वर्तमान समस्या पर विशेष-

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 स्वार्थी मनुष्य की तुलना उस कौऐ से की गयी है जो कभी सूखी हड्डी पर नहीं बैठता है और उसी हड्डी पर बैठता है जिसमें मांस होता है।वैसे कहने के लिये हर मनुष्य स्वार्थी होता है लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि-" अपना काम बनता, तो भाड़ में जाय जनता"।स्वार्थी मनुष्य का किसी के भले बुरे से कोई मतलब नहीं होता है उसका सिर्फ अपना उल्लू सीधा होना चाहिए।यहीं स्वार्थी लोग देश को गुलाम बनवा देते हैं और जिस थाली में खाना खाते हैं उसी में छेद करने में संकोच नहीं करते हैं।ऐसे ही लोगों को जयचंद कहा जाता है और इतिहास उन्हें याद करता है।
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आज स्वार्थी लोग ही हमारे बारे जानकारी हमारे दुश्मनो को देकर आतंकवादियों को संरक्षण देते हैं और पाँच सौ रूपया लेकर जम्मू काश्मीर में फोर्स पर पत्थर ईटा भी फेंकते हैं ।ऐसे ही स्वार्थी लोगों ने हमारे देश में भ्रष्टाचार को एक कल्चर बना दिया है और पूरी व्यवस्था ही भ्रष्ट होने के कगार पर पहुँच गयी है।बिना घूस दिये कोई भी कार्य होने वाला नहीं है। दूकान पर बिना मिलावट के कोई सामान नहीं मिलने वाला नहीं है और मेडिकल स्टोर पर एक रूपये की दवा के दाम दस रूपये लिखी बेची जा रही है। हर स्तर पर स्वार्थी लोगों की जमात बैठी है जिन्हें न तो देश की परवाह है और न देशवासियों की चिंता हैं।उनका प्रेम सिर्फ और सिर्फ दौलत से है वह उनके पास आनी चाहिए काम चाहे जो हो करने में शर्म नहीं है।यहीं स्वार्थी लोग इस समय मोदी को ठीक करने में जुटे हैं ।मोदी काली कमाई वालों व देश को दुश्मनो को कमजोर करने में लगे हैं तो स्वार्थी लोग उन्हें कमजोर कर अपने स्वार्थपूर्ति करने जुटे हैं।नोट बदलने और पुरानी काली कमाई को सफेद करने के नाम पर देश में व्यापारिक धंधा शुरू हो गया है और स्वार्थी लोगों की कौमी एकता देश में अस्थिरता पैदा करने में लग गयी है।इसमें बैंककर्मी आयकर व्यवसाई बैंक के दलाल व समाज के दलाल सभी जुटे हैं।एक हजार के बदले आठ सौ और पाँच सौ के बदले चार सौ की बाजार खुल गयी है।सौ रूपये का भी सामान लेने पर पर दूकानदार पेट्रोल पम्प मालिक व अन्य अधिकृत स्थानों पर हजार का नोट हो चाहे पाँच सौ का हो पूरे नोट का सामान दे रहे हैं। जो उन्हें फुटकर मिल रहा है उससे साइड वक्ती बिजनेस शुरू किये हुये है।बड़ा अधिकारी नेता छोटे पर नोट बदलने का दबाव बना रहा है और न करने पर आगे देख लेने की धमकी दे रहा है।स्वार्थी लोगों के स्वार्थपूर्ति में आम जनता परेशान बेहाल है और पाँच के चार भी लेना उसे बुरा नहीं लग रहा है।कहावत है कि-"मरता क्या नहीं करता? जनता लाइन लगाये खड़ी रहती है लेकिन उसे दस बीस हजार के लिये काउन्टर तक पहुँचने में कई दिन लग जाते हैं।जनता को जानबूझकर बैंक वाले परेशान कर रहे हैं और न तो अपने एटीएम चला पा रहे हैं और न ही करेन्सी उपलब्ध करा पा रहे हैं।पाँच सौ व हजार के नोट भी उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं।स्वार्थी लोगों ने सारे ढाँचे को ही ढगमगा दिया है आम जनता के जेब में दो हजार का असली नोट होते हुये भी उसके नकली बने होने से सारी बाजार बंद सी हो गयी है।दैनिक उपयोग के सामान खरीदने में दिक्कत है जबकि इस समय हर देशभक्त का धर्म बनता है कि देशहित में लिये गये इस जरूरी कठोर निर्णय में देश की सहायता करें।
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