--
-- --
--
◆ रेलवे प्रशासन, जीआरपी और आरपीएफ की अनदेखी के कारण स्मैक-चरस बिक्री, जुए की खुली फड़ों और क्रिमिनलों का गढ़ बन गया सीपीसी माल गोदाम
◆ स्मैक गैंग ने आसपास के विशाल क्षेत्र. को बना दिया स्मैक बिक्री का थोक बाजार
◆ इन्हीं क्रिमिनल्स को प्रश्रय मिलने से रोजाना रेलवे को भी लग रहा हजारों रुपये का चूना
◆ रेल गोदाम में शरण पाये मिलीभगत से बेच डालते हैं रेलवे का स्क्रैप और महंगा साजो-सामान
◆ गोदाम पर ‘राज’ कर रहे क्रिमिनल परिवार पर बार-बार दर्जनों मुकदमे होने, पकड़े जाने के बावजूद खाली नहीं करवाया जा रहा गोदाम
◆ गैंग की महिला संचालकों ने बच्चों और नाबालिगों को स्मैक की लत लगाकर बनाया अपना मुखबिर और पहरेदार
◆ शहर दायरा न्यूज की पड़ताल: -जहर बिक्री की कमाई से रेल गोदाम के जरायमपेशा परिवार ने इलाहाबाद और कानपुर में अर्जिैत कर ली करोड़ों की प्राॅपर्टी
◆ जूही जीएमसी यार्ड आरपीएफ थाने का एचसीपी और सिपाही गोदाम के स्मैक तस्करों से रोजाना वसूल रहे मोटी रकम
◆ _इलाहाबाद निवासी आरपीएफ दरोगा का रिश्तेदार युवक रहा है आरपीएफ और स्मैक गैंग का बिचैलिया
◆ झकरकटी में रेलवे जमीन पर कब्जा करके रह रहा पूर्व आरपीएफ कर्मी का भाई भी है गैंग की स्मैक बिक्री एजेंट
◆ सैकड़ों मासूमों को मौत से बदतर जिंदगी देकर फल-फूल रहा है सीपीसी गोदाम का स्मैक गैंग
◆ घंटाघर चैराहे पर दुकान लगा रहा लखपति बताशे वाला है गैंग और सिविल पुलिस का बिचैलिया
◆ हाल में ही गैंग पर नाबालिग के अपहरण और बलात्कार में जेल जाने और गैंगस्टर लगने के बावजूद छूट कर गोदाम में ही धंधा जारी
◆ जीआरपी-आरपीएफ के आंखें मूंद लेने से केवल सिविल पुलिस के जिम्मे सीपीसी में बसे गुनाहों के ‘देवी-देवता’
----------------------------
ये तो एक नया 'सीटीएस' है!
अपराध करने वाले खतरनाक मुजरिमों, आपराधिक मानसिकता के और जरायम पेशा लोगों को आबादी से दूर व अलग, एक जगह रखकर निगरानी करने और समाज को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से आजादी से पूर्व, अंग्रेजों ने ‘क्रिमिनल ट्राइब सेटेलमेंट, यानि ‘सीटीएस’ नाम की बस्तियां स्थापित की थीं। फिरंगियों का क्राइम कंट्रोल का ये तरीका उस काल में बेहद सुल रहा था। कानपुर में भी आज के कल्याणपुर-बिठूर रोड के किनारे लगभग एक शताब्दी पूर्व एक क्रिमिनल ट्राइब सेटेलमेंट बनाया गया था। वो आज भी है, लेकिन आदतन क्रिमिनल मानसिकता वाले वहां के कुछ वांशिंदों को छोड़ दें तो अब बाकी के परिवारों के बच्चे पढ-़लिख गये हैं, उनकी सोसाइटी सुधर गई है। यानि ‘सीटीएस’ अब सीटीएस नहीं रहे। लेकिन कानपुर में एक दूसरी जगह पूरी तरह क्रिमिनल ट्राइब सेटेलमेंट बन चुकी है...उस जगह का नाम का है कानपुर महानगर के बीचोंबीच, हजारों एकड़ में फैला रेलवे का सीपीसी माल गोदाम...और यहां सीटीएस की तरह केवल कच्ची शराब के विक्रेताओं, उठाईगीरों या चोर-उचक्कों का ठिकाना नहीं हैं, बल्कि रेलवे के सीपीसी माल गोदाम में बसते हैं साक्षात ‘मौत’ बेचने वाले व्यापारियों के गैंग...
