली में)
फूल, दुर्वा चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक। (तीसरी थाली में)
इन थालियों के सामने पूजा करने वाला स्व्यं बैठे। परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। शेष सभी परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
लक्ष्मी पूजन विधि
आप हाथ में अक्षत, पुष्प और जल ले लीजिए. कुछ द्रव्य भी ले लीजिए। द्रव्य का अर्थ है कुछ धन। यह सब हाथ में लेकर संकसंकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हो। सबसे पहले गणेश जी व गौरी का पूजन कीजिए।
हाथ में थोड़ा-सा जल ले लीजिए और आह्वाहन व पूजन मंत्र बोलिए और पूजा सामग्री चढ़ाइए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। अंत में महालक्ष्मी जी की आरती के साथ पूजा का समापन कीजिये।
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दीवाली के दिन की विशेषता लक्ष्मी जी के पूजन से संबन्धित है। इस दिन हर
घर, परिवार, कार्यालय में लक्ष्मी जी के पूजन के रुप में उनका स्वागत किया
जाता है। दीवाली के दिन जहां गृहस्थ और वाणिज्य वर्ग के लोग धन की देवी
लक्ष्मी से समृद्धि और वित्तकोष की कामना करते हैं, वहीं साधु-संत और
तांत्रिक कुछ विशेष सिद्धियां अर्जित करने के लिए रात्रिकाल में अपने
तांत्रिक कर्म करते हैं।
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प्रदोष काल मुहूर्त
26 अक्टूबर 2011 में प्रदोष काल में स्थिर लग्न (वृ्षभ राशि) रात्रि 18:46 से 20:41 बजे तक रहेगा। इसलिये रात 18:46 से 20:41 तक का प्रदोष काल विशेष रूप से श्री गणेश, श्री महालक्ष्मी पूजन, कुबेर पूजन, व्यापारिक खातों का पूजन, दीपदान, अपने सेवकों को वस्तुएं दान करने के लिये शुभ रहेगा। प्रदोष काल मंदिर मे दीप दान, रंगोली और पूजा की पूर्ण तयारी कर लेनी चाहिए। इसी समय मे मिठाई वितरण कार्य भी संपन्न कर लेना चाहिए। द्वार प़र स्वस्तिक और शुभ लाभ का सिन्दूर से निर्माण भी इसी समय करना चाहिए।
पूजा की सामग्री
1. लक्ष्मी व श्री गणेश की मूर्तियां (बैठी हुई मुद्रा में)
2. केशर, रोली, चावल, पान, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बताशे, सिंदूर, शहद, सिक्के, लौंग
3. सूखे, मेवे, मिठाई, दही, गंगाजल, धूप, अगरबत्ती, 11 दीपक
4. रूई तथा कलावा नारियल और तांबे का कलश चाहिए।
पूजा की तैयारी
चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियाँ इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहें। लक्ष्मीजी,गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठे। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।
लक्ष्मीजी की ओर श्री का चिह्न बनाएँ। गणेशजी की ओर त्रिशूल, चावल का ढेर लगाएँ। सबसे नीचे चावल की नौ ढेरियाँ बनाएँ। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। तीन थालियों में निम्न सामान रखें.
ग्यारह दीपक(पहली थाली में)
खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप सिन्दूर कुंकुम, सुपारी, पान (दूसरी थाली में)
फूल, दुर्वा चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक। (तीसरी थाली में)
इन थालियों के सामने पूजा करने वाला स्व्यं बैठे। परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। शेष सभी परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
लक्ष्मी पूजन विधि
आप हाथ में अक्षत, पुष्प और जल ले लीजिए. कुछ द्रव्य भी ले लीजिए। द्रव्य का अर्थ है कुछ धन। यह सब हाथ में लेकर संकसंकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हो। सबसे पहले गणेश जी व गौरी का पूजन कीजिए।
हाथ में थोड़ा-सा जल ले लीजिए और आह्वाहन व पूजन मंत्र बोलिए और पूजा सामग्री चढ़ाइए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। अंत में महालक्ष्मी जी की आरती के साथ पूजा का समापन कीजिये।
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