मोहन भागवत : विकास महत्वपूर्ण, लेकिन सीमा और परंपरा के भीतर ही

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नई दिल्ली : आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आज कहा कि विकास महत्वपूर्ण है, लेकिन यह सीमाओं के भीतर होना चाहिए और स्थानीय परंपराओं को ध्यान में रखकर नीतियां बनाई जानी चाहिए।

वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित एक समारोह में उन्होंने कहा, ‘जहां कहीं भी विकास किया जाना है, स्थानीय परंपराओं के महत्व को ध्यान में रखा जाना चाहिए। ‘मर्यादा’ का महत्व समझा जाना चाहिए। व्यक्ति का विकास महत्वपूर्ण है और यह होना चाहिए, लेकिन मर्यादा को ध्यान में रखते हुए।’ 
भागवत ने कहा, ‘उत्तराखंड त्रासदी के बाद सीमाओं को ध्यान में रखते हुए और पारंपरिक ज्ञान एवं पूर्व की विशेषज्ञता को स्वीकार करते हुए नीतियां बनाई जानी चाहिए। हर जगह मर्यादा होनी चाहिए।’ उन्होंने जोर देकर कहा, ‘नीतियों में भी संयम होना चाहिए। यह हमारे व्यवहार और नजरिये में भी होना चाहिए। किसी लोकतंत्र में सत्ता में बैठे लोगों को आगे बढ़ने से पहले लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखना चाहिए। यही वजह है कि समाज में भी मर्यादा के महत्व को समझने की जरूरत है।’ 
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि मर्यादा, विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान के बीच तालमेल होना चाहिए और विकास को एक नए दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है। उन्होंने प्राचीन काल का उदाहरण दिया जब प्रत्येक गांव में हर घर में विज्ञान का स्पर्श था क्योंकि उस समय लोग बीमारियों का इलाज अपने घरों में तलाश लेते थे। भागवत ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि आज का विज्ञान एवं ज्ञान भी प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में पहुंचे और स्पर्श करे।
उन्होंने कहा, ‘कुछ करने की क्षमता ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि संयम भी होना चाहिए। हर चीज के लिए मर्यादा होनी चाहिए। मर्यादा ‘धर्म’ का एक रूप है। व्यक्ति को हर मुद्दे की मर्यादा समझते हुए आगे बढ़ना चाहिए, तब विज्ञान और पर्यावरण, विज्ञान और परंपरा के बीच टकराव पैदा नहीं होंगे।’


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