इस जगह को सीटीएस की तरह सरकार ने नहीं, खुद बेहद खतरनाक, शातिर क्रिमिनलों ने खुद अपने स्थाई ठिकाने के तौर पर चुना है। क्योंकि उन्हें मालूम है कि आरपीएफ और जीआरपी की तरफ से उन्हें पकड़ने के लिये कभी कोई प्रयास होने वाले नहीं इसलिये रेलवे की जमीन पर वो पूरी तरह सुरक्षित हैं।
-----------------------------
(शहर दायरा न्यूज़)
कानपुर। शहर में स्थित रेलवे के सीपीसी माल गोदाम के 10 विशाल दरवाजों के अंदर, हजारों एकड़ जमीन पर स्मैक और चरस जैसे जहर का कारोबार खूब फल-फूल रहा है। देश के कुछ सबसे बड़े रेलवे माल गोदामों में से एक, कानपुर के ‘सीपीसी’ की जमीन पर अराजक तत्वों और स्मैक तस्करो ने सालों से अवैध कब्जे कर अपने ‘घर’ रखे हैं। इन्हीं घरों से बाकायदा करोड़ों का ये काला कारोबार जारी है। इतना ही नहीं, वेश्यावृत्ति करने वालों और चोर-उचक्कों के लिये भी कानपुर का सीपीसी माल गोदाम और यहां की ‘अवैध कच्ची बस्ती’ सुरक्षित जन्नत बन गई है, जहां सभी किस्म के जरायम पेशा शरण पाते हैं। फिलहाल कानपुर की ‘स्मैक क्वीन’ कहलाने वाली महिला, उसकी बहन और पति यहां से अपना घंधा आराम से संचालित कर रहे हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि रेलवे की इस जमीन पर स्मैक का विशाल कारोबार जीआरपी, आरपीएफ या रेलवे प्रशासन की जानकारी में नहीं है। क्योंकि यहां रह रहा स्मैक के धंधे के सरगना का पूरा परिवार पर दर्जन भर मुकदमे चल रहे हैं। सीपीसी माल गोदाम की अवैध बस्ती स्मैक और दूसरी तरह के बड़े जरायम के लिये अखबारों की सुर्खियों में रह चुकी है, और ये सब रेलवे पुलिस सहित रेलवे के उच्चाधिकारियों की नाॅलिज में भलीभांति है, फिर भी इलाके को जरायम पेशा लोगों के लिये खुला छोड़ रखा गया और उन्हें हटाया नहीं जा रहा है। डरावनी बात ये है कि इस स्मैक गैंग ने सीपीसी माल गोदाम के 10 गेटों से लेकर सेंट्रल स्टेशन से सटी पूर्वी बाउंड्री, पश्चिम में कोपरगंज रोड तक और दक्षिण में झकरकटी पुल व अनरगंज स्टेशन के आउटर तक को स्मैक का थोक बाजार बना डाला है। वो बच्चों को स्मैक की लत डलवाकर ड्रग कैरियर और धंधे का गार्ड बना रहे हैं।
नहर पटरी पर दशकों से काबिज हैं जरायम पेशा
सीपीसी माल गोदाम के बीचोंबीच से सिंचाई विभाग की नहर पास होती थी। ये नहर या कैनाल कानपुर शहर के घंटाघर से होती हुई, मुख्य सड़क को क्राॅस करके सीपीसी माल गोदाम के बीच से होती हुई, झकरकटी पुल को क्राॅस करके जूही की तरफ निकल जाती थी। इसी नहर या कैनाल के कारण घंटाघर से आगे की एक्सप्रेस रोड को, जुहारी देवी काॅलेज तक आज भी कैनाल रोड कहा जाता है। तीन-चार दशक पहले ही नहर तो खत्म हो गई, लेकिन सीपीसी के अंदर से जहां ये पास होती थी, उसे आज भी नहर पटरी कहा जाता है। और वो नहर की पुरानी जमीन आज भी सिंचाई विभाग के अंडर में है। उसी जमीन पर दशकों से जरायम पेशा लोगों, यानि समाज और कानून से भागे हार्डकोर क्रिमिनल्स का कब्जा हो गया।
दो दर्जन घरों पर एक क्रिमिनल परिवार का कब्जा
इस वक्त सीपीसी माल गोदाम के अंदर नहर पटरी की जमीन पर बड़ी संख्या में कच्चे-पक्के दो दर्जन अवैध मकान बने हुये हैं। यही मकान शहर के कुछ सबसे नटोरियस क्रिमिनल्स का सेटेलमेंट हैं। इनमें से कुछ शहर और आसपास के जिलों में कई गंभीर अपराधों में वांछित या नामजद रहे हैं। लेकिन अधिकांश स्मैक और चरस जैसे नशीले पदार्थों की बिक्री में लिप्त हैं। दरअसल सीपीसी गोदाम कच्ची बस्ती के अधिकांश घर व कमरे रुखसाना, उसकी बहन रेहाना व रुखसाना के पति वकील उर्फ नैयर के हैं। इनमें वो स्थानीय क्रिमिनल्स से लेकर दूर दराज के जरायम पेशा लोगों को ठहराता है, या इन कमरों में क्रिमिनल्स को ठहराकर मोटा किराया वसूलता है। किराये के बदले अपने स्मैक के धंधे में उन्हें इस्तेमाल करता है, पुलिस से प्रोटेक्शन भी दिलवाता है।
कागजों में पति, असलियत में बीवी और साली हैं गिरोह की मुखिया
कलेक्टरगंज पुलिस रिकार्ड्स के अनुसार सीपीसी की इस कच्ची बस्ती में हो रहे स्मैक के कारोबार का मुखिया थाना बजरिया के कंघी मोहाल निवासी बन्ने मियां का बेटा वकील अहमद उर्फ नैयर है, जो सालों से सीपीसी की कच्ची बस्ती में ही रह रहा है। लेकिन असल में पूरा कारोबार तो वकील उर्फ नैयर की पत्नी रुखसाना और उसकी छोटी विधवा बहन शातिर रेहाना संचालित करती हैं। यानि कि वकील उर्फ नैयर की पत्नी और साली ही स्मैक विक्रेता गिरोह के मुख्य कर्ता-धर्ता हैं। पर रखसाना, रेहाना और वकील के काम में उनका बड़ा बेटा रिजवान उर्फ अत्ता भी जमकर साथ निभाता है। ये अत्ता अपने बाप वकील और मां रुखसाना से चार कदम आगे है। पुलिस सूत्रों के अनुसार अत्ता रिजवान एक मंझा हुआ हार्डकोर क्रिमिनल है। वो सीपीसी मालगोदाम के अंदर कई जगह और टीन शेडों में जुए के कई अड्डे चलवाता है। और स्मैक का वितरण नेटवर्क संभालता है।
क्राइम रजिस्टर के हर पन्ने पर रेहाना, रिखसाना, रिज़वान और वकील का नाम...
