हिंदू धर्म में जनेऊ पहनने का महत्‍व....

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--जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है। इसे 'उपनयन संस्कार', जिसे 'यज्ञोपवीत संस्कार' भी कहा जाता है। जनेऊ को संस्कृत भाषा में 'यज्ञोपवीत' कहा जाता है।
यह सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे यज्ञोपवीतधारी व्यक्ति बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य में 'यज्ञोपवित संस्कार' यानी जनेऊ की परंपरा है।
लड़के के दस से बारह वर्ष की आयु के होने पर उसकी यज्ञोपवित की जाती है। पूर्व काल में जनेऊ पहनने के पश्चात ही बालक को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिलता था।
उपनयन संस्कार के वक़्त लडके को सबसे पहले गायरी मंत्र सिखाया जाता है, जो वह अपने पिता से सीखता है। आइये जानते है 'उपनयन संस्कार के महत्व के बारे में।
जनेऊ
जनेऊ में तीन धागे होते हैं। कुंवारे लड़के सिर्फ एक धागा पहनते हैं, शादीशुदा आदमी दो धागे पहनते हैं और शादीशुदा आदमी के बच्चे हैं, तो वह तीन धागे पहनते हैं। यह तीनों धागे आदमी के तीन ऋण का प्रतीक होते हैं जो कि इस प्रकार हैं...
  1. एक शिक्षक का कर्ज।
  2. माता-पिता और पूर्वजों का ऋण।
  3. विद्वानों का कर्ज।
जनेऊ के तीन धागे तीन देवी, पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती का प्रतीक है। यह इस बात का प्रतीक है कि एक मनुष्य सिर्फ इन तीन देवीओं शक्ति, धन और ज्ञान की मदद से अपनी ज़िन्दगी में सफल हो सकता है।
जनेऊ का महत्व
जनेऊ धारण करने की बाद उस व्यक्ति को अपने विचारों, शब्दों और कामों में निर्मलता होनी चाहिए। उपनयन संस्कार के दिशा-निर्देशों के अनुसार एक ब्रह्मचारी के जीवन का नेतृत्व करना होता है। इसलिए, जनेऊ को हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह बच्चे की शिक्षा से सम्बन्ध रखता है।

 

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