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लखनऊ (जेएनएन)। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत निजी स्कूलों में दाखिला
पाने वाले गरीब बच्चों को पाठ्यपुस्तकें, अभ्यास पुस्तिकाएं व यूनीफॉर्म
खरीदने के लिए अखिलेश सरकार ने चालू शैक्षिक सत्र से वित्तीय सहायता देने
का फैसला किया है। प्रत्येक बच्चे को सालाना 5000 रुपये दिये जाएंगे। सरकार
के इस फैसले का लाभ प्रदेश के निजी स्कूलों में प्रवेश पाने वाले 16,000
गरीब बच्चों को मिलेगा और इससे उनके अभिभावक भी राहत महसूस करेंगे।
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मंगलवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में बेसिक शिक्षा विभाग के इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। यह धनराशि संबंधित जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को उपलब्ध कराई जाएगी जो कि इसे सीधे छात्र-छात्रा या उनके अभिभावकों द्वारा खोले गए बैंक खाते में भेजेंगे। इस फैसले से सरकार पर आठ करोड़ का अतिरिक्त व्ययभार आएगा जिसका इंतजाम सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष के बजट में किया था। परिषदीय और राज्य सरकार द्वारा सहायताप्राप्त विद्यालयों में पढऩे वाले कक्षा एक से आठ तक के बच्चों को सरकार प्रत्येक शैक्षिक सत्र में पाठ्यपुस्तकें, अभ्यास पुस्तिकाएं और दो सेट यूनीफॉर्म मुफ्त देती है। सरकार की मंशा है कि परिषदीय और सहायताप्राप्त स्कूलों के छात्र-छात्राओं की तरह शिक्षा के अधिकार के तहत निजी स्कूलों में दाखिला पाने वाले गरीब बच्चों को भी यह सुविधाएं मिल सकें।
निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(सी) में प्रावधान है कि निजी स्कूलों को पहली कक्षा की 25 प्रतिशत सीटों पर दुर्लभ और अलाभित समूहों के बच्चों को प्रवेश देना होगा। अधिनियम की इस धारा के तहत प्रदेश में तकरीबन 16,000 गरीब बच्चे निजी स्कूलों में दाखिला पाकर पढ़ रहे हैं। गरीब बच्चों को दाखिला देने वाले निजी स्कूलों को सरकार शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए प्रति बच्चा 450 रुपये प्रति माह की दर से अनुदान देती है।
यदि बच्चे की पढ़ाई पर आने वाला खर्च 450 रुपये से कम होगा तो स्कूल को वास्तविक खर्च के भुगतान की व्यवस्था है। गरीब बच्चों की शुल्क प्रतिपूर्ति तो सरकार कर देती है लेकिन ऐसे बच्चों के अभिभावकों को निजी स्कूल के हिसाब से किताब-कॉपियों और यूनीफॉर्म की व्यवस्था करने में दिक्कत आती है। उनकी इस समस्या को दूर करने के लिए सरकार ने यह फैसला किया है।
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मंगलवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में बेसिक शिक्षा विभाग के इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। यह धनराशि संबंधित जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को उपलब्ध कराई जाएगी जो कि इसे सीधे छात्र-छात्रा या उनके अभिभावकों द्वारा खोले गए बैंक खाते में भेजेंगे। इस फैसले से सरकार पर आठ करोड़ का अतिरिक्त व्ययभार आएगा जिसका इंतजाम सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष के बजट में किया था। परिषदीय और राज्य सरकार द्वारा सहायताप्राप्त विद्यालयों में पढऩे वाले कक्षा एक से आठ तक के बच्चों को सरकार प्रत्येक शैक्षिक सत्र में पाठ्यपुस्तकें, अभ्यास पुस्तिकाएं और दो सेट यूनीफॉर्म मुफ्त देती है। सरकार की मंशा है कि परिषदीय और सहायताप्राप्त स्कूलों के छात्र-छात्राओं की तरह शिक्षा के अधिकार के तहत निजी स्कूलों में दाखिला पाने वाले गरीब बच्चों को भी यह सुविधाएं मिल सकें।
निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(सी) में प्रावधान है कि निजी स्कूलों को पहली कक्षा की 25 प्रतिशत सीटों पर दुर्लभ और अलाभित समूहों के बच्चों को प्रवेश देना होगा। अधिनियम की इस धारा के तहत प्रदेश में तकरीबन 16,000 गरीब बच्चे निजी स्कूलों में दाखिला पाकर पढ़ रहे हैं। गरीब बच्चों को दाखिला देने वाले निजी स्कूलों को सरकार शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए प्रति बच्चा 450 रुपये प्रति माह की दर से अनुदान देती है।
यदि बच्चे की पढ़ाई पर आने वाला खर्च 450 रुपये से कम होगा तो स्कूल को वास्तविक खर्च के भुगतान की व्यवस्था है। गरीब बच्चों की शुल्क प्रतिपूर्ति तो सरकार कर देती है लेकिन ऐसे बच्चों के अभिभावकों को निजी स्कूल के हिसाब से किताब-कॉपियों और यूनीफॉर्म की व्यवस्था करने में दिक्कत आती है। उनकी इस समस्या को दूर करने के लिए सरकार ने यह फैसला किया है।
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