ये मंदिर है, पूरे देश की शान

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नवरात्र में मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कूष्मांडा की सारी दुनिया में पूजा होती है पर देश में उनका इकलौता मंदिर घाटमपुर में है।
यह कानपुर-सागर राजमार्ग पर स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार मां कूष्मांडा का यह मंदिर मराठा शैली में बना है और इसमें स्थापित मूर्तियां संभवत: दूसरी से दसवीं शताब्दी के मध्य की हैं। -- --
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मान्यता है कि प्राचीन काल में इसी स्थान पर स्थित एक झाड़ी में कुड़हा नामक ग्वाले की गाय अपना दूध गिरा देती थी , लगातार यही होता देखकर कुड़हा ने यहां खुदाई कराई तो उसे एक मूर्ति दिखाई पड़ी। काफी खुदाई कराने के पश्चात भी इस मूर्ति का अंत न मिलने पर उसी स्थान पर उसने एक चबूतरे का निर्माण करा दिया। कुड़हा ग्वाले द्वारा माता को खोजे जाने के कारण ही इन्हें कुड़हा देवी भी कहा जाने लगा। कहा जाता है कि इसके बाद कस्बे के एक निवासी को माता ने सपने में संदेश देकर अपने मंदिर निर्माण की बात कही जिसके चलते लगभग सन 1890 में माता का भव्य मंदिर बनवाया गया। अपनी मोहक मुस्कान से ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण ही इनका नाम कूष्मांडा भी पड़ा। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था,चारों ओर अंधकार था तभी इन्हीं देवी ने अपनी हंसी द्वारा ब्रह्माण्ड की रचना की थी इसी कारण यह सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति मानी जाती हैं। बलियों में इन्हें कुम्हड़े की बलि सर्वाधिक प्रिय है। मां कूष्मांडा के दर्शन और पूजन मात्र से हर मनोकामना पूर्ण होती है। मान्यता है कि मंदिर में विद्यमान माता की मूर्ति का जल कभी भी खत्म नहीं होता है। इस पवित्र जल को आंखों में लगाने से नेत्र विकारों से छुटकारा मिल जाता है तथा आयु , यश बल की वृद्धि होती है। आज होगा भव्य दीपदान नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा मंदिर में भव्य दीपदान का आयोजन किया जाता है। शाम ढलते ही परिसर व सरोवरों में एक साथ हजारों दीपों का प्रज्वलन परिसर की शोभा में चार चांद लगाता है। दीपदान करने के लिए तहसील क्षेत्र के साथ ही अन्य जिलों व प्रदेशों के लोग मौजूद रहते हैं। नवरात्र में मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कूष्मांडा की सारी दुनिया में पूजा होती है पर देश में उनका इकलौता मंदिर घाटमपुर में है। यह कानपुर-सागर राजमार्ग पर स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार मां कूष्मांडा का यह मंदिर मराठा शैली में बना है और इसमें स्थापित मूर्तियां संभवत: दूसरी से दसवीं शताब्दी के मध्य की हैं। मान्यता है कि प्राचीन काल में इसी स्थान पर स्थित एक झाड़ी में कुड़हा नामक ग्वाले की गाय अपना दूध गिरा देती थी , लगातार यही होता देखकर कुड़हा ने यहां खुदाई कराई तो उसे एक मूर्ति दिखाई पड़ी। काफी खुदाई कराने के पश्चात भी इस मूर्ति का अंत न मिलने पर उसी स्थान पर उसने एक चबूतरे का निर्माण करा दिया। कुड़हा ग्वाले द्वारा माता को खोजे जाने के कारण ही इन्हें कुड़हा देवी भी कहा जाने लगा। कहा जाता है कि इसके बाद कस्बे के एक निवासी को माता ने सपने में संदेश देकर अपने मंदिर निर्माण की बात कही जिसके चलते लगभग सन 1890 में माता का भव्य मंदिर बनवाया गया। अपनी मोहक मुस्कान से ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण ही इनका नाम कूष्मांडा भी पड़ा। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था,चारों ओर अंधकार था तभी इन्हीं देवी ने अपनी हंसी द्वारा ब्रह्माण्ड की रचना की थी इसी कारण यह सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति मानी जाती हैं। बलियों में इन्हें कुम्हड़े की बलि सर्वाधिक प्रिय है। मां कूष्मांडा के दर्शन और पूजन मात्र से हर मनोकामना पूर्ण होती है। मान्यता है कि मंदिर में विद्यमान माता की मूर्ति का जल कभी भी खत्म नहीं होता है। इस पवित्र जल को आंखों में लगाने से नेत्र विकारों से छुटकारा मिल जाता है तथा आयु , यश बल की वृद्धि होती है। आज होगा भव्य दीपदान नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्मांडा मंदिर में भव्य दीपदान का आयोजन किया जाता है। शाम ढलते ही परिसर व सरोवरों में एक साथ हजारों दीपों का प्रज्वलन परिसर की शोभा में चार चांद लगाता है। दीपदान करने के लिए तहसील क्षेत्र के साथ ही अन्य जिलों व प्रदेशों के लोग मौजूद रहते हैं।




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