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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट आज ये तय करेगा कि क्या 24 हफ्ते की गर्भवती महिला का गर्भपात हो सकता है कि नहीं। दरअसल मेडिकल टेर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 के मुताबिक 20 हफ्ते से ज्यादा गर्भवती महिला का गर्भपात नहीं हो सकता। उच्चतम न्यायालय ने कल एक कथित बलात्कार पीड़ित की उस याचिका पर तत्काल सुनवाई पर सहमति जताई जिसमें मां और भ्रूण को गंभीर जोखिम होने के बावजूद 20 सप्ताह के बाद गर्भपात पर रोक के कानूनी प्रावधान को चुनौती दी गई है।
वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्वेज और सत्या मित्रा ने इस मामले का तत्काल सुनवाई के लिए उल्लेख करते हुए कहा कि इस मामले में महिला का जीवन गंभीर खतरे में है। एक महिला ने नई याचिका दायर करके आरोप लगाया कि उसके पूर्व मंगेतर ने शादी का झूठा वादा किया और उसका बलात्कार किया और वह गर्भवती हो गई। उसने गर्भपात संबंधी कानून की धारा 3 (2:बी) को निरस्त करने के निर्देश की मांग की जिसमें 20 सप्ताह के बाद गर्भपात पर रोक लगाई गई है। महिला का कहना है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है।
याचिका में कहा गया कि यह समयसीमा अतार्किक, एकतरफा, कठोर भेदभावपूर्ण और जीवन एवं समानता के अधिकार का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता महिला 24 सप्ताह की गर्भवती है और उसका कहना है कि वह गरीब पृष्ठभूमि की है गर्भपात के लिए 20 सप्ताह की सीमा के कारण उसका शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य जोखिम में है क्योंकि उसके भ्रूण ऐसी बीमारी से ग्रस्त है जिसमें बच्चे का जन्म मस्तिष्क एवं खोपड़ी संबंधी दिक्कतों के साथ होता है और डाक्टरों ने गर्भपात से इंकार किया है।
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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट आज ये तय करेगा कि क्या 24 हफ्ते की गर्भवती महिला का गर्भपात हो सकता है कि नहीं। दरअसल मेडिकल टेर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 के मुताबिक 20 हफ्ते से ज्यादा गर्भवती महिला का गर्भपात नहीं हो सकता। उच्चतम न्यायालय ने कल एक कथित बलात्कार पीड़ित की उस याचिका पर तत्काल सुनवाई पर सहमति जताई जिसमें मां और भ्रूण को गंभीर जोखिम होने के बावजूद 20 सप्ताह के बाद गर्भपात पर रोक के कानूनी प्रावधान को चुनौती दी गई है।
वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्वेज और सत्या मित्रा ने इस मामले का तत्काल सुनवाई के लिए उल्लेख करते हुए कहा कि इस मामले में महिला का जीवन गंभीर खतरे में है। एक महिला ने नई याचिका दायर करके आरोप लगाया कि उसके पूर्व मंगेतर ने शादी का झूठा वादा किया और उसका बलात्कार किया और वह गर्भवती हो गई। उसने गर्भपात संबंधी कानून की धारा 3 (2:बी) को निरस्त करने के निर्देश की मांग की जिसमें 20 सप्ताह के बाद गर्भपात पर रोक लगाई गई है। महिला का कहना है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है।
याचिका में कहा गया कि यह समयसीमा अतार्किक, एकतरफा, कठोर भेदभावपूर्ण और जीवन एवं समानता के अधिकार का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता महिला 24 सप्ताह की गर्भवती है और उसका कहना है कि वह गरीब पृष्ठभूमि की है गर्भपात के लिए 20 सप्ताह की सीमा के कारण उसका शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य जोखिम में है क्योंकि उसके भ्रूण ऐसी बीमारी से ग्रस्त है जिसमें बच्चे का जन्म मस्तिष्क एवं खोपड़ी संबंधी दिक्कतों के साथ होता है और डाक्टरों ने गर्भपात से इंकार किया है।
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