निगाहों की गलतियाँ
सब गलतियाँ निगाहों की हैं,
क्यों दिखाती हैं ख्वाब,
क्यों दिलाती हैं एहसास जब
पूरे ना हो पायें वो ख्वाब,
सब गलतियाँ निगाहों की हैं,
एक पल मैं देखता हूँ
कोई मुस्कुरा दे तो दीवानी हो जाती हैं,
छोटी छोटी बातों पे खुशियों का
परवाना हो जाती हैं,
बिछा देती हैं खुद को किसी के प्यार में,
सब लुटा देती हैं,
सब गलतियाँ निगाहों की हैं,
कभी सोचती हैं हो गया प्यार हमको,
कभी किसी की रुसवाई में रो देती हैं,
मिलता नहीं जिसे वो चाहे तो
कुछ और देखना नहीं चाहती हैं,
सब गलतियाँ निगाहों की हैं,
हर बात का खुद से मतलब निकाल लेती हैं,
बिन जाने किसी और की हो जाती हैं,
घंटो तक इंतज़ार करती हैं
किसी के आने का पलकों को बिछा के,
जब नहीं आता है वो तब मान नहीं पाती हैं
और आस उसके आने की लगाती हैं,
सब गलतियाँ निगाहों की हैं,
मैं पूछता हूँ
क्यों देखती हो ख्वाब किसी के,
क्यों चाहती हो बेपनाह किसी को,
वो मेरी बात पे
थोड़ा सा मुस्कुरा देती हैं,
बस कुछ कह नहीं पाता उनको
क्योंकि मेरी निगाहें भी ये गलती
बार बार किया करती हैं,
सब गलतियाँ निगाहों की हैं...
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