कलक्टरगंज थाने के क्राइम रजिस्टर के अनुसार अगस्त 2011 में ही उसके खिलाफ 3/4 गुडा एक्ट और आईपीसी की धारा 304 और 411 के अंतर्गत चार्जशीट लगी। फिर 28 फरवरी 2013 को कलेक्टरगंज थाने से ही रुखसाना के इस ‘होनहार’ बेटे रिजवान उर्फ अत्ता के खिलाफ गैंग्स्टर एक्ट भी तामील हुआ। रिजवान की मां, यानि स्मैक तस्कर व विक्रेता रुखसाना पर जनवरी 2011 में कलेक्टरगंज से ही जनवरी 2012 में 110 जी, यानि मिनी गुंडा एक्ट लग चुका था। मतलब उसे 6 माह के लिये पाबंद किया गया था। इसकी अवधि खत्म होती उससे पहले ही फिर से रुखसाना को सोशली बैड एलीमेंट मानते हुये पुलिस ने उसे जून 2012 में फिर से 110 जी लगाकर अगले 6 माह के लिये पाबंद कर दिया। इसके बाद सीधे इसी साल, यानि 2016 के मई में उसपर एनडीपीएस और गुंडा एक्ट तामील किया गया। बीते जून में में भी उसके खिलाफ केस दर्ज हुये। वहीं रुखसाना की छोटी बहन और अत्ता उर्फ रिजवान की मौसी रेहाना पर कल्क्टरगंज पुलिस ने सितंबर 2011 मंें ही एनडीपीएस एक्ट के अंतर्गत कार्रवाई की थी। उसपर जनवरी 2012 में रुखसाना के साथ ही गुंडा एक्ट भी लगा था। रुखसाना के पति वकील अहमद उर्फ नैयर के खिलाफ भी 2012 और 2016 में गुंडा एक्ट की कार्रवाई हुई है।
एफआईआर में कई बार ‘नाम’ का ‘खेल’ करके किसने बचाया स्मैक तस्करों को..?
बात केवल इतनी सी नहीं, हर बार पुलिसिया कार्रवाई के बाद स्मैक तस्कर बहनों और उनके जरायम पेशा परिवार को राजनैतिक लोग संरक्षण देते रहे। फिर पुलिस से बचाते रहे, पकड़े जाने पर उनकी तगड़ी पैरवी होती, यहां तक कि एफआईआर दर्ज करने में उन्ही ‘पाॅलिटिकल शख्सियतों’ ने लिखापढ़ी में खेल करवाया। जैसे कि वकील उर्फ नैयर पर 2012 में गैंगस्टर लगने पर पिता का नाम बन्ने मियां लिखा गया, तो वहीं अप्रैल 2016 में दर्ज एफआईआर में उसका पता कंघी मोहाल से बदलकर कच्ची बस्ती सीपीसी गोदाम और वल्दियत बदलकर ‘खलील अहमद’ लिख दिया गया। मतलब पुलिस ने खेल किया और मुल्जिम के पिता का नाम और पता ही बदल डाला। इसी प्रकार 2013 में कलक्टरगंज पुलिस ने स्मैक एनडीपीएस की कार्रवाई की, तो उसमें नामों का खेल करके एक बाहरी महिला तस्कर को कथित तौर पर बचा लिया। दरअसल रेहाना और रुखसाना को बेचने के लिये बाराबंकी से स्मैक और चरस लेकर आने वाली जरीना नाम की महिला को बचाया गया। दिसंबर 2013 की इस एनडीपीएस कार्रवाई में रेहाना को ही जरीना बना दिया गया। रेहाना उर्फ जरीना नाम दर्ज किया गया, वो नाम जो कि उसके बाद और पहले कभी भी रेहाना के लिये इस्तेमाल ही नहीं हुआ।
ढकनापुरवा का शातिर और घंटाघर का बताशे वाला
सीपीसी माल गोदाम के इस स्मैक तस्कर परिवार पर पुलिस कार्रवाई के दौरान कई और नाम भी प्रकाश में आये। जैसे कि रायपुरवा रेलवे कालोनी निवासी मिठ्ठूलाल पुत्र विनोद कुमार। इस विनोद कुमार नाम के शातिर पर 2015 में ही रेहाना-रुखसाना गैंग के साथ पकड़े जाने पर गुंडा एक्ट लगा। ये विनोद कुमार बाबूपुरवा थाने के ढकनापुरवा में रहकर गैंग के लिये चरस और स्मैक शहर में मंगवाता है। और झकरकटी पुल के नीचे रेलवे की जमीन पर कब्जा करके रह रहा राजू नाम का युवक गैंग की उस स्मैक को बिकवाकर