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2000 रुपये का नया नोट
बड़े नोटों को बंद करने के अप्रत्याशित फैसले को ब्लैकमनी के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक बताया जा रहा है, परंतु इन 10 सवालों को सुलझाए बगैर अर्थव्यवस्था का हाल कैसे सुधरेगा?
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देश में कुल 17 लाख करोड़ की करेंसी में 8.2 लाख करोड़ (500 के नोट) और 6.7 लाख करोड़ (1000 के नोट) पूरी करेंसी का 86 फीसदी हैं, जो अब प्रचलन से बाहर हो गए हैं. सरकार के इस निर्णय से अर्थव्यवस्था ठप सी हो गई है, और आम जनता में अफरातफरी है. क्या इस निर्णय के पहले सरकार को संविधान के अनुच्छेद-360 के तहत देश में आर्थिक आपातकाल की घोषणा करनी चाहिए थी?
संसद द्वारा पारित कानून के अनुसार आरबीआई द्वारा जारी नोटों पर जनता को भुगतान देने के लिए सरकार सार्वभौमिक गारंटी देती है. प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में 500 और 1000 के नोटों को रद्दी कागज का टुकड़ा बताया है. क्या भारत सरकार जनता को दी गई गारंटी को पूरा करने में विफल रही है?
देश में नगदी नोटों से आम जनता की अर्थव्यवस्था चलती है, जबकि बड़े लोग बैंकिंग प्रणाली से कारोबार करते हैं. देश में 2.7 लाख करोड़ के रोजाना बैंकिंग ट्रांजेक्शन और सालाना 800 लाख करोड़ के बैंकिंग कारोबार की जांच करने में इनकम टैक्स, एफआईयू और अन्य एजेंसियां क्यों विफल रही हैं?
प्रधानमंत्री ने सही कहा है कि भ्रष्टाचार, कालाधन, जाली नोट और आतंकवाद एक.दूसरे से गुथे हुए नासूर हैं, परंतु सरकार के इन कदमों से चारों क्षेत्रों में कैसे प्रभाव पड़ेगा, इस पर कोई वैज्ञानिक अध्ययन या अधिकृत जानकारी सामने क्यों नहीं रखी गई?
देश में भ्रष्टाचार से अर्जित अधिकांश पैसा विदेशों में जमा है. सीबीआई डायरेक्टर एपी सिंह द्वारा फरवरी 2012 में यह बताया गया था कि 500 बिलियन डॉलर (लगभग 30 लाख करोड़ रुपए) विदेशों में जमा है. भाजपा द्वारा इस पैसे को भारत लाकर हर व्यक्ति के अकाउंट में 15 लाख रुपए जमा करने का वादा किया गया था, जिसे पूरा करने की बजाय आम जनता के पैसे को ही कागज की रद्दी क्यों बना दिया गया?
विदेशों में टैक्स हैवन में जमा धन का आंशिक सच पनामा लीक्स तथा एचएसबीसी डिस्क्लोसर के प्रमाण के माध्यम से सामने आया. पनामा लीक्स में देश के 500 रसूखदार तथा एचएसबीसी में 1,195 लोगों के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई करने में विफल सरकार, इन कदमों से आम जनता को तकलीफ में क्यों डाल रही है?
देश में आम जनता छोटी-मोटी टैक्स चोरी करती है पर बड़े घोटाले तो कॉर्पोरेट्स द्वारा सरकार के सहयोग से किए जाते हैं. कुछ बड़े उद्योगपतियों द्वारा बैलेंसशीट में गड़बड़ी करके सरकारी बैंकों से 15 लाख करोड़ रुपए से अधिक का लोन लिया गया जिसमें अधिकांश एनपीए में तब्दील हो गया है. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार पिछले 44 वर्षों में एक्सपोर्ट और ओवर इनवाइसिंग के माध्यम से बड़ा घोटाला हुआ है जो कुल जीडीपी का एक चौथाई हो सकता है. इन बड़े समूहों का फारेंसिक तथा सीएजी ऑडिट कराने की बजाय आम जनता को ही कसूरवार क्यों ठहराया जा रहा है?
