तीन तलाक पर विशेष

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 एक समय था जबकि जब किसी महिला के पति का स्वर्गवास होता था तो उसके साथ उसे भी जला दिया जाता था।यह एक प्रथा थी जिसे धार्मिक मान्यता मिली थी और पति के साथ चिता पर बैठकर जिन्दा जलने मरने वाली महिला को सती कहा जाता था और उसका मंदिर बनाकर उसकी पूजा की जाती थी।

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राणी सती देवी का सुप्रसिद्ध मंदिर आज भी राजस्थान में बना हुआ है और लोगों को मनोवांछित फल भी मिलता है।पति के साथ जिन्दा जलकर मरना भले ही धार्मिक दृष्टिकोण से जायज था किन्तु अमानवीय और महिलाओं के अधिकारों का हनन था ।इसीलिए तमाम विरोध के बावजूद उस प्रथा को राजा राममोहन राय ने जबरिया बंद करवा दिया था।महिलाओं को घर के अंदर रखकर उसके अधिकारों व उसे अपनी प्रतिभा को निखारने का अवसर नहीं दिया जाता था । किन्तु यह उचित नहीं था इसलिए महिलाओं को बराबर का हक दिलाने का अभियान शुरू किया गया और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महिला सशक्तीकरण दिवस मनाया जाने लगा।अब तक महिलाओं के घर बाहर निकलकर पढ़ने लिखने व नौकरी करने का अधिकार नहीं था किन्तु आज बड़े से बड़े पदों पर महिलाएँ बैठी अपने उत्तरदायित्वो का बखूबी निर्वहन कर रही हैं।लोग अब तक किसी की मर्दानगी पर अंगुली उठाना होता था तो कहते कि औरतों की तरह हाथ में चूडी पहन लो लेकिन वह औरतें सेना में अपनी बहादुरी दिखाने यहाँ तक कि फाइटर लड़ाकू विमान तक चलाने लगी हैं।महिलाओं को उनका हक व बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए क्योंकि अब औरत से शादी का मतलब खाना व बिस्तर आबादी नहीं है।समय के साथ इस परम्परा को भी समाप्त किया जाना चाहिए ।इधर पिछले कई दिनों से तीन तलाक को लेकर बहस छिड़ गयी है।सरकार कहती है एक देश में दो संविधान लागू नहीं हो सकते हैं और समान नागरिक संहिता की बात कह रही है जिसका समर्थन व विरोध दोनों हो रहा हैं।यह सहीं है कि एक देश में दो कानून नहीं चल सकते है और महिलाओं को उनके अधिकार उन्हें मिलने चाहिए।सती प्रथा भी इसी तरह चलती थी जिसे राजा राममोहन राय ने कानून बनाकर जबरिया बंद करवा दिया था जो आज तक लागू है।दुनिया के बाइस देश तीन तलाक की प्रथा को नहीं मानते हैं।कल अखबारों में एक खबर ऐसी छपी थी जिसे पढ़कर तीन तलाक प्रथा पर बहुत तकलीफ हुयी।एक मुस्लिम महिला के लड़की पैदा हो गयी इसलिए उसे भरे चौराहे पर तीन बार तलाक कहकर तड़फता छोड़ दिया गया।कहावत है कि जहाँ दो बर्तन इकट्ठा रहते हैं वहाँ खनक तो होती ही है ।कहने का मतलब जब पति पत्नी साथ साथ रहते हैं तो खटापटक लड़ाई झगड़ा तो होगा ही।हमने देखा कि कुछ लोग पत्नी को गुस्से में भाग देते हैं लेकिन बाद में खुद जाकर अपनी अपनी गलती का अहसास कर ले आते हैं।महिलाएँ दो चार साल गुस्से में नहीं आती हैं लेकिन बाद खुद अपने पति के पास चली आती हैं।कोई भी धर्म मजहब कानून इंसानियत के विपरीत कार्य करने की इजाजत नहीं देता है।जम्मू काश्मीर का दोहरा कानून आज गले की हड्डी बना हुआ है।गुस्से में ही ऐसी स्थिति बनती है और गुस्से में इस तरह के कठोर फैसले होते हैं।गुस्से में लिये गये निर्णय को कभी सही नहीं माना जाता है।तलाक लेने देने और रूख्सती कराने का कानून बना हुआ जिसमें हिन्दू मुसलमान दोनों के मामलों की सुनवाई इसलिए होती है ताकि किसी भी पक्ष के साथ गैर इंसाफी न हो।औरत के पास उसकी आबरू ही ऐसी बेशक कीमती चीज होती है जिसकी सुरक्षा में वह अपनी जान तक दे दी देती है।औरत की इज्जत लूटकर उसे बेइज्जत करके उसे छोड़ देना कतई उचित नहीं माना जायेगा।



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