हाईकोर्ट : पति को सेक्स के लिए मना करना तलाक का आधार

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 हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि किसी न्यायोचित कारण के बगैर लंबे समय तक पति को सेक्स के लिए मना करना मानसिक क्रूरता है और यह तलाक का आधार है।   
अदालत ने एक मामले में पति की याचिका स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की।
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अदालत ने तलाक आवेदन को स्वीकार करते हुए कहा कि पत्नी ने निचली अदालत में इन आरोपों से इनकार नहीं किया है। न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग और न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी की खंडपीठ के समक्ष पति ने तलाक के लिये दायर याचिका में तर्क रखा था कि उसकी पत्नी ने साढ़े चार साल तक उसे शारीरिक संबंध स्थापित करने की अनुमति नहीं देकर उसके साथ मानसिक क्रूरता की है।

याची ने कहा कि वह शारीरिक रूप से किसी समस्या से ग्रस्त नहीं है। खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि पेश तथ्यों के आधार पर हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि पति ने यह तथ्य पूरी तरह साबित किया है कि एक ही छत के नीचे रहते हुए और बिना किसी शारीरिक परेशानी और न्यायोचित कारण के पत्नी ने लंबे समय तक सेक्स से इनकार करके उसके साथ मानसिक क्रूरता की है।
परिवारिक अदालत ने पति की तलाक याचिका खारिज कर दी थी। पति ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। याची के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल का विवाह हरियाणा मे 26 नवंबर 2001 को हुआ था  और 2013 में निचली अदालत मे मामला दायर करते समय उनके दस और नौ साल के दो बेटे थे।

उन्होंने उनके मुवक्किल की पत्नी ने उनके मुवक्किल और उनके परिवार के सदस्यों को मानसिक यातना दी है और वह घर के काम भी नहीं करती थी। जब उसका आचरण बर्दाश्त से बाहर हो गया तो उसके माता पिता ने उन्हे इसी मकान के एक अन्य हिस्से में रहने की जगह दे दी थी।

उन्होंने कहा कि इसके बावजूद उनके मुवक्किल की पत्नी ने उसे साढ़े चार वर्ष से शारीरिक संबंध बनाने की इजाजत नहीं दी। ऐसे में यह मानसिक क्रूरता है और उनका तलाक मंजूर किया जाए।

खंडपीठ ने कहा कि निचली अदालत में महिला पेश नहीं हुई जबकि उसे समन मिल चुका था। इसके अलावा उसने शारीरिक संबंध न बनाने के तथ्य को नकारा भी नहीं है। ऐसे में वे महसूस करते है कि बिना आधार के सैक्स न करने की इजाजत मानसिक क्रूरता है। अत: वे तलाक के आवेदन को मंजूर करते है।





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