अपना कमीशन लेता है। ये राजू नाम का शातिर एक पूर्व आरपीएफ कर्मी का भाई है। उसी हनक के बूते वो रेलवे की जमीन पर कब्जा करके आराम से धंधे कर रहा है। पुलिस सूत्रों के अनुसार अपने सालों पहले पति नवाब की मौत के बाद स्मैक तस्कर रेहाना अब इस विनोद नाम के शातिर के साथ रह रही है। विनोद भी स्मैक के धंधे में जमकर अपनी अधेड़ प्रेमिका रेहाना का साथ निभाता है। वहीं घंटाघर चैराहे पर मंजूश्री सिनेमा के सामने बताशे का ठेला लगाने वाला शिव कुमार नाम का एक व्यक्ति इस गैंग के लिये निचले स्तर पर पुलिस से सेटिंग कराता है। शहर दायरा न्यूज़ को मिली जानकारी के अनुसार ये बताशे वाला आरपीएफ, जीआरपी और कलेक्टरगंज पुलिस का खास मुखबिर भी है। सूत्रों से शहर दायरा न्यूज को मिली जानकारी के अनुसार बताशे वाला रेलवे का स्क्रैप बिकवाकर कमीशन खाने के साथ ही रेहाना-रुखसाना के कब्जे वाले सीपीसी के अवैध कमरों को किराये पर उठवाने का काम भी करता है। कुछ सालों में ही वो कई बड़े प्लाटों और घरों का मालिक भी हो गया है।
वहीं ये भी बता दें कि अभी तक सीपीसी माल गोदाम जूही यार्ड में स्थित जीएमसी आरपीएफ थाने के अंडर में आता था। लेकिन हाल में ही अनवरगंज स्टेशन के एनसीआर में शामिल हो जाने के बाद से अलग से अनवरगंज आरपीएफ थाने का गठन हो गया, तब से सीपीसी माल गोदाम अब अनवरगंज आरपीएफ की परिधि में आ गया। लेकिन अनवरगंज थाने में स्टाफ की पोस्टिंग नहीं होने से कोइ्र गोदाम को देखने वाला नहीं। इसलिये ये भगवान भरोसे है और यहां पर जूही जीएमसी आरपीएफ के कर्मचारियों की ही वसूली अब भी जारी है। अंदर कोई छुटपुट क्राइम भी होता है तो मामला कलेक्टरगंज पुलिस के मत्थे मढ़ दिया जाता है। कलक्टरगंज के कई पुराने कारसाज सिपाही और दरोगा इसका जमकर फायदा भी उठते हैं।
सीपीसी के गेटों पर मोबाइलधारी बच्चों की पहरेदारी
रेहाना-रुखसाना के स्मैक तस्कर गैंग का संजाल हजारों एकड़ में फैले सीपीसी माल गोदाम में फैला है। इन्होंने गोदाम के हर कोने पर स्मैक बिक्री के लिये अपने गुर्गों को लगा रखा है। वहीं माल गोदाम के सभी 10 गेटों पर खास पहरेदारों को नियुक्त कर रखा है। ये पहरेदार मोबाइल से लैस वो बच्चे हैं, जो पुलिस या अपरिचित लोगों के अंदर घुसते ही कोनों में जाकर तुरंत रेहाना-रुखसाना, अत्ता उर्फ रिजवान सहित गैंेग के दूसरे गुंडों को फोन करके सतर्क कर देते हैं। इन बच्चों या किशोरों की फोन काॅल पर ढेरों गुंडे अचानक ही अंदर घुसे संदिग्ध या अपरिचित को घेर लेते हैं। वहीं शातिर गैंग लीडर महिलायें मेहनताने के तौर पर इन पहरेदार बच्चों और किशोरों को दिन में दो टाइम स्मैक की पुड़िया देती हैं। शहर दायरा न्यूज़ जल्द स्मैक तस्करों के इस घिनौने कृत्या का पर्दाफ़ाश करेगा।
कौन और क्यों इन्हें दे रहा स्मैक बेचने की छूट!
सालों से सीपीसी माल गोदाम की कच्ची बस्ती निवासी इन दोनों बहनों रेहाना, रुखसाना और उनके जरायम पेशा परिवार के खिलाफ मुकदमे दर मुकदमे होते रहे, इसके बावजूद रेलवे ने समाज के लिये जहर बन चुके इस क्रिमिनल परिवार से अपनी जमीन को उनके कब्जे से खाली करवाने की कोशिश नहीं की। सवाल उठता है कि आखिर क्यों...!