कालेधन के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एसआईटी का गठन किया गया है. कालेधन की अर्थव्यवस्था रियल एस्टेट, सोना, बोगस एक्सपोर्ट्स एवं ड्रग माफिया पर केंद्रित है जिसे राजनीतिक दलों का परिश्रय प्राप्त है. बड़े नोटों को खत्म करने के नाम पर 2,000 रुपए का बड़ा नोट जारी करने से काले धन की अर्थव्यवस्था तो सुदृढ़ ही होगी?
अनुमानों के अनुसार राज्य तथा केंद्र के चुनावों में राजनीतिक दलों तथा नेताओं द्वारा 5 लाख करोड़ से अधिक खर्च किया जाता है जिनमें अधिकांश ब्लैकमनी होता है. खबरों के अनुसार यूपी के प्रस्तावित चुनावों में बीएसपी द्वारा प्रत्याशियों से 1200 करोड़ से अधिक की वसूली की जा चुकी है. कांग्रेस और भाजपा समेत सभी दलों द्वारा चुनाव आयोग के सम्मुख आय-व्यय के गलत ऐफिडेविट दिए जाते हैं, जिन दलों पर सरकार द्वारा कार्रवाई क्यों नहीं की जाती?
जाली नोटों के बारे में रिजर्व बैंक तथा सरकार ने नियमित जानकारी दी है. वर्ष 2015-16 में 500 रुपए के 2.61 लाख नोट तथा 1000 रुपए के 1.43 लाख नोट पकड़े गए जिनकी कुल कीमत लगभग 28 करोड़ रुपए की होती है. 15 लाख करोड़ के नोटों को रिजर्व बैंक द्वारा छापने में ही लगभग 12 हजार करोड़ का खर्च आएगा तथा अल्प समय के लिए पूरी बैंकिंग प्रणाली ठप हो जाएगी. अगर जाली नोटों की संख्या ज्यादा है भी तो उसका वैज्ञानिक निदान करने की बजाय देशव्यापी हड़कंप मचाना, कितना कानूनी और व्यवहार-सम्मत है?
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2000 रुपये का नया नोट
बड़े नोटों को बंद करने के अप्रत्याशित फैसले को ब्लैकमनी के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक बताया जा रहा है, परंतु इन 10 सवालों को सुलझाए बगैर अर्थव्यवस्था का हाल कैसे सुधरेगा?
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देश में कुल 17 लाख करोड़ की करेंसी में 8.2 लाख करोड़ (500 के नोट) और 6.7 लाख करोड़ (1000 के नोट) पूरी करेंसी का 86 फीसदी हैं, जो अब प्रचलन से बाहर हो गए हैं. सरकार के इस निर्णय से अर्थव्यवस्था ठप सी हो गई है, और आम जनता में अफरातफरी है. क्या इस निर्णय के पहले सरकार को संविधान के अनुच्छेद-360 के तहत देश में आर्थिक आपातकाल की घोषणा करनी चाहिए थी?
संसद द्वारा पारित कानून के अनुसार आरबीआई द्वारा जारी नोटों पर जनता को भुगतान देने के लिए सरकार सार्वभौमिक गारंटी देती है. प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में 500 और 1000 के नोटों को रद्दी कागज का टुकड़ा बताया है. क्या भारत सरकार जनता को दी गई गारंटी को पूरा करने में विफल रही है?
देश में नगदी नोटों से आम जनता की अर्थव्यवस्था चलती है, जबकि बड़े लोग बैंकिंग प्रणाली से कारोबार करते हैं. देश में 2.7 लाख करोड़ के रोजाना बैंकिंग ट्रांजेक्शन और सालाना 800 लाख करोड़ के बैंकिंग कारोबार की जांच करने में इनकम टैक्स, एफआईयू और अन्य एजेंसियां क्यों विफल रही हैं?
प्रधानमंत्री ने सही कहा है कि भ्रष्टाचार, कालाधन, जाली नोट और आतंकवाद एक.दूसरे से गुथे हुए नासूर हैं, परंतु सरकार के इन कदमों से चारों क्षेत्रों में कैसे प्रभाव पड़ेगा, इस पर कोई वैज्ञानिक अध्ययन या अधिकृत जानकारी सामने क्यों नहीं रखी गई?
