नई दिल्ली. दिल्ली में डीजल टैक्सियों पर बैन के खिलाफ दिल्ली सरकार के बाद अब केंद्र सरकार भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए केंद्र ने दलील दी है कि डीजल टैक्सियों पर बैन से कॉलसेंटर जैसे बीपीओ के कामकाज में असर पड़ा है। अगर ऐसे ही हालात रहे तो विदेशी कंपनियां देश छोड़ सकती हैं।
केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने कोर्ट से कहा कि बीपीओ-कॉल सेंटर वाली कंपनियां बड़ी संख्या में कर्मचारियों के लिए डीजल टैक्सी का प्रयोग करती हैं। बैन के कारण उनके कामकाज पर गहरा असर पड़ा है।
सीजेआई टीएस ठाकुर की बेंच ने सवाल किया कि अगर ऐसा है तो कंपनियां बसें क्यों नहीं चला सकतीं? जवाब में कुमार ने कहा कि कैब का इस्तेमाल रात में पिक-ड्रॉप के लिए किया जाता है। इसके साथ सुरक्षा का मसला भी जुड़ा हुआ है।
इस मामले में अमाइकस क्यूरी अपराजिता ने कोर्ट में कहा, ‘पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण की ओर से रोडमैप बनाया जा रहा है। यह भी देखा जा रहा है कि टैक्सियों को फेज आउट करने के लिए क्या पांच साल का वक्त दिया जा सकता है !’ मामले में 9 मई को अगली सुनवाई होगी।
वहीं, मेरू, मेगा जैसी कैब कंपनियां भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई हैं। उनकी ओर से कहा गया कि वह पहले से ही सिटी टैक्सी के तौर पर पंजीकृत हैं, जबकि ओला, उबर आल इंडिया परमिट वाली कैब इस्तेमाल कर रही हैं।
कंपनियों का कहना है कि वो हाई कोर्ट में अंडरटेकिंग दे चुकी हैं कि ऑल इंडिया टूरिस्ट परमिट की गाड़ियां नहीं चलाएंगी, लेकिन दूसरी कंपिनयां ऐसी गाड़ियां चला रही हैं जिसकी वजह से उनके कारोबार को नुकसान हो रहा है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर में कमर्शियल टैक्सी ऑपरेटर्स की तरफ से डीजल गाड़ी चलाने पर 1 मई से प्रतिबंध लगा दिया था। कोर्ट ने अपने फैसले में सभी टैक्सी ऑपरेटर्स को सीएनजी आधारित टैक्सी चलाने के निर्देश दिए थे। टैक्सी ऑपरेटर्स की अपील को ठुकराते हुए कोर्ट ने कहा था कि राजधानी में प्रदूषण का मुद्दा अहम है।
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