DAILY LIVE UPDATE : POLICE PRAHARI NEWZ
-- Sponsored Links:-
शहर के सबसे बड़े स्मैक तस्कर और विक्रेताओं का गैंग पनाह पा रहा रेलवे के गोदाम में
◆ सालों से सीपीसी माल गोदाम की नहर पटरी पर कब्जे करके बसा है स्मैक तस्कर परिवार
◆ रेलवे गोदाम के बीचोंबीच स्मैक तस्कर ने कब्जा कर बना ली कई घरों और कमरों की पूरी बस्ती
◆ शहर और आसपास के कई जरायम पेशा और प्रोफेशनल क्रिमिनल शरण पा रहे हैं रेलवे के इस अघोषित ‘क्रिमिनल ट्राइब सेटेलमेंट’ में
◆ सालों से सीपीसी माल गोदाम की नहर पटरी पर कब्जे करके बसा है स्मैक तस्कर परिवार
◆ रेलवे गोदाम के बीचोंबीच स्मैक तस्कर ने कब्जा कर बना ली कई घरों और कमरों की पूरी बस्ती
◆ शहर और आसपास के कई जरायम पेशा और प्रोफेशनल क्रिमिनल शरण पा रहे हैं रेलवे के इस अघोषित ‘क्रिमिनल ट्राइब सेटेलमेंट’ में
-- --
--
◆ रेलवे प्रशासन, जीआरपी और आरपीएफ की अनदेखी के कारण स्मैक-चरस बिक्री, जुए की खुली फड़ों और क्रिमिनलों का गढ़ बन गया सीपीसी माल गोदाम
◆ स्मैक गैंग ने आसपास के विशाल क्षेत्र. को बना दिया स्मैक बिक्री का थोक बाजार
◆ इन्हीं क्रिमिनल्स को प्रश्रय मिलने से रोजाना रेलवे को भी लग रहा हजारों रुपये का चूना
◆ रेल गोदाम में शरण पाये मिलीभगत से बेच डालते हैं रेलवे का स्क्रैप और महंगा साजो-सामान
◆ गोदाम पर ‘राज’ कर रहे क्रिमिनल परिवार पर बार-बार दर्जनों मुकदमे होने, पकड़े जाने के बावजूद खाली नहीं करवाया जा रहा गोदाम
◆ गैंग की महिला संचालकों ने बच्चों और नाबालिगों को स्मैक की लत लगाकर बनाया अपना मुखबिर और पहरेदार
◆ शहर दायरा न्यूज की पड़ताल: -जहर बिक्री की कमाई से रेल गोदाम के जरायमपेशा परिवार ने इलाहाबाद और कानपुर में अर्जिैत कर ली करोड़ों की प्राॅपर्टी
◆ जूही जीएमसी यार्ड आरपीएफ थाने का एचसीपी और सिपाही गोदाम के स्मैक तस्करों से रोजाना वसूल रहे मोटी रकम
◆ _इलाहाबाद निवासी आरपीएफ दरोगा का रिश्तेदार युवक रहा है आरपीएफ और स्मैक गैंग का बिचैलिया
◆ झकरकटी में रेलवे जमीन पर कब्जा करके रह रहा पूर्व आरपीएफ कर्मी का भाई भी है गैंग की स्मैक बिक्री एजेंट
◆ सैकड़ों मासूमों को मौत से बदतर जिंदगी देकर फल-फूल रहा है सीपीसी गोदाम का स्मैक गैंग
◆ घंटाघर चैराहे पर दुकान लगा रहा लखपति बताशे वाला है गैंग और सिविल पुलिस का बिचैलिया
◆ हाल में ही गैंग पर नाबालिग के अपहरण और बलात्कार में जेल जाने और गैंगस्टर लगने के बावजूद छूट कर गोदाम में ही धंधा जारी
◆ जीआरपी-आरपीएफ के आंखें मूंद लेने से केवल सिविल पुलिस के जिम्मे सीपीसी में बसे गुनाहों के ‘देवी-देवता’
----------------------------
ये तो एक नया 'सीटीएस' है!
अपराध करने वाले खतरनाक मुजरिमों, आपराधिक मानसिकता के और जरायम पेशा लोगों को आबादी से दूर व अलग, एक जगह रखकर निगरानी करने और समाज को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से आजादी से पूर्व, अंग्रेजों ने ‘क्रिमिनल ट्राइब सेटेलमेंट, यानि ‘सीटीएस’ नाम की बस्तियां स्थापित की थीं। फिरंगियों का क्राइम कंट्रोल का ये तरीका उस काल में बेहद सुल रहा था। कानपुर में भी आज के कल्याणपुर-बिठूर रोड के किनारे लगभग एक शताब्दी पूर्व एक क्रिमिनल ट्राइब सेटेलमेंट बनाया गया था। वो आज भी है, लेकिन आदतन क्रिमिनल मानसिकता वाले वहां के कुछ वांशिंदों को छोड़ दें तो अब बाकी के परिवारों के बच्चे पढ-़लिख गये हैं, उनकी सोसाइटी सुधर गई है। यानि ‘सीटीएस’ अब सीटीएस नहीं रहे। लेकिन कानपुर में एक दूसरी जगह पूरी तरह क्रिमिनल ट्राइब सेटेलमेंट बन चुकी है...उस जगह का नाम का है कानपुर महानगर के बीचोंबीच, हजारों एकड़ में फैला रेलवे का सीपीसी माल गोदाम...और यहां सीटीएस की तरह केवल कच्ची शराब के विक्रेताओं, उठाईगीरों या चोर-उचक्कों का ठिकाना नहीं हैं, बल्कि रेलवे के सीपीसी माल गोदाम में बसते हैं साक्षात ‘मौत’ बेचने वाले व्यापारियों के गैंग...
