मायावती- काले धन को सफेद कर रही भाजपा

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 मोदी का भाषण थोथा चना बाजे घना, पैसा देकर रैली में लाये गये लोग

10 महीने से तैयारी थी तो फिर इतनी अफरातरफरी क्यों

दलित की बेटी नोटों की माला पहनें यह मोदी को बर्दाश्त नहीं

विचारधारा के आधार पर आलोचना होनी चाहिए

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बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने सोमवार को लखनऊ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर जमकर हमला किया। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में गाजीपुर रैली को फ्लाप बताते हुए भाजपा पर रैली के मार्फत काले धन को सफेद करने का आरोप लगाया।

मायावती ने प्रधानमंत्री की नोटों की माला वाली टिप्पणी पर कहा कि दलित की बेटी नोटों की माला पहने, ये उन्हें हजम नहीं होता। मोदी खुद गिरेबान में झांकें कि कितने दूध के धुले हैं। पीएम की कुर्सी पर बैठकर ऐसी बात कर रहे हैं जो अशोभनीय व निन्दनीय है। भाजपा नेता नोट की माला पहने तो कोई बात नहीं। दलित की बेटी पहनें यह मोदी को हजम नहीं जबकि बसपा के लोग काली कमाई के नोट से नहीं बल्कि खून पसीने की कमाई के नोटों की माला पहना कर नेता का स्वागत करते हैं। ये किसी से छिपा नहीं है। बसपा अध्यक्ष ने कहा कि आलोचना विचारधारा के आधार पर होनी चाहिए लेकिन भाजपा व प्रधानमंत्री को जब उनके खिलाफ कुछ नहीं मिलता तो व्यक्तिगत आरोप लगाते हैं।

अलग पूर्वांचल राज्य, गाजीपुर रैली फ्लाप

मायावती ने कहा कि रैली बुरी तरह फ्लाप रही। भारी मात्रा में काला धन इस रैली के जरिए खपाया गया। लोगों को ढाई -ढाई सौ रुपये देकर बुलाया गया। रेल व बसों का किराया नहीं लिया गया। लोग बिहार से लाए गए। प्रधानमंत्री का भाषण थोथा चना बाजे घना की तरह था। मोदी बताएं पूर्वांचल के विकास के लिए क्या किया ? पूर्वांचल की जनता अलग राज्य बनाना चाहती है।

नोटबंदी से भारत बंद जैसे हालात

मोदी कहते हैं कि काली कमाई का आजादी के बाद से अब तक का हिसाब लेंगे, अच्छी बात है लेकिन काला धन और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की आड़ में करोडों आम लोगों को खुले आसमान के नीचे खड़ा होने पर मजबूर किया गया। आम जनता को ऐसी कडी सजा क्यों ?भारत बंद जैसी स्थिति बन गई है। अच्छे दिन की उम्मीद लगाए बैठे करोडों लोगों को काफी बुरे दिनों का सामना करना पड रहा है।

भूमि अधिग्रहण जैसा अपरिपक्व फैसला

सवाल उठना स्वाभाविक है कि केन्द्र की भाजपा सरकार को इतने अपरिपक्व तरीके से जनसाधारण को प्रभावित करने वाला जल्दबाजी भरा फैसला करने की क्या जरूरत थी ? प्रधानमंत्री कहते हैं कि कोई जल्दबाजी नहीं की गई है। 10 महीने से तैयारी चल रही थी तो देश में लोगों को हजार दो हजार रुपये भी क्यों नहीं मिल रहे ? मोदी का यह फैसला उनके भूमि अधिग्रहण जैसे अपरिपक्व फैसले की ही तरह है जिसे बाद में भारी जनविरोध के कारण फैसला वापस लेना पड़ा।



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