सपा महाभारत पर विशेष..............

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 साथियों,
     एक भगवान रामचन्द्र जी थे जिन्होंने प्रजा के हित को सर्वोपरि मानकर अपने रामराज्य का संचालन किया था। मात्र एक प्रजा की बात पर अपनी गंगाजल जैसी पावन पवित्र अर्द्धगिनी तक को अपने राज्य से बाहर कर दिया और कभी उनका कुशल क्षेम तक जानने की कोशिश नहीं की।

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अपने परिवार के लिये अपने पुत्रों तक से लड़ने के लिये तैयार हो गये। कहिए कुशल था कि उनकी धर्मपत्नी ऐनवक्त पर सामने आ गयी वर्ना बाप बेटे में संघर्ष होना तय था।उस समय एक कैकेई थी जिसकी वजह से पूरी अवधपुरी को रोना पड़ा था और चौदह वर्षों तक सिंहासन खाली पड़ा रहा।राजा के लिये प्रजा उसका परिवार हो जाती है और उसका परिवार प्रजा परिवार के सामने गौड़ हो जाता है।कल के राजा आज के राजनेता व शासक हैं किन्तु राजा वाले भाव उनमें नहीं है। राम ने एक प्रजा की अविश्वसनीय बात को मान लिया किन्तु कलियुगी राजा अपनी हजारों प्रजा की बात को बगावत मानकर उसके सर्वनाश करने में लग जाते हैं।कलियुगी राजा प्रजा का पेट बाद में देखते हैं अपना पेट पहले देखते हैं और यहीं असली नकली राजा में अन्तर होता है।कहा गया है कि-" जासु राज प्रजा दुखियारी सो नृप अवश्य नरक अधिकारी "। लोकतांत्रिक राजा सत्ता में बने रहने के प्रजा में फूट डालकर उन्हें आपस में लड़ाने का कार्य कर रहे है।प्रजा की जगह खुद जनता की गाढी कमाई को लूटने में जुटे हैं।जो लूट का विरोध करता है उसको सारे लुटेरे मिलकर लुटेरा बनाकर खुद पाक साफ बन जाते हैं।कलियुगी राजाओं में से एक राजशाही ( राजनैतिक) परिवार में पिछले कई दिनों से सत्ता के लिये महाभारत मची है।लुटेरो का विरोध करने वाला खुद लुटेरा बन गया और लुटेरे ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ बन गये।जिनके बदन पर काजल लगा है वह अपने को बेदाग बता रहें हैं।प्रजा यानी जनता के हित अनहित से जैसे कोई वास्ता ही नहीं रह गया है।प्रजा यानी लोकतंत्र में मतदाता भगवान की वह कदर नहीं रह गयी जो भगवान के रामराज्य में एक धोबी बिरादरी के व्यक्ति की थी।एक कैकयी ने अयोध्या उखाड़ दी तो एक कैकेई ने महाभारत कराकर सौतेले को वनवास दिलाने का कुचक्र रच दिया और यह भी ध्यान नहीं दिया कि वह जिस घर में आग लगा रहीं हैं उसी की बदौलत आज वह रानी बनी बैठी है।कैकेई को अपनी भूल का अहसास तब हुआ जब उनकी माँग का सिंदूर उजड़ गयी।शासक को भगवान का स्वरूप माना गया है और भगवान उस अपने महा नालायक का भी पेट रहता है जो हमेशा उसकी निंदा किया करता है। राजकाज में परिवार नहीं बल्कि प्रजा से जुड़े मंत्रियों से राय ली जाती है।भगवान राम ने हमेशा गुरु और अपने मंत्रियों की सलाह पर राज्य के कार्यों का संचालन किया कभी अपने परिवार से सलाह नहीं ली।तभी उनके कार्यकाल को रामराज्य कहकर आज भी याद किया जाता है।



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