इस जगह को सीटीएस की तरह सरकार ने नहीं, खुद बेहद खतरनाक, शातिर क्रिमिनलों ने खुद अपने स्थाई ठिकाने के तौर पर चुना है। क्योंकि उन्हें मालूम है कि आरपीएफ और जीआरपी की तरफ से उन्हें पकड़ने के लिये कभी कोई प्रयास होने वाले नहीं इसलिये रेलवे की जमीन पर वो पूरी तरह सुरक्षित हैं।
-----------------------------
(शहर दायरा न्यूज़)
कानपुर। शहर में स्थित रेलवे के सीपीसी माल गोदाम के 10 विशाल दरवाजों के अंदर, हजारों एकड़ जमीन पर स्मैक और चरस जैसे जहर का कारोबार खूब फल-फूल रहा है। देश के कुछ सबसे बड़े रेलवे माल गोदामों में से एक, कानपुर के ‘सीपीसी’ की जमीन पर अराजक तत्वों और स्मैक तस्करो ने सालों से अवैध कब्जे कर अपने ‘घर’ रखे हैं। इन्हीं घरों से बाकायदा करोड़ों का ये काला कारोबार जारी है। इतना ही नहीं, वेश्यावृत्ति करने वालों और चोर-उचक्कों के लिये भी कानपुर का सीपीसी माल गोदाम और यहां की ‘अवैध कच्ची बस्ती’ सुरक्षित जन्नत बन गई है, जहां सभी किस्म के जरायम पेशा शरण पाते हैं। फिलहाल कानपुर की ‘स्मैक क्वीन’ कहलाने वाली महिला, उसकी बहन और पति यहां से अपना घंधा आराम से संचालित कर रहे हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि रेलवे की इस जमीन पर स्मैक का विशाल कारोबार जीआरपी, आरपीएफ या रेलवे प्रशासन की जानकारी में नहीं है। क्योंकि यहां रह रहा स्मैक के धंधे के सरगना का पूरा परिवार पर दर्जन भर मुकदमे चल रहे हैं। सीपीसी माल गोदाम की अवैध बस्ती स्मैक और दूसरी तरह के बड़े जरायम के लिये अखबारों की सुर्खियों में रह चुकी है, और ये सब रेलवे पुलिस सहित रेलवे के उच्चाधिकारियों की नाॅलिज में भलीभांति है, फिर भी इलाके को जरायम पेशा लोगों के लिये खुला छोड़ रखा गया और उन्हें हटाया नहीं जा रहा है। डरावनी बात ये है कि इस स्मैक गैंग ने सीपीसी माल गोदाम के 10 गेटों से लेकर सेंट्रल स्टेशन से सटी पूर्वी बाउंड्री, पश्चिम में कोपरगंज रोड तक और दक्षिण में झकरकटी पुल व अनरगंज स्टेशन के आउटर तक को स्मैक का थोक बाजार बना डाला है। वो बच्चों को स्मैक की लत डलवाकर ड्रग कैरियर और धंधे का गार्ड बना रहे हैं।
नहर पटरी पर दशकों से काबिज हैं जरायम पेशा
सीपीसी माल गोदाम के बीचोंबीच से सिंचाई विभाग की नहर पास होती थी। ये नहर या कैनाल कानपुर शहर के घंटाघर से होती हुई, मुख्य सड़क को क्राॅस करके सीपीसी माल गोदाम के बीच से होती हुई, झकरकटी पुल को क्राॅस करके जूही की तरफ निकल जाती थी। इसी नहर या कैनाल के कारण घंटाघर से आगे की एक्सप्रेस रोड को, जुहारी देवी काॅलेज तक आज भी कैनाल रोड कहा जाता है। तीन-चार दशक पहले ही नहर तो खत्म हो गई, लेकिन सीपीसी के अंदर से जहां ये पास होती थी, उसे आज भी नहर पटरी कहा जाता है। और वो नहर की पुरानी जमीन आज भी सिंचाई विभाग के अंडर में है। उसी जमीन पर दशकों से जरायम पेशा लोगों, यानि समाज और कानून से भागे हार्डकोर क्रिमिनल्स का कब्जा हो गया।
दो दर्जन घरों पर एक क्रिमिनल परिवार का कब्जा
इस वक्त सीपीसी माल गोदाम के अंदर नहर पटरी की जमीन पर बड़ी संख्या में कच्चे-पक्के दो दर्जन अवैध मकान बने हुये हैं। यही मकान शहर के कुछ सबसे नटोरियस क्रिमिनल्स का सेटेलमेंट हैं। इनमें से कुछ शहर और आसपास के जिलों में कई गंभीर अपराधों में वांछित या नामजद रहे हैं। लेकिन अधिकांश स्मैक और चरस जैसे नशीले पदार्थों की बिक्री में लिप्त हैं। दरअसल सीपीसी गोदाम कच्ची बस्ती के अधिकांश घर व कमरे रुखसाना, उसकी बहन रेहाना व रुखसाना के पति वकील उर्फ नैयर के हैं। इनमें वो स्थानीय क्रिमिनल्स से लेकर दूर दराज के जरायम पेशा लोगों को ठहराता है, या इन कमरों में क्रिमिनल्स को ठहराकर मोटा किराया वसूलता है। किराये के बदले अपने स्मैक के धंधे में उन्हें इस्तेमाल करता है, पुलिस से प्रोटेक्शन भी दिलवाता है।
कागजों में पति, असलियत में बीवी और साली हैं गिरोह की मुखिया
कलेक्टरगंज पुलिस रिकार्ड्स के अनुसार सीपीसी की इस कच्ची बस्ती में हो रहे स्मैक के कारोबार का मुखिया थाना बजरिया के कंघी मोहाल निवासी बन्ने मियां का बेटा वकील अहमद उर्फ नैयर है, जो सालों से सीपीसी की कच्ची बस्ती में ही रह रहा है। लेकिन असल में पूरा कारोबार तो वकील उर्फ नैयर की पत्नी रुखसाना और उसकी छोटी विधवा बहन शातिर रेहाना संचालित करती हैं। यानि कि वकील उर्फ नैयर की पत्नी और साली ही स्मैक विक्रेता गिरोह के मुख्य कर्ता-धर्ता हैं। पर रखसाना, रेहाना और वकील के काम में उनका बड़ा बेटा रिजवान उर्फ अत्ता भी जमकर साथ निभाता है। ये अत्ता अपने बाप वकील और मां रुखसाना से चार कदम आगे है। पुलिस सूत्रों के अनुसार अत्ता रिजवान एक मंझा हुआ हार्डकोर क्रिमिनल है। वो सीपीसी मालगोदाम के अंदर कई जगह और टीन शेडों में जुए के कई अड्डे चलवाता है। और स्मैक का वितरण नेटवर्क संभालता है।
क्राइम रजिस्टर के हर पन्ने पर रेहाना, रिखसाना, रिज़वान और वकील का नाम...
