तीन तलाक के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं ने छेड़ दी है बगावत

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नई दिल्लीः मुस्लिम धर्म में तलाक के कानून को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। करीब 3 दशक पहले शाहबानो का मामला तब सुर्खियों में आया था जब 5 बच्चों की मां ने गुजारे भत्ते की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उसे लेकर काफी राजनीति भी हुई लेकिन अब मुस्लिम समुदाय की दो महिलाओं ने तलाक के तरीके पर ही सवाल उठाया है और उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। जयपुर की आफरीन को उनके पति ने स्पीड पोस्ट से तलाक भेज दिया। आफरीन ने कोर्ट में अपील की है कि इस तरह के तलाक पर पाबंदी लगनी चाहिए। 
भारत एक ऐसा देश है जहाँ पर दो तरह के कानून है एक वो जिसमे संविधान के तहत सभी को अपनी बात रखने का समान अधिकार मिला है तो दूसरी तरफ शरीयत कानून पर्सनल लॉ की आड़ में अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा रहा है। लखनऊ बेंच के एक फैसले के बाद शरीयत के कानून को बड़ा झटका लगा है। लखनऊ बेंच ने तीन बार मौखिक रूप से तलाक देना सविधान की मंशा के खिलाफ बताया है।  अधिकरण के न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और प्रशासनिक सदस्य एयर मार्शल अनिल चोपड़ा की खंडपीठ ने बुधवार को सेना में लांसनायक (टेलर) बरेली जिले के निवासी मोहम्मद फरूर उर्फ फारूख खां की अर्जी खारिज करते हुए राहत देने से इन्कार कर दिया। जिसके बाद युवती के परिवार वालो ने ख़ुशी जताई है और कोर्ट का धन्यवाद अदा किया है। 
अर्शी की शादी अक्टूबर 2009 में सेना में लांसनायक (टेलर) बरेली जिले के निवासी मोहम्मद फरूर उर्फ फारूख खां से हुई थी। अर्शी का आरोप है की शादी के कुछ दिनों बाद ही पति और उसके ससुराल वाले दहेज़ के लिए प्रताड़ित करने लगे। कुछ दिनों तक तो अर्शी ने सब कुछ सहन किया लेकिन जब उत्पीड़न की हद हो गई और पानी सर से ऊपर हो गया तो अर्शी ने पति , सास , ससुर समेत 9 लोगो पर दहेज़ उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज कराया। जिसके बाद सभी को जेल जाना पड़ा और इस वक्त जमानत पर सभी बाहर है। फ़िलहाल कोर्ट में केस चल रहा है। इस दौरान शरीयत कानून पर्सनल लॉ के तहत लांसनायक मोहम्मद फरूर उर्फ फारूख खां ने तीन बार तलाक तलाक तलाक कहकर अर्शी को तलाक दे दिया और गुजरा भत्ता देने से भी इंकार कर दिया। 
जिसके बाद अर्शी ने कोर्ट का सहारा लिया और लखनऊ बेंच ने तीन बार मौखिक रूप से तलाक देना सविधान की मंशा क खिलाफ बताया है। अधिकरण के न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह और प्रशासनिक सदस्य एयर मार्शल अनिल चोपड़ा की खंडपीठ ने बुधवार को सेना में लांसनायक (टेलर) बरेली जिले के निवासी मोहम्मद फरूर उर्फ फारूख खां की अर्जी खारिज करते हुए राहत देने से इन्कार कर दिया। लखनऊ बेंच ने यह भी कहा कि अदालतों या सरकारी मशीनरी को मौखिक तीन तलाक पर ज्यादा जोर नहीं देना चाहिए, क्योंकि यह संविधान के भाग-तीन में दिए गए समानता और जीवन जीने के मूल अधिकार के खिलाफ हैं। फरूर ने 2012 में दाखिल की गई इस अर्जी में अपनी बीवी को तलाक देने की बात कहते हुए उसे भरण-पोषण (मेंटेनेंस) देने के आदेश को चुनौती दी थी। उसने दलील दी कि उसने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत बीवी को तलाक दे दिया है जिससे उसकी शादी खत्म हो चुकी है। लिहाजा वह बीवी को गुजारा भत्ता देने संबंधी सैन्य प्रशासन का आदेश कानून की मंशा के खिलाफ है। 
सेना में लांसनायक (टेलर) बरेली जिले के निवासी मोहम्मद फरूर उर्फ फारूख खां इन दिनों रेजिमेंट c/o 56 apo j&k में तैनात है। मोहम्मद फरूर के पिता मोह उस्मान गनी का कहना है की कोर्ट का ये फैसला सही नहीं है उनका कहना है की वो शरीयत कानून को मानते हैं। और उनके हिसाब से तीन बार तलाक कह देने से तलाक हो जाता है और तलाक के बाद भरण-पोषण (मेंटीनेंस) देना हराम है। 
अधिकरण ने 119 पृष्ठीय फैसले में कहा कि फरूर ने 17 अगस्त 2011 को नोटिस के जरिये तलाक दिया। इस नोटिस के जरिये फरूर की दलील थी कि उसकी शादी खत्म हो गई है लिहाजा भारत सरकार या सैन्य अफसर उसकी बीवी को गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। उसका कहना था कि अधिकतम ‘मेहर’ की रकम के साथ तीन माह तक गुजारा भत्ता दिलाया जा सकता था। अधिकरण ने टिप्पणी की कि संविधान सभी कानूनों का जनक है। यह पर्सनल लॉ समेत अन्य कानूनों और परंपराओं से ऊपर है। पर्सनल लॉ की आड़ में लोगों के निजी या सामूहिक हक, समानता व जीवन व स्वतंत्रता जैसे संवैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। 
सरकार और अदालत का यह दायित्व है कि वह लोगों के उन मौलिक अधिकारों की हिफाजत करे जिनमें नैसर्गिंक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होता हो। अधिकरण ने फरूर की अर्जी खारिज करते हुए कहा कि ”इसमें कोई दम नहीं। मामले में पक्षकार बनाई गई महिला गुजारा पाने की हकदार है।” साथ ही कहा कि ”उसकी बीवी (पक्षकार महिला) सेना के आदेश के तहत एरियर के साथ गुजारे भत्ते की हकदार है।” अधिकरण ने यह भी निर्देश दिया कि उसे गुजारे की बकाया रकम (एरियर) अगर न दी गई हो तो इसे तीन माह में दिया जाए और सैन्य प्रशासन के आदेशों के बरकरार रहने तक इसे जारी रखा जाएगा। सेना समुचित तरीके से आदेश पर अमल करे। 
फ़िलहाल लखनऊ बेंच के इस फैसले के बाद शरीयत के कानून को बड़ा झटका लगा है। लखनऊ बेंच ने यह भी कहा कि ”अदालतों या सरकारी मशीनरी को मौखिक तीन तलाक पर ज्यादा जोर नहीं देना चाहिए, क्योंकि यह संविधान के भाग-तीन में दिए गए समानता और जीवन जीने के मूल अधिकार के खिलाफ हैं।”
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