तो कश्मीर घाटी में ही बैठे हैं पाकिस्तानी आतंकी

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 सब जानते हैं कि पीओके में सर्जिकल ऑपरेशन के बाद सीमा पर सेना की कड़ी चौकसी है। ऐसे में सीमा पार से आतंकियों का आना बेहद मुश्किल है। आतंकी भी पीओके में मरना नहीं चाहते, इसलिए दो हजार से भी ज्यादा आतंकी पीओके से भाग गए हैं। लेकिन इसके बावजूद भी 2 अक्टूबर की रात को 4 आतंकियोड्ड ने कश्मीर घाटी के बारामूला में सुरक्षा बलों के कैम्प पर हमला कर दिया। हमारा एक जवान शहीद हो गया और कुछ की हालत गंभीर है।
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साफ जाहिर है कि घाटी में पहले से ही पाकिस्तानी आतंकी बैठे हुए हंै। इन आतंकियों को कश्मीर के उन अलगाववादियों का समर्थन है, जो कश्मीर से भारत को अलग करना चाहते हैं। सर्जिकल ऑपरेशन के बाद घाटी में तैनात सुरक्षा बल काफी सतर्क थे, लेकिन पाकिस्तान के आतंकियों और कश्मीर के अलगाववादियों के बीच जो सांठगांठ है, उसी का नतीजा है कि बारामूला में सुरक्षा बलों के कैम्प पर हमला हो गया। अब समय आ गया है कि सुरक्षा बलों को घाटी में बैठे पाकिस्तानी आतंकियों और अलगाववादियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी होगी। सेना जब भी घाटी में कार्यवाही करती है तो मानवाधिकारों की दुहाई देकर सेना की कार्यवाही का विरोध किया जाता है, लेकिन ऐसे मानवाधिकार के रक्षकों को यह बताना चाहिए कि सुरक्षा बलों के कैम्प पर हमले कौन कर रहा है? अब तक हजारों जवान आतंकी हमलों की वजह से शहीद हो चुके हैं। जख्मी और अपंग होने वाले जवानों की संख्या कहीं ज्यादा है। जो मानवाधिकार के नियम आतंकियों और अलगाववादियों के लिए लागू होते हैं, वो ही सुरक्षा बलों के जवानों पर भी होते हैं, लेकिन मानवाधिकार का ढिंढोरा पीटने वाले हमारे जवानों पर हमले का मुद्दा नहीं उठाते। इससे ऐसे रक्षकों का दोहरा चरित्र ही उजागर होता है। क्या ऐसे लोग बता सकते हैं कि कश्मीर के किन लोगों ने पाकिस्तान के आतंकियों को अपने घरों में संरक्षण दे रखा है? सुरक्षा बलों पर जानलेवा हमला करने के बाद आतंकी घरों में जाकर छिप जाए, इससे मिलीभगत का अंदाजा लगा लेना चाहिए। असल में सेना ने जो सर्जिकल ऑपरेशन पीओके में किया है वैसा ही ऑपरेशन घाटी में भी करना होगा।


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