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बीजिंग : राष्ट्रपति शी चिनफिंग और चीन के शीर्ष नेताओं के साथ गुरुवार को होने वाली महत्वपूर्ण बैठकों से पहले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बुधवार को कहा कि दुनिया की बेहतरी के लिए भारत और चीन को अपने परस्पर हितों का विस्तार करना चाहिए तथा अपने समन्यवय का आदान-प्रदान करते हुए महत्वपूर्ण तरीके से आगे बढ़ाना चाहिए। बतौर राष्ट्र प्रमुख चीन के अपने पहले दौरे पर गए राष्ट्रपति मुखर्जी को लगता है कि यह ना सिर्फ दोनों देशों के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए भी बेहतर होगा।
चीन की चार आधिकारिक दौरे का बीजिंग चरण शुरू करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, ‘इस यात्रा पर मैं यही संदेश लेकर आया हूं। अनुभव ने विश्वास करना सिखाया है कि हमारे दोनों देशों में अपने समन्यवय को महत्वपूर्ण तरीके से बढ़ाने और आगे बढ़ने की क्षमता है।’ राष्ट्रपति ने कहा, ‘उभरते भारत और उभरते चीन को अपने परस्पर हितों का विस्तार करना चाहिए.. सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि यह उनके लिए अच्छा है। इस यात्रा पर मैं यही संदेश लेकर आया हूं।’ औद्योगिक शहर गुआंगझाओ से कल शुरू हुई मुखर्जी की यात्रा के दौरान चीन के नेताओं के साथ हुई बैठकों और विभिन्न महत्वपूर्ण लोगों के साथ हुई भेंट के अनुभव पर उनसे सवाल किया गया था।
अपने लंबे राजनीतिक जीवन में बतौर विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहते हुए कई बार चीन की यात्रा पर आ चुके 80 वर्षीय प्रणब मुखर्जी ने बीती रात कहा कि भारतीय कूटनीति के मूल सिद्धांत और चीन के साथ उसका संबंध सहयोग के क्षेत्रों का विस्तार कर रहा है तथा असहमति को कम कर रहा है।
गुआंगदोंग की राजधानी गुआंगझाओ में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए कल रात प्रणब मुखर्जी ने कहा था, ‘हम कभी भी असहमति बढ़ाने के पक्ष में नहीं रहे, बल्कि असहमति घटाने और सहमति के क्षेत्रों का विस्तार करने के पक्ष में रहे हैं। भारतीय कूटनीति का यह मूल सिद्धांत है।’ उन्होंने कहा, ‘विभिन्न पदों पर रहते हुए कई दशकों तक मुझे भारत-चीन संबंधों के विकास और प्रगति से जुड़े रहने का सौभाग्य प्राप्त है।’ द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा के लिए कल जब राष्ट्रपति मुखर्जी ‘ग्रेट हॉल ऑफ पीपुल’ में राष्ट्रपति शी से मिलेंगे तो वह चीन के नेतृत्व के साथ संबंधों को राजनीतिक रूप से और बेहतर बनाने का प्रयास करेंगे।
उनका चीन के प्रधानमंत्री ली क्विंग और नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के अध्यक्ष च्यांग देजिआंग से मिलने का भी कार्यक्रम है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि राष्ट्रपति के साथ चीनी नेतृत्व की उच्चस्तरीय बैठकें दिखाती है कि राजनीति के क्षेत्र में अनुभव रखने वाले नेता को कितना महत्व दिया जा रहा है। सांस्कृतिक, शिक्षा के क्षेत्र और बीजिंग की बड़ी हस्तियों के लिए आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा कि ऐसे में जब आधुनिक भारत, शांति, समृद्धि और सतत विकास के अपने प्राथमिक लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है, हम चीन के साथ समानता और मित्रता का संबंध चाहते हैं।
चीन के उपराष्ट्रपति ली युआनचाओ की उपस्थिति में प्रणब मुखर्जी ने कहा, ‘हम अपनी परस्पर समझ को बेहतर बनाने तथा द्विपक्षीय संबंधों को समृद्ध करने के लिए हम संपर्कों के जाल की मैट्रिक्स विकसित करना चाहते हैं। हम अकसर एक-दूसरे को समझने के लिए उधार के प्रिज्म :चश्मे: या द्वितीयक सूत्रों पर निर्भर रहते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘प्रत्यक्ष आदान-प्रदान के माध्यम से तथा लोगों को एक-दूसरे की प्रगति में निवेश करने को सक्षम बनाकर हम इस कमी को दूर करना चाहते हैं।’
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रेखांकित किया कि उपराष्ट्रपति की उपस्थिति यह दर्शाती है कि चीन दो पुरातन स5यताओं के बीच शैक्षणिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को कितना महत्व देता है। भारत से रवाना होने से पहले राष्ट्रपति ने कहा था कि यात्रा के दौरान उनका लक्ष्य सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करना होगा।
उन्होंने कहा था, ‘उन सभी लंबित मामलों के हल हेतु हम चीन के साथ लगातार संवाद करने के इच्छुक हैं, जिनके बारे में यह मानते हैं कि वे हमारी क्षमता को पूर्ण रूप से विकसित करने से रोक रहे हैं।’ राष्ट्रपति ने गुआंगझोउ में भारत-चीन व्यापार मंच को संबोधित करते हुए यह कहा कि चीन भारत के उत्पादों जैसे दवाईयों तथा फार्मास्यूटिक्ल उत्पादों, आईटी और आईटी से जुड़ी सेवाओं तथा कृषि उत्पादों के लिए बड़ा बाजार है।
उन्होंने कहा, ‘हालांकि व्यापार संतुलत लगातार चीन के पक्ष में बना हुआ है, हम अपने व्यावसाय को बढ़ाकर इसे समानता पर लाने का प्रयास कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘भारत अपने उत्पादों के लिए चीन में बड़ा बाजार देखना चाहेगा.. विशेष रूप से ऐसे क्षेत्रों में जहां हमें प्राकृतिक बढ़त प्राप्त है. जैसे दवाएं और फार्मास्यूटिक्ल, आईटी और आईटी से जुड़ी सेवाओं तथा कृषि उत्पाद।’ अप्रैल से जनवरी 2015-2016 के मध्य भारत और चीन के बीच व्यापार असंतुलन बढ़कर 44.7 अरब डॉलर पहुंच गया है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, उपरोक्त अवधि में भारत से चीन को निर्यात 7.56 अरब डॉलर था जबकि इस दौरान आयात 52.26 अरब डॉलर पहुंच गया। वर्ष 2014-15 में व्यापार असंतुलन 48.48 अरब डॉलर था। राष्ट्रपति ने चीनी निवेशकों से उनके लिए सहज वातावरण का वादा किया और उनसे द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने हेतु ‘मेक इन इंडिया’ तथा अन्य योजनाओं में भाग लेने का अनुरोध किया।
दोनों देशों के उद्योगपतियों और व्यापारियों की उपस्थिति में, उन्होंने इस फोरम पर कहा, ‘भारत में आपके निवेश को लाभकारी बनाने हेतु हम आपके प्रयासों में सहायक होंगे। हमें इन अवसरों का लाभ उठाना चाहिए जो हमारी दोनों अर्थव्यवस्थाओं के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।’ उन्होंने कहा कि चीन की आर्थिक उपलब्धियां भारत के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
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