रिटायरमेंट के बाद भी कुर्सी से चिपके हैं ये बाबू

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 रिटायरमेंट के बाद भी कुर्सी से चिपके आरटीओ के ये अफसर, कानपुर आरटीओ में पांच बाबू कई साल पहले रिटायर होने के बावजूद अपने पदों पर काम कर रहे हैं। वे ऐसी कुर्सियों पर हैं जो मोटी कमाई का बड़ा जरिया हैं। जाहिर है मुफ्त में आठ से दस घंटे काम करने वाले ये बाबू शाम को जेब भरके जाते होंगे और साहबों को भी खुश रखते होंगे। यदि इन पर कोई आरोप लगे तो कार्रवाई भी न होगी क्योंकि लिखा-पढ़ी में वे कुर्सी पर हैं हीं नहीं। विभाग के आला अफसर इसे न ‘श्रमदान’ मान रहे हैं न ही उचित तरीका। संवाददाता ने जब इस मसले पर उनसे पक्ष पूछा तो स्टाफ की कमी की दलील दी। विभाग में संविदा पर भर्ती व्यवस्था नहीं है।
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आरटीओ में कैश विभाग के लेखाकार बीएन वर्मा, कैशियर प्रदीप लटकिया, डीएल विभाग में नंदलाल, प्रवर्तन सेक्शन में भीमसेन और हल्का वाहन रजिस्ट्रेशन में अखिलेश द्विवेदी कई साल पहले रिटायर हो चुके हैं। इसके बाद भी वे अपने पदों पर बने हुए हैं। सुबह नियमित समय पर दफ्तर पहुंचने के साथ ही अपनी सीट पर ही बैठते हैं। विभाग की ओर से पब्लिक डीलिंग करते हैं। अमर उजाला रिपोर्टर ने गुरुवार को पड़ताल करने के बाद सभी कर्मचारियों की फोटो खींचने के साथ ही वीडियो भी बनाया है। इस मामले की जानकारी लेने पर विभाग के अफसर सकपका गए और सिर्फ स्टाफ की कमी होने की बात कहते रहे।बगैर वेतन क्यों काम कर रहे बाबू
आरटीओ के इन रिटायर्ड बाबुओं को आठ से दस घंटे काम करने का विभाग की तरफ से कोई वेतन नहीं दिया जाता है। जांच में यह भी सामने आया है कि रिटायरमेंट के बाद इन्हें संविदा पर भी नहीं रखा गया है। सिर्फ अफसरों की मेहरबानी पर नौकरी कर रहे हैं। इनकी कार्यशैली खुद संदेह के घेरे में है कि बगैर वेतन के विभाग में कैसे काम कर रहे हैं।
वहीं आरटीओ वीके सिंह का कहना है मुझे इस मामले की जानकारी नहीं है, मीडिया को कोई भी जानकारी देने के लिए एआरटीओ प्रभात पांडेय को जिम्मेदारी दे रखी है। इस संबंध में उनसे ही बात कर लीजिए।
एआरटीओ के प्रभात पांडेय ने कहा कर्मचारियों की कमी के चलते सेवानिवृत्त होने के बाद भी कुछ कर्मचारी अपनी सेवा दे रहे हैं। वह मुफ्त में काम कर रहे हैं। कर्मचारियों की नियुक्ति होने के बाद उन्हें हटा दिया जाएगा। संविदा पर इनको नहीं लिया जा सकता। ऐसा कोई नियम नहीं है।



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