देश में भ्रष्टाचार से अर्जित अधिकांश पैसा विदेशों में जमा है. सीबीआई डायरेक्टर एपी सिंह द्वारा फरवरी 2012 में यह बताया गया था कि 500 बिलियन डॉलर (लगभग 30 लाख करोड़ रुपए) विदेशों में जमा है. भाजपा द्वारा इस पैसे को भारत लाकर हर व्यक्ति के अकाउंट में 15 लाख रुपए जमा करने का वादा किया गया था, जिसे पूरा करने की बजाय आम जनता के पैसे को ही कागज की रद्दी क्यों बना दिया गया?
विदेशों में टैक्स हैवन में जमा धन का आंशिक सच पनामा लीक्स तथा एचएसबीसी डिस्क्लोसर के प्रमाण के माध्यम से सामने आया. पनामा लीक्स में देश के 500 रसूखदार तथा एचएसबीसी में 1,195 लोगों के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई करने में विफल सरकार, इन कदमों से आम जनता को तकलीफ में क्यों डाल रही है?
देश में आम जनता छोटी-मोटी टैक्स चोरी करती है पर बड़े घोटाले तो कॉर्पोरेट्स द्वारा सरकार के सहयोग से किए जाते हैं. कुछ बड़े उद्योगपतियों द्वारा बैलेंसशीट में गड़बड़ी करके सरकारी बैंकों से 15 लाख करोड़ रुपए से अधिक का लोन लिया गया जिसमें अधिकांश एनपीए में तब्दील हो गया है. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार पिछले 44 वर्षों में एक्सपोर्ट और ओवर इनवाइसिंग के माध्यम से बड़ा घोटाला हुआ है जो कुल जीडीपी का एक चौथाई हो सकता है. इन बड़े समूहों का फारेंसिक तथा सीएजी ऑडिट कराने की बजाय आम जनता को ही कसूरवार क्यों ठहराया जा रहा है?
कालेधन के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एसआईटी का गठन किया गया है. कालेधन की अर्थव्यवस्था रियल एस्टेट, सोना, बोगस एक्सपोर्ट्स एवं ड्रग माफिया पर केंद्रित है जिसे राजनीतिक दलों का परिश्रय प्राप्त है. बड़े नोटों को खत्म करने के नाम पर 2,000 रुपए का बड़ा नोट जारी करने से काले धन की अर्थव्यवस्था तो सुदृढ़ ही होगी?
अनुमानों के अनुसार राज्य तथा केंद्र के चुनावों में राजनीतिक दलों तथा नेताओं द्वारा 5 लाख करोड़ से अधिक खर्च किया जाता है जिनमें अधिकांश ब्लैकमनी होता है. खबरों के अनुसार यूपी के प्रस्तावित चुनावों में बीएसपी द्वारा प्रत्याशियों से 1200 करोड़ से अधिक की वसूली की जा चुकी है. कांग्रेस और भाजपा समेत सभी दलों द्वारा चुनाव आयोग के सम्मुख आय-व्यय के गलत ऐफिडेविट दिए जाते हैं, जिन दलों पर सरकार द्वारा कार्रवाई क्यों नहीं की जाती?
जाली नोटों के बारे में रिजर्व बैंक तथा सरकार ने नियमित जानकारी दी है. वर्ष 2015-16 में 500 रुपए के 2.61 लाख नोट तथा 1000 रुपए के 1.43 लाख नोट पकड़े गए जिनकी कुल कीमत लगभग 28 करोड़ रुपए की होती है. 15 लाख करोड़ के नोटों को रिजर्व बैंक द्वारा छापने में ही लगभग 12 हजार करोड़ का खर्च आएगा तथा अल्प समय के लिए पूरी बैंकिंग प्रणाली ठप हो जाएगी. अगर जाली नोटों की संख्या ज्यादा है भी तो उसका वैज्ञानिक निदान करने की बजाय देशव्यापी हड़कंप मचाना, कितना कानूनी और व्यवहार-सम्मत है?
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