कलयुग का प्रभावक्षेत्र राजधानी ।

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 लखनऊ। (अमितेश विनीता अग्निहोत्री)कलियुग का प्रभास क्षेत्र बन चुकी राजधानी में यदुकुल के बीच सत्ता संघर्ष चरम पर है। मगर इस बार मूसल पैदा करने के जिम्मेदार खुद नेता जी है जो अब यादवो के पराभाव का कारण बनता दिखयी दे रहा है। हालाँकि मुलायम के बारे में ये सर्व विदित है कि वो अपने साथियों को कभी भी विस्मृत नहीं करते और इसी के चलते अमरसिंह सत्ता के संरक्षण में फलते फूलते रहे मगर 75 बरस पार नेता जी के लिए बदलते समय की नब्ज़ पकड़ना उनके बस में नहीं रहा।

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राजपरिवारों में एक से दूसरी पीढ़ी को सत्ता हस्तांतरण अक्सर कलह का कारण बनते रहे हैं। मालूम होता है कि अपने खानदान को प्रदेश का सबसे ताकतवर राजपरिवार बना देने वाले नेता जी के लिए यह स्थिति पूर्ण बहुमत मिलने की सम्भावना की तरह ही अकल्पनीय रही होगी नहीं तो उनके पास समस्या से निपटने का कोई रोडमैप होता। कम से कम सार्वजनिक मंचों पर शब्दो की जूतमपैजार न हो रही होती।सपा के अंदर चल रहा सत्ता संघर्ष काफी कुछ मराठा साम्राज्य की याद दिलाता है जब बुड्ढे शिवा जी की जवान बीवी ताराबाई ने अपने बेटे राजाराम के लिए पूरे साम्राज्य को युद्ध की आग में झोंक दिया। बुड्ढे होते बादशाहों की जवान बीवियां भी हमेशा से समस्या खड़ी करती रही हैं। सिलसिला दशरथ से लेकर शिवा जी से होता हुआ नेता जी पर आ पंहुचा है। वैसे मुग़ल खानदान के आखिरी बादशाह 75 साल के बहादुरशाह जफर की लुटिया डुबोने में उनकी 19 साला जवान बीवी जीनत महल भी बड़ा कारण थी। इस फेहरिश्त में संध्या गुप्ता 21वी सदी में कैकेयी का पुनर्जन्म हैं जो अपने बेटे प्रतीक के लिए अखिलेश को वनवास भेजने का जुगाड़ तलाश रही हैं। वैसे इस महाकथानक ने यादव परिवार के अन्तः पुर की खिड़किया भी खोल दी हैं अन्यथा नेता जी की प्रेम कहानी और प्रतीक यादव के असली पापा का नाम शायद ही किसी को मालूम पड़ता बस शिवपाल जी के व्यभिचार की कहानियां भी पता चल जाये तो मजा आये। मगर एक दूसरे की धोती उतारने में जुटे महारथियों को याद रहे की ये सभा कौरवो की नहीं जनता की है जहाँ धृतराष्ट्र नहीं होते।
इस संकट की जड़ बताये जा रहे अमरसिंह हमेशा की तरह एक बार फिर अपने विरोधियो के निशाने पर है जिनके लिए नेता जी अपने इकलौते सगे बेटे को भी छोड़ने के लिए तैयार है। मगर देखा जाये तो मुलायम का अमर प्रेम गलत नहीं है। अमरसिंह हमेशा नेता जी के संकट मोचक रहे हैं। इस व्यक्ति ने जीवनभर की दलाली की कमाई नेता जी के श्रीचरणों में अर्पित कर उनका चारण होना स्वीकार किया तो नेता जी ने भी अपने परम भक्त का योग क्षेम वहन करने की जिम्मेदारी से कभी भी मुह नहीं मोड़ा। यह अमर सिंह ही थे जिन्होंने अमेरिका से परमाणु डील पर संकट में फंसी मनमोहन सरकार को बचा कर कांग्रेस को उपकृत कर नेता जी को आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में सीबीआई के फंदे से बचाया था। रामगोपाल यादव पर भाजपा से मिलीभगत का आरोप लगा कर पार्टी से निकालने वाले नेता जी क्या यह बताने का कष्ट करेंगे कि राज्य सभा में मोदी सरकार के समर्थन का फैसला किसका था। राज्य सभा में अल्पमत में होने के बावजूद मोदी सरकार के विधेयक निर्विघ्न पास होते रहे क्योंकि समाजवादी पार्टी ने सदन में हरकदम पर सरकार का साथ दिया। इस उपकार का बदला भी मिला जब सी बी आई ने नेता जी पर कुछ सालों में ही आय से अधिक् संपत्ति के मामले वापस ले लिए।
अंदरखाने के सूत्रों की माने तो भाजपा से हुई इस डील में के पीछे भी अमर सिंह की विलक्षण दलाली प्रतिभा थी। अमरसिंह पार्टी में रहे या निकले मगर नेताजी के ह्रदय में उनका स्थान हमेशा से रहा और जब जब नेता जी ने संकट के समय याद किया अमर उपस्थित मिले। सपा के सबसे बड़े फाइनेन्सर रहे सुब्रत राय सहारा के बुरे दिन शुरु हुए तो पार्टी की अर्थव्यवस्था को संकट से निकालने के लिए नेता जी ने फिर से अमर सिंह को याद किया तो जनाब इस बार मीडिया क्षेत्र की बड़ी हस्ती को पार्टी में ले आये। अपने सैटेलाइट चैनल के जरिये इधर कुछ सालों से मोदी सरकार की पत्तेचाटी करने में जुटे और बीड़ी पीने की अटपटी आदत के लिए मशहूर इन जनाब को आनन फानन में सपा के टिकट पर राज्य सभा भेज कर नेता जी ने अमर सिंह से पुनः वर मांगने को कहा तो ठाकुर साहब ने अपनी चेली पूर्व फिल्म अभिनेत्री को मंत्री का दर्ज़ा दिलवा दिया।
इस प्रकार भाजपा के बड़े फाइनेन्सर रहे मीडिया मुगल को यूपी में सपा की गोद में बिठाल देने वाले अमरसिंह ने पार्टी को आर्थिक संकट से निकालकर कर फिर से आपना लोहा मनवा लिया। नेता जी जानते है कि सत्ता के लिए वोट से ज्यादा जरुरी नोट है क्योंकि जनता उस गर्ल फ्रेंड की तरह है जो खाली जेब ब्वायफ़्रेंड को कभी लाइन नहीं देती।
नेता जी को अमरसिंह की अहमियत पता है क्योंकि किसी भी पार्टी को चलाने के लिए ऐसे ही लोग चाहिए मगर अखिलेश को इस बात की समझ नहीं। रंगे सियार की तरह सामंतशाही लोकतंत्र आवरण ओढ़ती है तो शिवपाल और अमरसिंह जैसे लोग ही वास्तविक राजपुरुष होते हैं। फिलहाल तो जनता तमाशा देखने में मगन है। समस्या तो चारणो की है जिन्हें समझ नहीं आ रहा कि अपना स्वामी किसे माने।



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