क्या खूब कहा है किसी ने...

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क्या खूब कहा है किसी ने... 
आगे सफर था और पीछे हमसफर था..
रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता..
मंजिल की भी हसरत थी और उनसे भी मोहब्बत थी..
ए दिल तू ही बता,उस वक्त मैं कहाँ जाता...
मुद्दत का सफर भी था और बरसो का हमसफर भी था
...
रूकते तो बिछड जाते और चलते तो बिखर जाते....
यूँ समँझ लो,
प्यास लगी थी गजब की...
मगर पानी मे जहर था...
पीते तो मर जाते और ना पीते तो भी मर जाते.
..
बस यही दो मसले, जिंदगीभर ना हल हुए...
ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए...
वक़्त ने कहा,काश थोड़ा और सब्र होता
...
सब्र ने कहा,काश थोड़ा और वक़्त होता
...
सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब..
आराम कमाने निकलता हूँ आराम छोड़कर
...
"हुनर" सड़कों पर तमाशा करता है
...
और "किस्मत" महलों में राज करती है...
शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी
...
पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने
...
वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता..
अजीब सौदागर है ये वक़्त भी
...
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया...
अब अमीरी का लालच दे के जवानी ले जाएगा
...
लौट आता हूँ वापस घर की तरफ...
हर रोज़ थका-हारा...
आज तक समझ नहीं आया की जीने के लिए काम करता हूँ
या काम करने के लिए जीता हूँ...
बचपन में सबसे अधिक बार पूछा गया सवाल -
बङे हो कर क्या बनना है ?
जवाब अब मिला है, - "फिर से बच्चा बनना है
...
थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे...
भरी जेब ने ' दुनिया ' की पहेचान करवाई
...
और खाली जेब ने ' अपनो ' की...
जब लगे पैसा कमाने, तो समझ आया
...
शौक तो मां-बाप के पैसों से पुरे होते थे
...
अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पुरी होती है
...
हंसने की इच्छा ना हो...
तो भी हसना पड़ता है...
कोई जब पूछे कैसे हो...??
तो मजे में हूँ कहना पड़ता है...
ये ज़िन्दगी का रंगमंच है दोस्तों....
यहाँ हर एक को नाटक करना पड़ता है
...
"माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती...
यहाँ आदमी आदमी से जलता है...
दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट,

ये ढूँढ रहे है की मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं
...
पर आदमी ये नहीं ढूँढ रहा
कि जीवन में मंगल है या नहीं
...
मंदिर में फूल चढ़ा कर आए तो यह एहसास हुआ कि...
पत्थरों को मनाने में
...
फूलों का क़त्ल कर आए हम
...
गए थे गुनाहों की माफ़ी माँगने ....
वहाँ एक और गुनाह कर आए हम ।।
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