आखिर इस सरज़मी को क्या हुआ है ये हिंदोस्ता जो की ऐतिहासिक रूप से जाना जाता है अपनी विविधता के लिए। परन्तु वर्तमान परिदृश्य में ये सब ओझल होता नज़र आ रहा है। असहिस्णुता का चीखता हुआ उदहारण है कानपूर का साम्प्रदाइक संघर्ष।
आखिर क्यों नहीं चल पा रही इसके विरुद्ध मुहिम, आखिर क्यों लोग इस बात पे चुप्पी साध लेना चाहते हैं हमने जब इस पर गहन अध्यन किया तो सिर्फ इतना पाया की इन सब बातो का असरत ना तो उस नेता को पड़ता है जिसने साम्प्रदाइकता की आड़ में अपना उल्लू सीधा किया , न ही उस पकट्टरपंथी लीडरों पर जिनके उकसाने पर ये सारी घटना हुई। इसमें सिर्फ और सिर्फ नुक्सान हुआ तो उस आम इंसान का जिसने गुनाह सिर्फ इतना किया की उन देश द्रोहिओं के विरुद्ध आवाज़ बुलंद नहीं कर सके, जिन्होंने उन्हें साम्प्रदाइकता की आग में झोक दिया। और इन सब में पिसा तो सिर्फ वो आम आदमी जो किसी भी जाती धर्म से अलग सिर्फ अपने काम से मतलब रखना बेहतर समझता हैं।
हम सवाल करना चाहते हैं की क्या करें वो हिन्दू जिनका काम मुस्लिम भाइयो की बदौलत चलता है और क्या करेंगे वो मुस्लिम भाई जो की हिन्ुओं की बदौलत अपना काम कर रहें हैं ऐसे हज़ारों उदहारण हैं जिनको आप भी खुद देख समझ सकते हैं या आप सभी खुद भी उन लोगो में से एक होगें।
एकता का सबक तो आप उन लोगो से भी सिख सकते हैं जो की आप लोगों को तो लड़वाने का काम करते हैं पर स्वयं एक ही पार्टी में एकसाथ मिलजुल कर भोजन करते हैं और राय मश्विरा करते है
सारा खेल परदे के पीछे होता है और सामने आ कर सिर्फ दुसरो को उकसाते है।
पुलिस प्रहरी इस सम्बन्ध में सिर्फ यही आशा रखता हैं की जनता अब निरंतर जागरूक हो रही है और इस प्रकार की किसी भी घटना में उकसाने वालो के विरुद्ध एवं स्वयं को शांत रख कर एकजुटता से प्रहार करेगी ताकि भविष्य में कोई भी इस प्रकार का साम्प्रदाइक ज़हर न घोल सके। धन्यवाद !
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