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करवाचौथ इतना फ़िल्मी तो फिल्म वालो ने नही दिखाया जितना की हमें स्मार्ट फोन के अनस्मार्ट एप्स पर नजर आया।
पत्नी के व्रत का मजाक उड़ाते हजारों पोस्ट जो आपकी बत्तीसी को बाहर निकाल दे और आप उसको भेड़ की चाल चलकर फोकट के डाकिये की तरह एक जगह से दूसरी जगह पहुंचा दे।
पत्नी के लिए सैकड़ों उलाहना और उसे ऐसे पेश करना जैसे मानो वो पति के लिए सबसे भयावह हो और पति का ऐसा चित्रण जैसे आज अगर कुछ गलत किया तो पत्नी पीटते हुए घर से नही निकालेगी बल्कि आपको मृत्युलोक के दर्शन भी हो सकते है.....
देखिये न हम बेचारों को...एक त्यौहार जिसमे पत्नी संम्पूर्ण दिन केवल साँसों के सहारे रहती है इस आस में की उसके पति की साँसे लम्बी हो,सिंदूर उसकी मांग पर हो तब तक जब तक वो ही इस निर्मोही दुनिया को अलविदा न कह दे....लेकिन उसको क्या पता की उसकी इन भावनाओं की जगहंसाई हो रही है वो भी जबर्दस्त तरीके से...
दरअसल,करवाचौथ हो या सन्तानसप्तमी इन व्रतों को रखने का जो साहस स्त्री उठाती है वो पुरुष प्रधान समाज कभी उठा ही नही सकता।
एक स्त्री ही है जो व्रतों में भी पति और पुत्रों की लंबी आयु खोज लेती है क्योंकि और ज्यादा करने का उसके पास अवसर भी नही है न।
ज्यादा लिखने बेकार है क्योंकि आपको यह ज्ञान बघारने का नजरिये लगेगा लेकिन मनन कीजिये इस बात का कि.... पत्नी के पति के प्रति दिखाये त्याग,प्रेम और स्नेह के इस पर्व का भद्दा,हास्यास्पद और बेतुका चित्रण हमे निकृष्ट और निम्नस्तरीय तो नही कर रहा या फिर अब केवल सोशल मीडिया के छपास वीर ही बनकर रह गए है...🙏🏻🙏🏻
अगली बार कम से आप अपनी पत्नी के और खुद के सम्मान के लिए करवाचौथ के त्यौहार की मिठास को कड़वा मत होने देना.....
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दुनिया का डिजिटाइजेशन हो गया,टेलीफोन का बड़ा सा रिसीवर ऊँगली में सिमट आया
और तो और अब भावनाएं भी वास्तविक न रहकर कृत्रिम हो गई।बोले तो कुलजमा अब
सब कुछ "सोशल"हो गया(इस सोशल का सामाजिक से लेना देना हइये ही नही)।।
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करवाचौथ इतना फ़िल्मी तो फिल्म वालो ने नही दिखाया जितना की हमें स्मार्ट फोन के अनस्मार्ट एप्स पर नजर आया।
पत्नी के व्रत का मजाक उड़ाते हजारों पोस्ट जो आपकी बत्तीसी को बाहर निकाल दे और आप उसको भेड़ की चाल चलकर फोकट के डाकिये की तरह एक जगह से दूसरी जगह पहुंचा दे।
पत्नी के लिए सैकड़ों उलाहना और उसे ऐसे पेश करना जैसे मानो वो पति के लिए सबसे भयावह हो और पति का ऐसा चित्रण जैसे आज अगर कुछ गलत किया तो पत्नी पीटते हुए घर से नही निकालेगी बल्कि आपको मृत्युलोक के दर्शन भी हो सकते है.....
देखिये न हम बेचारों को...एक त्यौहार जिसमे पत्नी संम्पूर्ण दिन केवल साँसों के सहारे रहती है इस आस में की उसके पति की साँसे लम्बी हो,सिंदूर उसकी मांग पर हो तब तक जब तक वो ही इस निर्मोही दुनिया को अलविदा न कह दे....लेकिन उसको क्या पता की उसकी इन भावनाओं की जगहंसाई हो रही है वो भी जबर्दस्त तरीके से...
दरअसल,करवाचौथ हो या सन्तानसप्तमी इन व्रतों को रखने का जो साहस स्त्री उठाती है वो पुरुष प्रधान समाज कभी उठा ही नही सकता।
एक स्त्री ही है जो व्रतों में भी पति और पुत्रों की लंबी आयु खोज लेती है क्योंकि और ज्यादा करने का उसके पास अवसर भी नही है न।
ज्यादा लिखने बेकार है क्योंकि आपको यह ज्ञान बघारने का नजरिये लगेगा लेकिन मनन कीजिये इस बात का कि.... पत्नी के पति के प्रति दिखाये त्याग,प्रेम और स्नेह के इस पर्व का भद्दा,हास्यास्पद और बेतुका चित्रण हमे निकृष्ट और निम्नस्तरीय तो नही कर रहा या फिर अब केवल सोशल मीडिया के छपास वीर ही बनकर रह गए है...🙏🏻🙏🏻
अगली बार कम से आप अपनी पत्नी के और खुद के सम्मान के लिए करवाचौथ के त्यौहार की मिठास को कड़वा मत होने देना.....
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