हिंदू धर्म में जनेऊ धारण करने की परंपरा क्यों है? जानिए

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नई दिल्ली: हिंदू धर्म में कई संस्कार होते है जिसमें यज्ञोपवीत संस्कार का बड़ा महत्व है। यज्ञोपवीत संस्कार को जनेऊ संस्कार भी कहते है। जनेऊ को उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र भी कहते हैं। जनेऊ धारण करने की परम्परा बहुत ही प्राचीन है। वेदों में जनेऊ धारण करने की हिदायत दी गई है। इसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं।
उपनयन' का अर्थ है, 'पास या सन्निकट ले जाना।' यानी ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाना। हिन्दू धर्म के 24 संस्कारों में से एक 'उपनयन संस्कार' के अंतर्गत ही जनेऊ पहनी जाती है जिसे 'यज्ञोपवीत संस्कार' भी कहा जाता है। मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी इस संस्कार के अंग होते हैं। यज्ञोपवीत धारण करने वाले व्यक्ति को सभी नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। एक बार जनेऊ धारण करने के बाद मनुष्य इसे उतार नहीं सकता।

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