कलक्टरगंज थाने के क्राइम रजिस्टर के अनुसार अगस्त 2011 में ही उसके खिलाफ 3/4 गुडा एक्ट और आईपीसी की धारा 304 और 411 के अंतर्गत चार्जशीट लगी। फिर 28 फरवरी 2013 को कलेक्टरगंज थाने से ही रुखसाना के इस ‘होनहार’ बेटे रिजवान उर्फ अत्ता के खिलाफ गैंग्स्टर एक्ट भी तामील हुआ। रिजवान की मां, यानि स्मैक तस्कर व विक्रेता रुखसाना पर जनवरी 2011 में कलेक्टरगंज से ही जनवरी 2012 में 110 जी, यानि मिनी गुंडा एक्ट लग चुका था। मतलब उसे 6 माह के लिये पाबंद किया गया था। इसकी अवधि खत्म होती उससे पहले ही फिर से रुखसाना को सोशली बैड एलीमेंट मानते हुये पुलिस ने उसे जून 2012 में फिर से 110 जी लगाकर अगले 6 माह के लिये पाबंद कर दिया। इसके बाद सीधे इसी साल, यानि 2016 के मई में उसपर एनडीपीएस और गुंडा एक्ट तामील किया गया। बीते जून में में भी उसके खिलाफ केस दर्ज हुये। वहीं रुखसाना की छोटी बहन और अत्ता उर्फ रिजवान की मौसी रेहाना पर कल्क्टरगंज पुलिस ने सितंबर 2011 मंें ही एनडीपीएस एक्ट के अंतर्गत कार्रवाई की थी। उसपर जनवरी 2012 में रुखसाना के साथ ही गुंडा एक्ट भी लगा था। रुखसाना के पति वकील अहमद उर्फ नैयर के खिलाफ भी 2012 और 2016 में गुंडा एक्ट की कार्रवाई हुई है।
एफआईआर में कई बार ‘नाम’ का ‘खेल’ करके किसने बचाया स्मैक तस्करों को..?
बात केवल इतनी सी नहीं, हर बार पुलिसिया कार्रवाई के बाद स्मैक तस्कर बहनों और उनके जरायम पेशा परिवार को राजनैतिक लोग संरक्षण देते रहे। फिर पुलिस से बचाते रहे, पकड़े जाने पर उनकी तगड़ी पैरवी होती, यहां तक कि एफआईआर दर्ज करने में उन्ही ‘पाॅलिटिकल शख्सियतों’ ने लिखापढ़ी में खेल करवाया। जैसे कि वकील उर्फ नैयर पर 2012 में गैंगस्टर लगने पर पिता का नाम बन्ने मियां लिखा गया, तो वहीं अप्रैल 2016 में दर्ज एफआईआर में उसका पता कंघी मोहाल से बदलकर कच्ची बस्ती सीपीसी गोदाम और वल्दियत बदलकर ‘खलील अहमद’ लिख दिया गया। मतलब पुलिस ने खेल किया और मुल्जिम के पिता का नाम और पता ही बदल डाला। इसी प्रकार 2013 में कलक्टरगंज पुलिस ने स्मैक एनडीपीएस की कार्रवाई की, तो उसमें नामों का खेल करके एक बाहरी महिला तस्कर को कथित तौर पर बचा लिया। दरअसल रेहाना और रुखसाना को बेचने के लिये बाराबंकी से स्मैक और चरस लेकर आने वाली जरीना नाम की महिला को बचाया गया। दिसंबर 2013 की इस एनडीपीएस कार्रवाई में रेहाना को ही जरीना बना दिया गया। रेहाना उर्फ जरीना नाम दर्ज किया गया, वो नाम जो कि उसके बाद और पहले कभी भी रेहाना के लिये इस्तेमाल ही नहीं हुआ।
ढकनापुरवा का शातिर और घंटाघर का बताशे वाला
सीपीसी माल गोदाम के इस स्मैक तस्कर परिवार पर पुलिस कार्रवाई के दौरान कई और नाम भी प्रकाश में आये। जैसे कि रायपुरवा रेलवे कालोनी निवासी मिठ्ठूलाल पुत्र विनोद कुमार। इस विनोद कुमार नाम के शातिर पर 2015 में ही रेहाना-रुखसाना गैंग के साथ पकड़े जाने पर गुंडा एक्ट लगा। ये विनोद कुमार बाबूपुरवा थाने के ढकनापुरवा में रहकर गैंग के लिये चरस और स्मैक शहर में मंगवाता है। और झकरकटी पुल के नीचे रेलवे की जमीन पर कब्जा करके रह रहा राजू नाम का युवक गैंग की उस स्मैक को बिकवाकर अपना कमीशन लेता है। ये राजू नाम का शातिर एक पूर्व आरपीएफ कर्मी का भाई है। उसी हनक के बूते वो रेलवे की जमीन पर कब्जा करके आराम से धंधे कर रहा है। पुलिस सूत्रों के अनुसार अपने सालों पहले पति नवाब की मौत के बाद स्मैक तस्कर रेहाना अब इस विनोद नाम के शातिर के साथ रह रही है। विनोद भी स्मैक के धंधे में जमकर अपनी अधेड़ प्रेमिका रेहाना का साथ निभाता है। वहीं घंटाघर चैराहे पर मंजूश्री सिनेमा के सामने बताशे का ठेला लगाने वाला शिव कुमार नाम का एक व्यक्ति इस गैंग के लिये निचले स्तर पर पुलिस से सेटिंग कराता है। शहर दायरा न्यूज़ को मिली जानकारी के अनुसार ये बताशे वाला आरपीएफ, जीआरपी और कलेक्टरगंज पुलिस का खास मुखबिर भी है। सूत्रों से शहर दायरा न्यूज को मिली जानकारी के अनुसार बताशे वाला रेलवे का स्क्रैप बिकवाकर कमीशन खाने के साथ ही रेहाना-रुखसाना के कब्जे वाले सीपीसी के अवैध कमरों को किराये पर उठवाने का काम भी करता है। कुछ सालों में ही वो कई बड़े प्लाटों और घरों का मालिक भी हो गया है।
वहीं ये भी बता दें कि अभी तक सीपीसी माल गोदाम जूही यार्ड में स्थित जीएमसी आरपीएफ थाने के अंडर में आता था। लेकिन हाल में ही अनवरगंज स्टेशन के एनसीआर में शामिल हो जाने के बाद से अलग से अनवरगंज आरपीएफ थाने का गठन हो गया, तब से सीपीसी माल गोदाम अब अनवरगंज आरपीएफ की परिधि में आ गया। लेकिन अनवरगंज थाने में स्टाफ की पोस्टिंग नहीं होने से कोइ्र गोदाम को देखने वाला नहीं। इसलिये ये भगवान भरोसे है और यहां पर जूही जीएमसी आरपीएफ के कर्मचारियों की ही वसूली अब भी जारी है। अंदर कोई छुटपुट क्राइम भी होता है तो मामला कलेक्टरगंज पुलिस के मत्थे मढ़ दिया जाता है। कलक्टरगंज के कई पुराने कारसाज सिपाही और दरोगा इसका जमकर फायदा भी उठते हैं।
सीपीसी के गेटों पर मोबाइलधारी बच्चों की पहरेदारी
रेहाना-रुखसाना के स्मैक तस्कर गैंग का संजाल हजारों एकड़ में फैले सीपीसी माल गोदाम में फैला है। इन्होंने गोदाम के हर कोने पर स्मैक बिक्री के लिये अपने गुर्गों को लगा रखा है। वहीं माल गोदाम के सभी 10 गेटों पर खास पहरेदारों को नियुक्त कर रखा है। ये पहरेदार मोबाइल से लैस वो बच्चे हैं, जो पुलिस या अपरिचित लोगों के अंदर घुसते ही कोनों में जाकर तुरंत रेहाना-रुखसाना, अत्ता उर्फ रिजवान सहित गैंेग के दूसरे गुंडों को फोन करके सतर्क कर देते हैं। इन बच्चों या किशोरों की फोन काॅल पर ढेरों गुंडे अचानक ही अंदर घुसे संदिग्ध या अपरिचित को घेर लेते हैं। वहीं शातिर गैंग लीडर महिलायें मेहनताने के तौर पर इन पहरेदार बच्चों और किशोरों को दिन में दो टाइम स्मैक की पुड़िया देती हैं। शहर दायरा न्यूज़ जल्द स्मैक तस्करों के इस घिनौने कृत्या का पर्दाफ़ाश करेगा।
कौन और क्यों इन्हें दे रहा स्मैक बेचने की छूट!
सालों से सीपीसी माल गोदाम की कच्ची बस्ती निवासी इन दोनों बहनों रेहाना, रुखसाना और उनके जरायम पेशा परिवार के खिलाफ मुकदमे दर मुकदमे होते रहे, इसके बावजूद रेलवे ने समाज के लिये जहर बन चुके इस क्रिमिनल परिवार से अपनी जमीन को उनके कब्जे से खाली करवाने की कोशिश नहीं की। सवाल उठता है कि आखिर क्यों...!
DAILY LIVE UPDATE : POLICE PRAHARI NEWZ
-- Sponsored Links:-
0 comments:
Post a Comment